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विजय मिश्रा: जनबली बाहुबली या अपराधी

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उत्तरप्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव में बड़े बड़े महारथी माननीय बनने के लिये अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। यूपी में सपा मुखिया अखिलेश यादव सत्ता वापसी की उम्मीद पाले हैं तो भाजपा फिर से अपनी सरकार बनाने के लिये कटिबद्ध दिखायी पड़ती है। वहीं कुछ विधानसभा सीटें ऐसी भी हैं जिस पर न मोदी योगी का जादू दिखायी पड़ रहा है और न ही अखिलेश की धमक। वहां पर प्रत्याशी अपने दम पर दोनों पार्टियों को पछाड़ने की दौड़ में शामिल हैं। पूर्वांचल में ऐसा ही एक जिला भदोही भी है, जहां की ज्ञानपुर विधानसभा सीट पर अपने विरोधियों द्वारा अपराधी और बाहुबली जैसे अलंकरण से भले ही नवाजे जा रहे हों किन्तु ज्ञानपुर की जनता के लिये वे जनबली हैं। भले ही कुछ लोगों से श्री मिश्रा की अदावत हो किन्तु ज्ञानपुर की जनता के लिये उनकी छवि एक ऐसे नेता की है जो सबके सुख दुख में शामिल होता है। जो अपने विधानसभा की जनता के लिये हमेशा हाजिर रहा है। यहीं वजह है कि विरोधियों के तमाम प्रयासों के बावजूद भी ज्ञानपुर विधानसभा की जनता में अपनी राबिनहुड जैसी छवि बना चुके हैं। जिससे सपा बसपा और भाजपा जैसी पार्टी के प्रत्याशियों के माथे पर पसीने की बूंदे चुहचुहा रही है। विजय मिश्रा को हराने के लिये पिछले चुनाव से ही लोग लगे हैं किन्तु इस बार के चुनाव में भी उनका जलवा कायम दिखायी दे रहा है। श्री मिश्रा जेल में बंद हैं किन्तु उनका चुनाव उनके समर्थक लड़ रहे हैं।

गौरतलब है कि विजय मिश्रा मूलत: प्रयागराज जिले के खपटिहां गावं के रहने वाले हैं, लेकिन उनका आवास ज्ञानपुर विधानसभा क्षेत्र के धनापुर गांव में है। उनकी कर्मभूमि भदोही ही रही। पंडित कमलापति त्रिपाठी ने उन्हें पहला चुनाव 1990 में ब्लाक प्रमुख का लड़वाया था। ब्लाक प्रमुख चुनाव से राजनीति शुरू करने के बाद विजय ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपने विरोधियों को मात देते हुये पिछले 20 साल से ज्ञानपुर विधानसभा सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखे हुये हैं। श्री मिश्रा के उपर हत्या, लूट, बलात्कार, भूमाफिया जैसे लगभग 6 दर्जन से अधिक मुकदमें दर्ज हैं। मौजूदा समय में वे अपने रिश्तेदार की जमीन हड़पने और एक गायिका के साथ गैंगरेप करने जैसे आरोपों में आगरा जेल में बंद हैं। पिछली बार 2017 के विधानसभा चुनाव में निषाद पार्टी से भाजपा प्रत्याशी डा. महेन्द्र बिंद को 20 हजार मतों से पराजित करके चौंका दिया था।

अपने बाहुबल के दम पर भदोही जिले की सियासत में एकछत्र राज करने वाले श्री मिश्रा समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव और उनके भाई शिवपाल यादव के करीबी माने जाते थे। मुलायम की सरकार में उन्हें भदोही का मुख्यमंत्री कहा जाता था। उस समय यदि जिले में कोई राजनीतिक पत्ता भी हिलता था तो वह भी विजय मिश्रा के इशारे पर। तीन बार समाजवादी पार्टी से विधायक रह चुके विजय मिश्रा को टिकट सपा ने 2017 में उस समय काट दिया था जब अखिलेश यादव अपनी पार्टी की माफिया विरोधी छवि बनाना चाहते थे। लेकिन कहा जाता है कि इसके पीछे माफिया विरोधी छवि नहीं बल्कि शिवपाल यादव से नजदीकी थी। एक बार खुले मंच पर अखिलेश को विजय मिश्रा द्वारा किया गया अपमान रास नहीं आया था। जिसके कारण अखिलेश ने उनका टिकट काटकर बदला लिया। उस समय अपनी जमीन तलाश रही निषाद पार्टी के टिकट पर विजय मिश्रा ने चुनाव लड़ा। हालांकि निषाद पार्टी का उस दौरान कोई अस्तित्व नहीं था। फिर भी अपने दम पर उन्होंने भाजपा प्रत्याशी को 20 हजार अधिक मतों से धूल चटाया। बताया जाता है कि उन्होंने अखिलेश को चुनौती दी थी कि आसपास के जिलों में सपा का खाता नहीं खुलने देंगे। यह प्रण उन्होंने अपनी चोटी बांधकर लिया था और हुआ भी ऐसा ही।

तीन मुख्यमंत्रियों से लिया टक्कर

विजय मिश्रा की सत्ता से पंगा लेने की आदत की चर्चा लोगों की जुबान पर रहती है। 2007 में जब युपी में बसपा की सरकार बनी तो विजय मिश्रा के दुर्दिन के दिन आने शुरू हो गये थे। 2009 में उपचुनाव होना था। भदोही विधायक अर्चना सरोज की बीमारी से मौत हो गयी थी। मायावती विजय मिश्रा पर दबाव डालकर बसपा प्रत्याशी को जिताना चाहती थी। किन्तु अक्खड़ मिजाज मिश्रा ने मना कर दिया। उसके बाद 2010 में प्रयागराज के बसपा नेता नंद गोपाल नंदी पर जानलेवा हमला हुआ था। इसमें नंदी की किसी तरह जान बच गई, सहयोगी और एक पत्रकार की इसमें मारे गए थे। तब उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार थी। उस दौरान एक सभा करने आये मुलायम सिंह यादव अपने हेलीकाप्टर में विजय को बिठाकर रफूचक्कर हो गये थे। 2012 में विधानसभा चुनाव होना था। मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं। विजय मिश्रा मुख्यमंत्री के सीधे निशाने पर थे। पुलिस गिरफ्तारी की भरसक कोशिश में थी। विजय मिश्रा को पता था कि आसानी से आत्मसमर्पण मुश्किल है। साधू के वेश में दाढ़ी बढ़ाकर कोर्ट परिसर में पहुंच गए। अदालत में आत्मसमर्पण के बाद लोग समझ पाए। इतना ही नहीं विजय मिश्रा ने 2012 के विधानसभा चुनाव का पर्चा भरा। बसपा ने भी एड़ी-चोटी का जोर लगाया, लेकिन जेल में रहकर विधायकी जीत गए। 2009 में मायावती के पक्ष में झुकने का विकल्प था, लेकिन टकरा गए।

2017 में जब अखिलेश यादव ने टिकट काटा तो समाजवादी पार्टी को यादवों की पार्टी बताकर कोसने से नहीं चूके। यहां तक कह दिया कि मुलायम और समाजवादी पार्टी का जब तक मतलब रहता है, तब तक साथ देते है। बहुत कम लोगों को पता होगा कि भाजपा में भी विजय मिश्रा के हितैषियों की भरमार है। वह उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश भाजपा नेताओं में पैठ रखते हैं। लेकिन एक आदत सत्ता से टकराने की है। विजय मिश्रा ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से टकराने में भी संकोच नहीं किया। पहले उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अफसरों, सलाहकारों की आलोचना की, बाद में मुख्यमंत्री के शासन को ही ठाकुरवाद से भरा हुआ बता डाला।

ज्ञानपुर में मजबूत पकड़

विजय मिश्रा को सत्ता और सत्ता के नायकों से टकराने में उन्हें ज्यादा संकोच नहीं होता। करीबियों का कहना है कि खतरे का अंदेशा उन्हें समय पर हो जाता है। उनके भेदिए हर जगह फैले हैं। सूत्रों का कहना है कि सूचनाओं का संकलन और उससे निकलने वाले संकेतों को पहचानने के बाद अगला कदम उठाने में वे जरा भी देर नहीं लगाते। वहीं अपने राजनीतिक प्रतिद्वन्दियों को परास्त करने से कभी पीछे नहीं हटे। उत्तरप्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके रंगनाथ मिश्रा ने खुद बयान दिया है कि 2012 से पहले उनके उपर कोई मुकदमा नहीं था लेकिन विजय मिश्रा के इशारे पर ही उन्हें झूठे मामले में फंसाया गया। पूर्व सांसद गोरखनाथ पाण्डेय के भाई की हत्या का आरोप भी उनके उपर लगा था। वहीं भदोही विधायक रवीन्द्रनाथ त्रिपाठी को भी झूठे मामले में फंसाने के असफल प्रयास का आरोप भी उनके उपर लग चुका है।

विजय मिश्रा भले ही आगरा जेल में हो किन्तु कहा जाता है कि चुनाव लड़ने से पहले उन्होंने अपने समर्थकों से विस्तृत चर्चा भी किया होगा। ज्ञानपुर विधानसभा से उम्मीद थी कि उन्हें निषाद पार्टी से पुन: टिकट मिलेगा। फिर बसपा से टिकट मिलने की चर्चा हुई, लेकिन कहा जाता है कि भाजपा सपा और बसपा का शीर्ष नेतृत्व चाहता ही नहीं था कि विजय चुनाव लड़े। क्योंकि विजय यदि चुनाव लड़े तो दूसरी पार्टियों को ज्ञानपुर में पैठ बनाने का मौका नहीं मिलेगा। हर जगह से निराशा मिलने के बाद विजय ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया किन्तु प्रगतिशील मानव समाज पार्टी ने उन्हें अपने टिकट पर मैदान में उतार दिया।

ज्ञानपुर में समाजवादी पार्टी ने पूर्व मंत्री रामकिशोर बिंद, भाजपा निषाद गठबंधन ने युवा चेहरा विपुल दूबे और बसपा ने उपेन्द्र सिंह को चुनाव मैदान में उतारकर विजय के गढ़ को ढहाने की जुगत में हैं किन्तु जेल में रहते हुये सभी दलों में विजय मिश्रा खौफ कायम किये हुये हैं। कहा जाता है कि अपने राजनीतिक प्रतिद्वन्दियों में भले ही विजय की छवि एक अपराधी की हो किन्तु आम जनता में उनकी ख्याति कम नहीं हुई है। इसका कारण बताया जाता है कि विजय ने कभी किसी को निराश नहीं किया है। उनके समर्थन में खड़े होने वाला यदि कोई भी व्यक्ति किसी मदद के लिये आया तो खाली हाथ नहीं लौटा। यहीं वजह है कि ज्ञानपुर में विजय का जलवा आज भी कायम है।

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