दिल्ली से रमेश दूबे
देश की अनगिनत समस्याओं की तरह जल संकट के लिए भी काले अंग्रेज ही जिम्मेदार हैं। अंग्रेजों ने अविभाजित पंजाब में नहरी सिंचाई के बल पर धान की खेती का प्रचलन शुरू किया था। आजादी के बाद काले अंग्रेजों ने लकीर पीटने में कोई कमी नहीं छोड़ी।
तमिनालडु में वैगाई नदी के डेल्टाई हिस्से में स्थित मदुराई की भूमि इतना उर्वरा थी कि वहां के बारे में एक कहावत प्रचलित थी कि जितनी जमीन में एक हाथी एक बैठता है उतनी जमीन से एक परिवार का साल भर गुजारा हो सकता है।
काले अंग्रेजों और कृषि भवन में बैठने वाले (अ) वैज्ञानिकों ने इस उर्वरता का दोहन करने के लिए वहां धान की खेती शुरू करा दिया। नतीजा इलाके में समृद्धि तेजी से बढ़ी। दस साल पहले तक इलाके में जब कहीं शादी का शानदार टेंट लगा दिखता था तो लोग समझ जाते थे कि धान किसान के यहां शादी है।
धान की खेती का नतीजा यह हुआ कि धरती की कोख सूख गई और धान किसान दिल्ली के जंतर-मंतर पर आत्महत्या कर चुके किसानों की खोपड़ियां लेकर प्रदर्शन करने पहुंच गए।
आज आधा भारत अकाल चपेट में है तो इसके लिए काले अंग्रेजों ही जिम्मेदार हैं। ऐसे में काले अंग्रेजों को अब अपने अतिज्ञान (?) का दंभ छोड़ देना चाहिए नहीं तो जल्दी ही पूरा देश बुंदेलखंड की तरह सूखे की चपेट में आ जाएगा।