Home मुंबई अखिल भारतीय काव्य मंच पर हुआ विनय शर्मा दीप का एकल काव्यपाठ

अखिल भारतीय काव्य मंच पर हुआ विनय शर्मा दीप का एकल काव्यपाठ

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मुंबई
साहित्यिक,सामाजिक,सांस्कृतिक संस्था अखिल भारतीय काव्य मंच मुंबई के तत्वावधान में आयोजित एकल काव्यपाठ हेतु रविवार 31 जनवरी 2021 को कवि,लेखक,गीतकार एवं पत्रकार विनय शर्मा दीप को आमंत्रित किया गया। निमंत्रण संस्था के संस्थापक अंजनी कुमार द्विवेदी ने दी और अध्यक्षा डाॅ शुभा सचान,उपाध्यक्ष डाॅ संगीता राज,उपाध्यक्ष अंजली श्रीवास्तव, पटल संचालिका शिवानी त्रिपाठी, मीडिया प्रभारी विकास मिश्रा सागर,प्रमुख सचिव अर्पित मिश्रा तेजस,वरिष्ठ संरक्षक विनय ओझा,सलाहकार प्रो वीरेन्द्र कुमार एवं संयोजिका ममता बारोट के आयोजन,संयोजन में विनय शर्मा दीप द्वारा भव्य एकल काव्यपाठ हुआ,फेसबुक से सीधे लाइव कार्यक्रम में दीप ने हजारों प्रेमी साहित्यकारों,श्रोताओं को छंद,सवैया,गीत सुनाकर मंत्रमुग्ध कर दिया।दीप जी द्वारा सुनाये गये कुछ छंद –
(1)
गर्भ से बिटिया की पुकार पर एक छंद-

बेटी बानी हौं,सबही बतयबू की ना।
माई कोखिया में,हमरा बचयबू की ना ।।

केकरा से कही,केहू सुनेवाला नाहीं,
का हम बखानी,केहू गुनेवाला नाहीं,
विधना क रचना,रचयबू की ना।
माई कोखिया में,हमरा बचयबू की ना।।

(2) आज की राजनीति पर एक छंद-

कोई परिवार कोई जाति वाद पर फिदा,धर्म संप्रदाय कोई निज स्वार्थ मस्त है ।
सोच नहीं दिखती है देश के भविष्य की,बीच मझधार नाव जन-जन त्रस्त हैं ।
कैसे खेल खेलते दुसाशन दुर्योधन ये,देश प्रेमी नमक हरामों से ही पस्त हैं ।
दीन दुखी नौजवान देश के किसान सभी,रोजी रोजगार कोई भूखा पेट लस्त है ।।

(3) राधा-कृष्ण पर छंद सुनाते हुए कहा-

राधा बोली सखियों से चलो वृंदावन चलें,माखन चोर कान्हा कौ पहेली बुझायेंगे ।
मुरली अधर धर नाच नचाया ओ कल,आज उसी कान्हा कौ सहेली हौं नचायेंगे ।
पात-पात छिपे और डारन ठिठोली करे,लूका छिपी कैसे करें, आज हौं बतायेंगे ।
सांवरे सलोने नंद नटखट बांवरे कौ,चितचोर श्याम कौ दहेली हौं दिखायेंगे ।

(4) भारत माता की विशेषता बताते हुए छंद सुनाया-

ताज हिमालय आजु खड़ा,कसमीर ललाट सुहाय रह्यो हे।
हौं हियना देलही रजधानी,उहै करूणा बरसाय रह्यो हे ।
कंठ हिमांचल दोउ भुजा,गुजरात बंगाल लुभाय रह्यो हे ।
केरल सिंधु पखारत पांव,पंजाबहिं दीप जलाय रह्यो हे ।।

वृक्ष जहाँ पनपै तुलसी,धरती जंह अन्न उगाय रह्यो हे ।
शांति ध्वजा फहरे जहंवा,जहं गंग जमुन लहराय रह्यो हे ।
फूल खिले जहं बागन में,जहं कोयल गीत सुनाय रह्यो हे ।
दामन में करूणा झलकै,जहं मातु लला दुराय रह्यो हे ।।

(5)
(ग्राम पंचायत के चुनाव के दौरान गृहणी अपने पति से कहती है)

गईल मजा अब किसानी कै।
पिया लड़ी जा चुनाव परधानी कै।।

गाँव-गाँव,गली-गली,घरे-घरे जइबै,
सखियन सहेलियन के हमहूं बतइबै।
होइहैं व्यवस्था,बिजली पानी कै ।
पिया लड़ी जा———–।।

कहिया ले मियां बीबी,रहल जाइ दुखिया।
जीत जो गइल त बन जइब मुखिया ।
दिन टल जइहैं,तब परेशानी कै।
पिया लड़ी जा————।।

घुरहू के लिखिह,निरहू क पट्टा,
पड़ ता पड़े दा,ईमान में बट्टा ,
कइसो होइहैं ठिकान दाना-पानी कै।
पिया लड़ी जा—————।।

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