दोनों पार्टियों ने पूरी निर्लज्जता के साथ जमकर एक दूसरे के घर में सेंधमारी की, और टिकिट के हवसीयों ने भी भरपूर उत्पात मचाया।
भाजपा में टिकिट नहीं मिला मुँह उठाकर कांग्रेस में चले गए, कांग्रेस में टिकिट नहीं मिला पीठ दिखाकर भाजपा में आ गए।
मजे की बात ये कि जो गया वो “दलबदलू” और जो आया उसका “हृदय परिवर्तन” हुआ है।
इतने सारे लोग इधर से उधर और उधर से इधर गए कि कौनसी विचारधारा के लोग सदन में हमारा प्रतिनिधित्व करेंगे ये सवाल ही वाहियात सा लगता है।
उसपर नया ये कि दोनों पार्टियों में अपने बच्चों को पॉलिटिक्स में “सेट” करने का खेल भी जमकर खेला गया।
अब कोई शक नहीं कि ये सब सत्ता और पैसे के पुतले है, मानवता के बलात्कारी है, धर्म के ठेकेदार है और पूंजीपतियों के दरबान है।
कुल जमा इस सारे खेल में एक बार फिर सिद्ध हुआ ज़मीनी कार्यकर्ता और मतदाता दोनों इस व्यवस्था की फेंकी झूठन ही खा रहे है।
बुरा मत मानिए, खून को उबाल मत दीजिए।
यही राजनीति है, यही राजनीति के सिस्टम की परिणीति है, यही भारत है…
दौर ए हाज़िर की सियासत को देखते हुए एक शेर ज़हन में है कि…
दौर-ए-इलेक्शन मे कहाँ कोई इंसान नज़र आता है,
कोई हिन्दू कोई दलित तो कोई मुसलमान नज़र आता है।
बीत जाता है जब इलाकों मे इलेक्शन का दौर…
तब हर शख़्स रोटी के लिये परेशान नज़र आता है।
क्या झकझोरे हैं?
फ़िर भी चालु है दल बदल।