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हम और हमारी पहचान

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हमार पूर्वांचल
द्रोपति झा

जब हम इस संसार में अपनी माँ के कोख से जन्म लेकर भगवान के रूप में आते है। भगवान रूप इसलिए कहा जाता है क्योकि जब बच्चा जन्म लेता है, तो उस समय उस बच्चे का हिर्दय साफ होता है उनमे ना कोई छल और कपट करने की भावना होती है। और इस खुशियों के माहोल्ल में, हमारे आने की खुशी में हमारे बड़े-बुजुर्ग बहुत सारी खुशिया मनाते हैं और एक-दुसरे के साथ बाटते है, उस समय हमारी कोई पहचान नही होती इस संसार में केवल हमारे माता-पिता के आलावा। हम सिर्फ अपने माता और पिता के नाम से जाने जाते है। जब हम धीरे-धीरे अपने माता-पिता के पालन पोषण द्वारा बड़े होते है, तो इसी जरिये उस मुकाम पर भी पहुच जाते है जहा की अपने बल-बूते पर चलने की कोशिश करनी चाहिए ।
कुछ बच्चे इस तरह के होते है, जो कि अपना मंजिल हासील कर अपने पैरों पर खड़े हो जाते है। लेकिन देखा जाये तो यह भी होता है जहा कही शादियों के विषय में अक्सर लड़की के पिता होने वाले दूल्हा से पूछते है कि बेटा अब-तक तुमने अपने यहा तक के जीवन के सफर में कितनी सफलता प्राप्त की और तुमने अपने बल-बूते पर कितनी प्रापर्टी या पैसा कमाया , उनके उत्तर बड़े और सीधे होते है कि हमारे पास धन-दौलत और बंगला-गाड़ी है ये सब वह आसान तरीके से बोल तो देते है परन्तु यह नही सोचते यह सब तो उनके माता-पिता द्वारा किया धन अर्जित है। वो अपनी मेहनत के बदौलत तो नही प्राप्त किया फिर कैसा बोलना हमारे पास धन और दौलत है।
अपने मुकाम तक पहुचकर और अपनी मेहनत के बदौलत अपनी जरूरतों को पूरा करने वाला बच्चा ही अपने जीवन का कामयाब विद्यार्थी या एक कामयाब मनुष्य कहलाता है।
असल में हमारी खुद की पहचान वह नही होती है जिससे कि यह पूरा संसार हमे सिर्फ अपने माता-पिता के नाम से जाने बल्कि असल में हमारी खुद की पहचान वो होती है, जहा कि ये पुरा संसार हमारे नाम से हमारे माता-पिता को जाने।

” मनुष्य अपना भाग्य खुद बनाता है अपने कर्मो के अनुसार ” लड़कियाँ तो भाग्यशाली है जो कि वह इस संसार में सौ-भाग्य लेकर आती है। ये अपने कर्मो के अनुसार सौ-भाग्य के बराबर आ सकती है ।

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