Home भदोही रामजी ब्राह्मण की जगह दलित होता तब भी ऐसा ही करते साहब!

रामजी ब्राह्मण की जगह दलित होता तब भी ऐसा ही करते साहब!

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उत्तरप्रदेश के भदोही जिले के गोपीगंज कोतवाली में हुई रामजी मिश्रा की मौत ने सिर्फ तीन बेटियों को ही अनाथ नहीं किया है बल्कि इस मौत ने राजनीति के मुंह पर एक करारा तमाचा भी जड़ा है।
इस घटना में एक सवाल उभर कर सामने आ गया है कि क्या किसी लाश को भी जाति और धर्म के चश्में से देखा जाने लगा है। क्या मरने वाला एक ब्राह्मण न होकर दलित या मुस्लिम होता तो हमारे जिले के जनप्रतिनिधि और अधिकारी यहीं रवैया अपनाते जो अपना रहे हैं। इस घटना के बाद पीड़ित परिवार के पास सात्वना देने ‘हमार पूर्वांचल’ में प्रकाशित खबर के बाद भदोही विधायक पहुचे, लेकिन दूसरे किसी जनप्रतिनिधि ने न अपनी उपस्थिति दर्ज करायी और ही मौके पर डीएम या एस पी जाना गंवारा किये।

गौरतलब है कि शुक्रवार को कोतवाली गोपीगंज में घटना घटने के बाद रामजी मिश्रा की पत्नी और तीन मासूम बेटियों का रो—रोकर बुरा हाल था। घटना चाहे जिस कारण हुई हो लेकिन रामजी मिश्रा की बेटी दीपाली मिश्रा ने सीधे आरोप लगाये कि उसके पिता की तबियत खराब थी और उनको मारपीट कर हवालात में डाल दिया गया। मृतक हवालात में से चिल्लाता रहा कि उसकी तबियत खराब है, उसे बाहर निकालों नहीं तो मर जाउंगा। बाहर अपने पिता से मिलने के लिये बेटियां गिड़गिड़ाती रही लेकिन किसी के कानों पर जूं नहीं रेंगी। बेटियां अपने बाप से मिली किन्तु जब वह शव में तब्दील हो चुका था।

हो सकता है पिता के मरने के बाद बेटियां झूठ ही बोल रही हों, जैसा कि पुलिस के बयानों से लगात है। किन्तु अधिकारियों ने इतनी संवेदनहीनता का परिचय क्यों दिया। भदोही के जनप्रतिनिधि इतने संवेदनहीन क्यों हो गये। यदि शुक्रवार को ही जिले के आला अधिकारी मृतक के घर जाकर उसके परिवार को सांत्वना दिये होते तो आज आम जनता को परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता। अपने काम से निकले हजारों लोगों को जाम में नहीं फंसना पड़ता। मृतक के परिवार वालों को सड़क पर लेटकर अपना दुखड़ा नहीं रोना पड़ता, लेकिन ऐसा हुआ नहीं, क्यों कि हमारे जिले के जनप्रतिनिधि और अधिकारी अपनी संवेदनहीनता का परिचय दे रहे थे।

मेरी किसी जाति या धर्म के साथ कोई दुर्भावना नहीं है किन्तु जब किसी घटना का विश्लेषण करना हो तो सोचना पड़ता है कि जब कहीं भी ऐसी कोई घटना किसी दलित या मुस्लिम के साथ घटती है तो अधिकारियों की नींद उड़ जाती है। वे जल्दी से जल्दी घटनास्थल पर पहुंचकर मामले को संभालने में लग जाते हैं। या फिर यह भी हो सकता है कि अधिकारी इसलिये उस जगह जल्दी से जल्दी पहुंचना चाहते हैकि यह वोट बैंक का मामला है और वहां पर नेताओं की सियासत शुरू होगी इसलिये वहां पर पहुंचना स्वाभाविक बनता है। गोपीगंज में हुई घटना को 24 घंटे बीत चुके हैं, लेकिन पीड़ित परिवार के पास पहुंचना जिलाधिकारी या पुलिस अधीक्षक ने अपना नैतिक दायित्व नहीं समझा।

गौरतलब हो कि भगवान न करे यदि यह मौत पुलिस कस्टडी में किसी ब्राह्मण की नहीं बल्कि दलित या मुस्लिम की हुई तो इसी भनक लगते ही जिले के आलाअधिकारी मीडिया से पहले ही घटनास्थल पर मौजूद होते। सांसद या विधायक छोड़िये, विपक्ष के नेताओं की भी अभी तक लाइन लग चुकी होती। सांत्वना देने वाले सियासतबाजों की इतनी भीड़ जमा हो जाती कि उन्हें संभालने के लिये पुलिस की अतिरिक्त फोर्स लगानी पड़ती। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और न होने वाला है। क्योंकि मरने वाला और उसके लिये बिलखने वाला कोई दलित या मुस्लिम नहीं बल्कि एक ब्राह्मण था और ब्राह्मण तो किसी का वोटबैंक होता नहीं फिर आपकी संवेदना कैसे जागेगी साहब!

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4 COMMENTS

  1. बिल्कुल सटीक और सही कहा आप ने संपादक जी ।अगर यही अन्य विरादरी रही होती तो सभी लोग हो हल्ला करते,किसी अन्य पार्टी का कोई नेता नहीं बोल रहा है।

  2. सवर्णो की किसी पार्टी को जरुरत नही
    थु है नेताओ पर

  3. निर्बल की आवाज बनी हमार पूर्वांचल टीम को बधाई, खास कर हरीश सिंह जी का

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