विजयादशमी, यानि कि बुराई पर अच्छाई की विजय का दिन। पता नहीं कितने वर्षों से काल का पहिया यूँ ही घूमता हुआ हर वर्ष यह दिन ले आता है, और हम इसे मात्र त्योहार के रूप में मनाकर भूल जाते हैं। और भूले भी क्यों नहीं। अभी तक मेरी समझ में यह नहीं आता कि यदि राम ने रावण का वध करके उसपर विजय प्राप्त किया था तो क्या सचमुच बुराई पर अच्छाई की विजय हुई थी। क्योंकि अगय रामायण को पढा जाये तो रावण एक विद्वान ब्राह्मण था और समस्त सुरों यानि कि देवताओं पर विजय प्राप्त करने वाला इंसान था। अब देवताओं पर जीत हासिल करने वाले व्यक्ति को देवता तो नहीं कहा जा सकता, इसलिए रावण की प्रसिद्ध राक्षस के रूप में हुई। रावण शिवभक्त भी था। रावण ने सीता का हरण किया, किंतु उनके साथ कोई दुर्व्यवहार किया था इसका कोई विवरण रामायण में तो नहीं मिलता। फिर इस तरह से पराई स्त्री का हरण करने की कोशिश तो अनेक देवताओं ने भी की थी, तो फिर रावण ही बुराई का प्रतीक क्यूँ बना। फिर विजयादशमी का पर्व नवरात्रि के दौरान ही क्यूँ मनाया जाता है? यह भी एक अनुत्तरित प्रश्न मेरे जेहन में उभरता है।
इस दिन जगह-जगह पर हम तीन पुतलों को आग के हवाले कर देते हैं और आशा करते हैं कि बुराई के प्रतीक स्वरूप जला यह पुतला समाज में फैली सारी बुराईयाँ नष्ट कर देगा। देखा जाए तो यह विचार, यह वाक्य, यह सोच सभी कुछ आज के जमाने के हिसाब से आउट डेटेड है। जब भी साल दर साल यह चीजें छपती हैं, हर व्यक्ति का कहना होता है यह सब पुरानी बात है। लेकिन कोई नहीं सोचता कि जब इस विचार को पहली बार लिखा गया होगा तब तो यह नया था। तब क्यों हम सिर्फ पुतला जलाने भर तक सीमित रह गए? तब क्यों हमने तमाम बुराईयों को जड़ से मिटाने की कोशिश नहीं की? हर व्यक्ति यह जरूर महसूस करता है कि समाज में बहुत सी बुराईयाँ हैं, इन्हें मिटाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाना होंगे।
केवल पुतले जलाने भर से कुछ नहीं होगा। फिर भले ही वे पुतले साल भर शहर की सड़क पर जलने वाले हो या साल में एक बार मैदान में जलने वाले। लेकिन मुख्य मुद्दा तो यहीं आकर ठहर जाता है। क्योंकि सिर्फ महसूस करने भर से कुछ नहीं होता यह सभी जानते हैं। बहरहाल यह बहस तो सदियों से चली आ रही और सदियों चलती रहेगी। आप शांति और प्रेम से दशहरा मनाइए। बस एक छोटी सी इल्तिजा है, रावण को जलता देख कर आप सिर्फ ताली पीटने वालों की जमात में शामिल मत हो जाइए। आप अपनी एक नीजि बुराई छोड़ने का संकल्प ले लीजिए। कोशिश कीजिए कि आप इस संकल्प पर अडिग रहेंगे। फिर देखिए रास्ते अपने आप बनते जाएँगे, क्योंकि किसी भी अच्छाई की शुरूआत खुद से हो तो वह अच्छाई स्थाई रहती है। विजयादशमी के अवसर पर हम सभी को यह सोचना चाहिए कि हमें देश की प्रगति के लिए अपनी तमाम बुराइयों को खत्म करके समाजसेवा में भागीदार बनकर समाज एवं देश की उन्नति करें, यही हमारी असली जीत होगी।
खास कर नई युवा पीढ़ी को देशसेवा के लिए आगे आना चाहिए, क्योंकि युवा ही देश को आगे बढ़ाने में सहायक बनेंगे। युवा देश का भविष्य होते हैं। विजयादशमी पर्व के प्रति आदर और प्रेमभाव रखकर अपने जीवन को अच्छा बनाने की जरूरत है। युवा आज चाहे वह किसी भी समाज का हो, पर अपनी समस्त बुराइयों को खत्म कर दशहरा पर्व मनाना चाहिए।बुराई पर अच्छाई की जीत का अभियान किसी क्षेत्र, प्रदेश और देश तक सीमित नहीं रह सकता। संपूर्ण दुनिया को पाशविक मानसिकता से मुक्ति दिलाने के लिए दृढ़ संकल्प की आवश्यकता है। उम्मीद की जाए कि कम से कम भारत में दशहरे का असली महत्व और अर्थ समझा जाएगा। आप सभी को दशहरे पर सदबुद्धि प्राप्त हो और देशसेवा करने की शक्ति की प्राप्ति की बहुत-बहुत शुमकामनाएँ।