मुंबई : साहित्यिक सामाजिक व सांस्कृतिक संस्था काव्यसृजन की ७०वीं मासिक काव्यगोष्ठी गोरेगाॅव (पश्चिम) में अजय बनारसी के संयोजन,अलका पाण्डेय जी की अध्यक्षता, कुसुम तिवारी”झल्ली” के संचालन, दत्ता भाऊ की व्यवस्था में, उपस्थित मुख्य अतिथि नगरसेविका रत्ना पिल्लई विशिष्ट अतिथि निशा सिंघल, पुष्पा वर्मा जी के सानिध्य में महिलाओं व देश के वीर सैनिकों को समर्पित काव्यसंध्या हर्षोल्लास पूर्वक सम्पन्न हुई। कार्यक्रम का आगाज कुसुम तिवारी “झल्ली” द्वारा निराला जी की लिखित शारदा वंदना से हुआ। अतिथियों का स्वागत सम्मान शाल पुष्पगुच्छ प्रदान कर किया गया।
इसी कार्यक्रम में काव्यसृजन (महाराष्ट्र इकाई)का गठन भी किया गया। युवा कवि विनीत शंकर को महाराष्ट्र इकाई का अध्यक्ष व अमित झा को महासचिव घोषित किया गया। साहित्य के पुरोधा दिवंगत डॉ. नामवर सिंह जी को दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गई व अमर सपूतों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। कवियों में श्री शिवप्रकाश ‘’जौनपुरी’’, श्याम अचल ‘’प्रियात्मीय’’,सूरज नागर ‘’उज्जैनी’’, पुष्पा वर्मा , कुसुम तिवारी ‘’झल्ली’’, अलका पाण्डेय,निशा सिंघल, भोलानाथ तिवारी ‘’ मूर्धन्य’’, अमिता केडिया,अजय शुक्ला’’बनारसी’’,शशीकला कालकर,धर्मेन्द्र कुशवाहा,श्रीनाथ शर्मा , श्रीकृष्ण कालकर,राजेश मंथन ,रुस्तम घायल,त्रिलोचन सिंह अरोरा,कल्पेश यादव,श्रीधर मिश्र , डॉ रमानाथ राना, वीरेन्द्र कुमार यादव,हनी पटेल ,डॉ वर्षा सिंह,रानी अग्रवाल,रमाकांत ओझा ‘’लहरी’’,विक्रम सिंह,रवि दुबे ,इरफ़ान तारिक खान ,निखिल पाण्डेय ,मज़ाहिर जाफ़री,अरुण कुमार मिश्रा ,विनीत शंकर ,अमित झा , अंशु जैन झल्लारी, पूजा नाखरे,विजय कुमार अग्रवाल ,लोकनाथ तिवारी ‘’अनगढ़’’, मुन्ना सिंह ‘’विलय ‘’,इंदु मिश्रा ,सुमन तिवारी ,निर्मला पाण्डेय ,गायत्री साहू , मंगेश सिंह ‘’माही’’,मनीष चन्द्र देव ,अरुणेन्द्र आर्य ,अभय चौरसिया ,लालबहादुर यादव ‘’कमल’’,अल्हड़ ‘’असरदार’’,रमेश श्रीवास्तव ,कुलदीप सिंह ‘’दीप’’,तरुण ‘’तन्हा’’,आनन्द पाण्डेय ‘’केवल’’,रफीक आलम ,रिज़वान अंसारी,मुमताज़ ,वशिष्ठ सिंह ,सुनील राना जी ने अपनी देशभक्ति हास्य-व्यंग्य,श्रृंगार से परिपूर्ण रचनाओं को प्रस्तुत कर सबको भाव-विभोर कर दिया।सारा समय तालियों वाहवाहियों से गुंजायमान रहा। श्रीकृष्ण कालकर जी ने जब अपनी बांसुरी की तान छेड़ी तो सब झूम उठे।युवा कवि इस कार्यक्रम के विशेष आकर्षण रहे।
अंत में संस्था के कोषाध्यक्ष अजय बनारसी ने उपस्थित सभी कवि, कवयित्रियों अतिथियों व श्रोताओं का अभिनंदन करते हुए आभार प्रकट किया और गोष्ठी का समापन किया।काव्यसंध्या में उपस्थित साहित्यकारों की कुछ रचनाएँ इस तरह रही-
भोलानाथ तिवारी मूर्धन्य बहुत सुन्दर उपमा देते हुए कहा-
जुत्तई रणनीति ने किया है बंटाधार
सिंह से आहत स्वान सब करते हाहाकार सब करते हाहाकार सलहाकार भय गुर्गे
बिना सूत के १० जनपद में नाच रहें सब मूर्गे मूर्द्धन्य कहें किरदार में
अजब गजब है लूच्चई मंशा सब पुरन किहेसिई ,राजनीति की जुत्तई।
डाँक्टर वर्षा सिंह कहती हैं नारी आज किसी से कम नहीं-
निर्बल अबला बेचारी का अब ना राग अलापेंगे
दुनिया की हर ऊँचाई को नारी बल से नापेंगे
अधिकार माँगने के लिए नहीं कहीं हम जाएँगे
परिश्रम हिम्मत और लगन से हक़ सारे हम पाएँगे ।
मंज़िल तक जो पहुँची नारी ख़ुद ही कमान सम्भाले है
बाधाएँ सारी राहों की इच्छा शक्ति से टाले है।
वो बाघिनी जैसी चाल चले पथ भी स्वागत करता है
खड़ी मुश्किलें घुटनों के बल नतमस्तक जग ये रहता है ।
शक्तियां तुझमें सभी समाई ख़ुद का बल न भाँप रही
कस्तूरी ढूँढे मर्ग बन तू क्यू न ख़ुद में झांक रही ।
नौ महा तक अपनी कोख में तूने शिशु समाया है
झेल प्रसव पीड़ा को तूने जन्म दूसरा पाया है ।
कैसे तू कमज़ोर कहाएँ तू सृष्टि निर्माता है
तेरे आँचल पले बढ़े सब तू भाग्यविधता है।
तू लक्ष्मी है तू सरस्वती है तू ही काली माई
कुरितियों की तोड़ बेड़ियाँ अब कर तू अपनी रिहाइ
साथ पुरुष के चलना होगा आधी आबाद नारी
अधिकार सभी संज्ञान में ले है तू जिनकी अधिकारी।।
कविवर सूरज नागर उज्जैनी ने वीर साहसी जवान अभिनंदन की वीरता को दर्शाते हुए कहते हैं-
अभिनन्दन का अर्थ अभिनन्दन नहीं है अब,,,,,
अभिनन्दन का अर्थ अब वंदन नहीं है स्वागत नहीं है ।
सत्कार नहीं है सम्मान नहीं है।
अपने शौर्य पराक्रम वीरता से, भारतीय वायुसेना के विंग, कमांडर वर्धमान अभिनन्दन ने, अभिनन्दन का अर्थ ही बदल दिया है ।
अभिनन्दन अब अभिनन्दन नहीं है ।
अभिनन्दन का अर्थ अब शौर्य है। पराक्रम है राष्ट्र भक्ति है वीरता है।
बाहुबल है बुद्धिमत्ता है शक्ति है। कर्तव्यपरायणता है, देशभक्ति है।
अभिनन्दन का अर्थ अभिनन्दन नहीं है। अब राष्ट्र-प्रेम की अभिव्यक्ति है ।।
कवि अजय बनारसी समय को लेकर कुछ इस तरह फ़रमाते हैं-
मुझे आज नहीं सुनेंगे लोग। कल मुझे, याद करेंगे लोग।।
वक्त कुछ, इसी तरह है मानो बीत जाये, याद करेंगे लोग।
माना नज़दीकियां भी ज़रूरी हैं फ़िर भी दूर जाया करेंगे लोग।
यह सितम है और कुछ भी तो नही। रूठेंगे, बाद में मान जाया करेंगे लोग।
ये दुनिया मतलबी सी, दिखती ज़रूर हैं। मरने के बाद फूल चढ़ाया करेंगे लोग।
लोगो का क्या कहना, कहते रहते हैं। ख़ुद से ख़ुद की, बड़ाई भी करेंगे लोग।
भावना से जुड़ी हैं, यादे हमारी तुम्हारी। ख़ुद रोएंगे, दुसरो को हँसाया करेंगे लोग।
सुना है हिसाब सब यहीं पर होना हैं। कैसे दुसरो से लिया चुकायेंगे लोग।।
वरिष्ठ कवि श्रीनाथ शर्मा महिला दिवस पर अपनी लेखनी को उकेरते हुए इस तरह कहते हैं-
कैसे होगा देश में नारी का सम्मान चार शादी जायज है।
कहता पाक कुरान हिन्दु धर्म भी कहता है।
पति को परमेश्वर मान धर्म शास्त्र का कैसा ज्ञान
ए केवल बीमारी है। एक नुर है सबके अन्दर
नर है चाहे नारी है। खुदा के बन्दे नारी भी है
क्यों करते इनका अपमान मियां परमेश्वर सौतन लायें
ये कैसी आज़ादी। धर्म शास्त्र दे दे नारी को
करें चार चार शादी। नारी घर की रानी होती
मानव घर का राजा होता रहे प्यार से दोनों तो
वो घर कितना प्यारा होता बिन नारी घर है सुनसान।
कैसे होगा देश में नारी का सम्मान।। पंडित शिवप्रकाश जौनपुरी कहते हैं-
दुश्मन नहीं दूसरा,कोई हिन्दुस्तान का। .अपने अपनी जड़ खोद रहे, साथी बन पाकिस्तान का।।
वो चिंतित बिन रहा चीथड़े,ये माँगे यहाँ सबूत। तभी वो क्षति पहुँचा रहा,पा शह इस बेइमान का।।
राजेश दुबे अल्हड़ असरदार कहते हैं-
खैर नही आतंकवाद का, यही हुआ एलान ।
अभिनंदन पर सौदेबाज़ी, सहे न हिंदुस्तान ।
सहे न हिंदुस्तान, दबाव था बड़ा बनाया।
डर के मारे पाक ने, अभिनंदन लौटाया।
कह अल्हड़ असरदार, नही जनता से बैर ।
जो दोषी पुलवामा के, ना उनकी खैर।
श्याम अचल प्रियात्मीय महिला दिवस पर कहते हैं-
पुरूष धत् पुरूष नही
पुरूषत्व हीन मात्र पुलैंगिक मनुष्य ,
आज महिला दिवस की शुभकामनाएँ दे लो।
कल फिर तुम आ जाना अपनी औकात पर
और नोच लेना किसी महिला की देह
कुचल देना पैरों तले कली को
खेलते रहना तुम महिलाओं की ज़िन्दगी से
कभी भाई बन कर बहन पर प्रतिबन्ध
कभी बाप बन कर बिटीयाँ के हर सपनों पर प्रतिबन्ध
कभी पति बन कर बना लेना गुलाम जिन्दगी भर के लिए
एक ही कमजोरी है इनकी जिसका पूरा फ़ायदा उठाना।
ये भाऊक होती है इनसे भावनात्मक तरिके से वश में रखों
इन्हे बताते रहो कि यह तुम्हारा फर्ज़ है
यह तुम्हारा कर्म है। यह तुम्हारा दायित्व है
यह हमारी परमम्परा है। यह हमारी संस्कृति है
यही समाजिकता है। यह तुम्हारा त्याग है
यह तुम्हारा बलिदान है बस और ऐसे ही भवनात्मक बातें करके खेलते रहना हमेशा ज़िन्दगी से।
और उन्हे हमेशा ये झूठा एहसास दिलाते रहना कि
हम ही तुम्हारी ज़िन्दगी है।
इसी तरह सभी आगंतुक साहित्यकारों ने इस काव्यसंध्या में महिला दिवस और शहीदो के नाम गोष्ठी में चार चाँद लगा दिये।