Home मन की बात नयी शिक्षा नीति पर शिक्षाविद् योगेश सुदर्शन आर्यावर्ती के विचार

नयी शिक्षा नीति पर शिक्षाविद् योगेश सुदर्शन आर्यावर्ती के विचार

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बौद्धिक प्रतिबंधनों सें स्वतंत्रता की ओर तथा स्वतंत्रता से मुक्ति की ओर शनैः-शनैः विकसित होकर उन्नत होने को प्रेरित करने का यह सर्वथा सर्वप्रथम प्रयत्न है. भारतीय उपनिवेशिक शिक्षा नीति में 1857 की क्रांति के बाद युनियनजैक की साम्राज्यवादी सरकार द्वारा मैकाले की कुटिल और विषाक्त सिफारिशों के कारण जो शिक्षा नीतियाँ अपनायी गयीं, और जिसका अपमान जनक दंश समूचे देश के जागरुक राष्ट्रवादियों के हृदय में चुभता रहा.. ऐसी नीति जो केवल भारतीय राष्ट्रीय गौरव को चूर-चूर करके नौकरशाही व्यवस्था उत्पादित करने और पाश्चात्य सभ्यता की महिमा गायन करते हुए, भारतीय रीति नीति के प्रति तिरस्कार की भावना उत्पन्न करने का माध्यम बना रहा… जिसने देश की चेतना को भाषिक गुलामी में कस के बाँधे रखा… और इंग्लिश मिडियम, कॉन्वेंट, तथा वर्नाक्यूलर और मदरसा के बीच आपसी भेदभाव से परिपूर्ण माहौल खडा़ करके, शिक्षा में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रसार का हाथीदाँत गढ़कर, संस्कृत के गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था को अमान्य और नष्ट किया। यही कारण था कि बहुसंख्य राष्ट्रवादियों ने स्कूलों का बहिष्कार किया और उसमें प्रवेश नहीं लिए…

भारतीयों के इस बहिष्कार पर भारत सहित विश्व के किसी इतिहास में एक वाक्य तक नहीं लिखा गया… हाँ, यदि कुछ लिखा गया तो यह कि- इस शिक्षा नीति से चिढ़े कुढ़े ‘सवर्णों का खल और दुराचारी चरित्र’… वे कैसे सावित्रीबाई फुले का विरोध ‘जातीय कारणों’ से करते हैं… आदि आदि… इस झूठे ऐतिहासिक विज्ञापन की छाया में 60℅ भारतीयों को न केवल चरित्रहीन, अनपढ़, पिछड़ा, गवाँर दरिद्र आदि का तमगा दिया गया बल्कि राष्ट्रीय एकता में जातिवाद का बीज बोकर उसे भी तोड़ डालने का सफल आयोजन किया गया. इसके बाद 1947 के ट्रांसफर ऑफ पावर के रूप में प्राप्त स्वतंत्रता के बाद 1948का जो शिक्षा आयोग डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अध्यक्षता में गठित हुआ और 1986 का कोठारी शिक्षा नीति का भी जो ताना बाना था, उन सबमें कुटिल मैकाले की सोच अमर और अजेय रही तथा आजतक इसका परिणाम यह हुआ कि स्वतंत्रता के पश्चात भी भारत 100℅ साक्षरता का गौरव नहीं पा सका…

यह पहली बार हुआ है कि नयी शिक्षानीति में राष्ट्रीय गौरव का खयाल रखा गया है और मातृभाषा को माध्यम बनाने की नीति पर जोर दिया गया है। यह पहला नैतिक प्रयास है कि शिक्षार्थी नौकरी पाने के प्रलोभन से मुक्त जीवन कौशल अर्जित करके स्वावलम्बी होने के लिए शिक्षित किये जायेंगे। यह पहली बार संकल्पित हुआ है कि कोई उच्च शिक्षित व्यक्ति नौकरी की भीक्षा के इतर नौकरी के दान का गौरव मय मार्ग का अनुगामी होगा… इस परिणाम तक पहुचने मे हमे अब भी लगभग 15- 20 वर्ष लगेंगे… नीतियां सकारात्मक हैं, साहसिक हैं, पिछली लीक से हटकर नवोन्मेषी दृष्टि से आगे बढने का प्रयास हुआ है… बहत्तर साल का भारतीय राष्ट्रीय शिशु पहली बार शिक्षा की ड्योढ़ी पर औपनिवेशिक पालना को त्याग कर अपने भारतीय सांस्कृतिक मेरुदंडु के दम पर खड़े होकर चलने का प्रयास कर रहा है, हो सकता है कि वह एकाध बार गिरे, फिर उठे, ड़गमगाये, किन्तु यह तय है कि निरंतर प्रयास से एक दिन वह न केवल सरपट दौड़ने लगेगा बल्कि समूची धरती पर वह अपनी सर्वोत्कृष्टता का ध्वज भी लहरायेगा।

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