कल्याण। १९६९ में उत्तर प्रदेश के जौनपुर से मुंबई के भांडुप क्षेत्र में कदम रखने वाले विजय शंकर मौर्या मुम्बई में कमाने आये थे लेकिन उनके अंदर अपने समाज के लिये कुछ कर गुजरने का जज्बा था। आज उसी जज्बे ने उन्हें एक अलग पहचान दिलायी है। आईये बताते हैं कैसे श्री मौर्या ने अपने जीवन का संघर्ष शुरू किया।
भांडुप के विलेज रोड के बगल में ही एक छोटा सा दुग्ध व्यवसाय से कारोबार शुरू करनेवाले अपने मेहनत एवं लगन से दुग्धालय सहित मिष्टान भंडार का भी कारोबार शुरू कर दिए । भले ही इस व्यवसाय मे उने काफी मशक्कत करनी पङी बावजूद इसके वे तनिक भी विचलित नही हुए। मुंबई के अपने समाज मे तकरीबन २४ वर्ष सेवा करने के पश्चात अपना रुख कल्याण के तरफ १९९३ मे किए एवं पूर्व के ही विठ्ठलवाङी स्टेशन से सटे सहयाद्रीपार्क मे अपनी एक किराणा के दुकान की भी शुरुवात किए जहां आज भी दुग्ध की भी बिक्री करते है। इसी बीच १९९० में उनका जुङाव ठाणे स्थित मोर्या समाज केन्द्र में एक मामूली सदस्य के रूप मे हो चुका था।
बता दें कि कल्याण क्षेत्र मे किराणा दुकान एवं दुग्ध व्यवसाय मे लगातार ८ वर्षो के संघर्ष के बाद २००१ मे इन्होने कैलासनगर स्थित पूजा अपार्टमेंट के तलमंजिल पर एक गाला खरीदकर मोर्य साईकल मार्ट की स्थापना कि जिसमे स्वयं सहित तीन और जौनपुर एवं भदोही वासियो को इस कल्याण मे रोजगार भी मुहैया कराए थे।
इसी बीच इन्हे जब अपने समाज के लोगों हेतु कुछ करने का एहसास जगा तो मोर्या कुशवाहा सहयोग केन्द्र की २००४ मे ही स्थापना कर डाली। जिस केन्द्र से २०१८ के जून महीने तक इन्होने २१४ से भी अधिक युवक युवती के वैवाहिक बंधन का कार्यक्रम कराये।
ज्ञातव्य हो कि पूजा अपार्टमेंट मे हर रोज दिन के १२ बजे से दोपहर के ३ बजे तक एवं शाम को ७ बजे से लेकर रात १० बजे तक हर महीने सैकङो ऐसे निवेदन आते रहते है जिसमे १० से ज्यादा फाईनल हो ही जाता है।
फलस्वरूप ६२ वर्षीय ये विजय शंकर मोर्या अपने समाज के लोगो मे सबसे अधिक विश्वासी एवं चहेता बने हुए है।
जौनपुर जिले के मङियाँहू तहसील स्थित तङती गांव के श्री मोर्या के समाजिक उत्थान के सहयोग मे इनकी पत्नी एवं इनके बच्चो के योगदान को नकारा नही जा सकता। इनका बङा बेटा सुनिल कुमार मोर्या जो सेन्ट्रल बैंक आफ इंडिया मे मुंबई मे ही कार्यरत है जबकि छोटा बेटा एवं इनकी पत्नी किराणा दुकान एवं दुग्ध व्यवसाय आदि संभालते है।
इनके कारोबारी उत्थान में इनकी पत्नी का भी भरपूर सहयोग मिला है एवं अभी भी मिलता है। कभी कभी तो रविवार या सरकारी छुट्टी के दिन इनके दूकान स्थित कार्यालय मे ऐसी भीङ जुट जाती है वैवाहिक कार्यक्रम के बदौलत की वहां रखी हुई तीनो कुर्सिया एवं पूरा का पूरा वह मेज भी भर जाता है जिस एक मेज पर तकरीबन छः जन आसानी से बैठ सकते है।
फिलहाल मे २०१५ से इनके पूजा अपार्टमेंट वाले दूकान एवं वैवाहिक बैठक वाले कार्यालय मे कोई भी अतिरिक्त कर्मचारी नही है जबकि इससे पहले ये दो तीन जन को अपने दूकान में रोजगार दे चुके है। ऐसे मे भी अधिकतर छोटे मोटे कामो मे भदोही के विनोद मोर्या एवं सुदामा आदि भी सहयोग कर देते है। इन सबके बदौलत भी खोपोली, कर्जत एवं विरार तक के भी इनके समाज को लोग इनसे संबंध बनाए हुए है जिस कारण इनके पास अधिकतर काँले वैवाहिक संबंधित ही आते रहते है जसके निष्पादन हेतु ये प्रयत्नशील भी रहते है।