15 जुलाई 2018 को उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने पॉलीथिन पर प्रतिबंध लगाकर पर्यावरण सुरक्षा हेतु एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया था। 50 माइक्रोन के नीचे की सभी पॉलीथिन थैलियां प्रतिबंधित कर दी गयी। उलंघन करने वाले को जेल व जुर्माने का प्रावधान बनाया गया। कुछ दिनों तक इसका पालन भी हुआ, पॉलीथिन की थैलियां बाजारों से नदारद दिख रही थीं। खरीददारों के हाथ में कपड़े के थैले नजर आने लगे।
लगभग एक महीने बाद फिर से पॉलीथिन की जहरीली थैलियां वापस बाजार में दिखनी लगीं और इस समय आलम ये है कि सभी दुकानों पर खुलेआम पॉलीथिन की थैलियां इस्तेमाल हो रही हैं। कूड़े के स्थान पर पर्यावरण के लिए जहरीली थैलियों का भरमार है।
ऐसे में अब प्रश्न ये उठता है कि जब इन थैलियों पर प्रतिबंध है तो 50 माइक्रोन से कम के थैले बाजार में कैसे आ रहे हैं? क्या इन पॉलीथिन के थैलों पर प्रतिबन्ध नाममात्र का लगाया गया है? उत्तर प्रदेश शासन के इस नियम का उलंघन क्यों किया जा रहा है और कौन कर रहा है?
मुझे तो लगता है कि खुलेआम पॉलीथिन के थैलों की बिक्री में प्रशासन की भी मिलीभगत हो सकती है। क्योंकि जब नियम का सख्त रूप से पालन किया जाता तो प्रतिबंधित थैलों का निर्माण न होता और जब निर्माण न होता तो बाजार में आने का प्रश्न ही नहीं उठता। दूसरी बात यह कि जब बाजार में प्रतिबंधित पॉलीथिन थैलों का इस्तेमाल हो रहा है तो भी प्रशासन इसे रोकने के लिए गम्भीर नहीं है। ऐसे में प्रशासन पर सवाल उठना स्वाभाविक हो जाता है कि कहीं इसके लिए भी तो अवैध वसूली नहीं हो रही है और कमाई का जरिया मिल गया हो?
यदि प्रशासन वास्तव में पर्यावरण की सुरक्षा के लिए गम्भीर है तो उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रतिबंधित पॉलीथिन थैलों के निर्माण में तत्काल रोक लगाए।