भदोही। सरकार स्वच्छ भारत मिशन के अन्तर्गत घर घर में शौचालय बनाने की मुहिम चलाई है। और इसको लेकर काफी अभियान भी चल रहा है। इसी बीच देश के कई प्रदेश और जिले खुले में शौच से मुक्त होने का प्रमाणपत्र भी पा चुके है। लेकिन यह केवल सरकार को और जनता को मूर्ख बनाने के अलावा कुछ नही है। क्योकि आज भी कही कही शौचालय नही है, कही है तो उपयोग करने के काबिल नही है। कही है तो लोग जान बूझकर उपयोग नही कर रहे है। इस अभियान में पहले गंगा के किनारे के गांवों पर सरकार की निगाह थी जो अधिकारियों ने केवल कागज पर जिले और गांवों को ओडीएफ घोषित कराकर झूठी आंकडेबाजी से केवल धोखा किया है। क्योकि आज भी लोग बाहर खेतो में शौच के लिए जाते है। इसमें कुछ लोग तो गलत करते है लेकिन कुछ लोग अधिकारियों और सिस्टम की लापरवाही से आज भी बाहर शौच के लिए जाते है।
भदोही जिले के डीघ ब्लाक के सेमराध में एक मामल् प्रकाश में आया है जहां सेमराध कई वर्ष पहले ही खुले से शौच मुक्त हो गया लेकिन आज भी कुछ ऐसे लोग है। जिनको शौचालय नशीब न हुआ। और ग्राम, ब्लाक, जिलास्तर के जिम्मेदार केवल सरकार को झूठी रिपोर्ट बनाकर भेजते रहे और जनता के साथ साथ सरकार को भी गुमराह करते रहे। इन सबके पीछे केवल लापरवाही व भ्रष्टाचार है। जिले में इसकी चर्चा भी हर गांवों में सुनी गई। कुछ मामले तो ऐसे भी देखे गये कि अधिकारी अपने नाम और नौकरी के लिए ग्राम प्रधानों को बलि का बकरा बनाकर उनके गांवों को ओडीएफ घोषित करा दिया। इसकी वजह यह थी कि भ्रष्ट अधिकारी जब शासन के मंशानुरूप कार्य न करा सके तो ग्राम प्रधानों पर दबाव बनाकर केवल खानापुर्ति में जुटे रहे। और जिले में बने शौचालयों की गुणवत्ता और उपयोगिता सबके सामने है। मालूम हो कि सेमराध निवासी महेश गौड की विधवा ऊषा गौड को जब स्थानीय जिम्मेदार लोगों ने शौचालय नही दिया। और सेमराध को ओडीएफ घोषित कर दिया। कई वर्षो के इंतजार के बाद विधवा ऊषा का सब्र का बांध टूटा और अपनी शिकायत मुख्यमंत्री पोर्टल पर कर दी। शिकायत की सूचना मिलते ही अधिकारियों के कान खडे हो गये कि सेमराध तो ओडीएफ घोषित हो गया है। फिर अभी यह कहां से बच गई है? और बेचारे लाॅक डाऊन में भी अपने खुलती पोल को ढकने का प्रयास करने लगे। लेकिन जिलास्तर पर जुडे इस मिशन के लोग खुब जानते है कि कितनी ईमानदारी से कार्य किया गया है? हालांकि आनन फानन डीघ ब्लाक के बीडीओ ने ग्राम प्रधान और ग्राम विकास अधिकारी को सूचित करके ऊषा देवी से मिलकर शौचालय की सूची में नाम डालने का आश्वासन दिया। और मामले को शांत करने की जुगत में दिखे। लेकिन यहां सवाल बनता है कि जब पुरा गांव औडीएफ तो ऊषा केसे बच गई? क्या ऊषा को शौचालय की जरूरत नही थी? या ऊषा गांव में नही रह रही थी? किस आधार पर घोषित किया गया गांव को ओडीएफ? क्या जिलास्तर के जिम्मेदार लोगों का ऐसा ही है ओडीएफ? इसी तरह के न जाने कितने सवाल लोगों के दिमाग में घुम रहे है। लेकिन जिम्मेदार लोगों को कई फर्क नही पडता है। उनको सरकार के आदेशों की धज्जियां उडाने और जनता को मुर्ख बनाने में थोडा सा भी समय नही लगता है।