रिपोर्ट : दिनेश तिवारी
सुरत : धर्मों रक्षति रक्षितः के तत्वाधान में आयोजित नौ दिवसीय श्री राम कथा के आठवें दिन श्रोतागण, भक्तगण उस समय भाव विभोर हो गए जब प्रभु श्रीराम शबरी के हाथों से उसके जूठे बैर खाते हुए नवधा भक्ति की शिक्षा दे रहे थे।
आज की कथा का प्रारंभ पूज्य गुरुदेव संगीतमय कथाकार श्रद्धेय श्री बाल मुकुंद जी महाराज के द्वारा सीता हरण से हुई।
इसके पहले छठें व सातवें दिन की कथा में प्रभु श्रीराम के विवाह, राम बरात, राम कलेवा, राम राज्याभिषेक की तैयारी, राम बन गमन, दशरथ मरण, केवट प्रेम, राम भरत मिलाप, पादुका दान और सूपर्णखा अपमान की चर्चा सम्पन्न हुई थी।
एक ओर जनकपुरी और अवधपुरी में राम-सीता के विवाह को लेकर जनता खुशियां मना कर फुर्सत नहीं हुई थी कि राम राज्याभिषेक की सुचना ने, खुशियों में चार चांद लगा दिया।
मंथरा दासी को यह शोभायमान नहीं लगा और उसने रानी कैकेई के कान को विधिपूर्वक भरा। सर्वप्रथम रानी कैकेई ने उसको डाटा डपटा किन्तु बाद में रानी उसकी बातों में आ कर कोप भवन का रास्ता पकड़ लिया। राजा दशरथ मनाने की पुरजोर कोशिश करते हैं किन्तु असफल हो कर रानी को दो वरदान देते हैं।
पहला भरत को राजगद्दी और दूसरा राम को चौदह वर्षों का वनवास। माता-पिता की आज्ञा का पालन करते हुए श्री राम चन्द्र जी वन को जाने लिए तैयार होते हैं, साथ में माता सीता और लक्ष्मण भी वन की ओर प्रस्थान करते हैं।
राजा दशरथ की आज्ञानुसार मंत्री सुमंत तीनों लोगों को नगर घुमाकर वापस ले जाने की कोशिश करते हैं, किन्तु श्रीराम जी नहीं मानते। श्री राम के बिना रथ के घोड़े वापस आने को तैयार नहीं। सुमंत जी ने जैसे ही राजा दशरथ को बताया कि श्री राम चन्द्र जी वापस नहीं आए, उनके प्राण पखेरू उड़ जाते हैं।
वन में, गंगा नदी को पार करने के लिए प्रभु केवट को बुलाते हैं। किन्तु वह बिना चरण धोए नाव पर चढ़ाने को तैयार नहीं। कारण अहिल्या उद्धार। केवट चरण धोते हुए, श्री राम को केवट के सर पर हाथ का सहारा लेने को कहता। श्री राम मुस्कुराते हुए उसे आशीर्वाद देते हैं। पार उतरने पर श्री राम चन्द्र जी केवट को मुद्रिका देते हैं, किन्तु केवट मना करते हुए कहता है, हे प्रभु! जैसे आप मेरे घाट पर आए ओर मैने आप को पार किया वैसे ही जब मैं आप के घाट (भवसागर) पर आऊंगा तो आप भी मेरे समस्त कुल को पार उतार दीजिएगा।
आगे पंचवटी में प्रभु कुटिया बनाकर रहने लगते हैं तभी सूपर्णखा की नजर श्री राम पर पड़ी और उसने शादी का रस्ताव रखा। लक्ष्मण जी उसके नाक कान को काट देते हैं और वह अपने भाई लंकापति रावण को बताती है।
रावण मामा मारीच की सहायता से माता सीता का हरण कर लेता है। जटायू नामक गिद्ध बचाने की कोशिश करता है किन्तु असफल रहता है। राम चन्द्र जी सीता जी को खोजते हुए विलाप करते हैं। हे! खग मृग हे मधुकर श्रेनी, तुम देखीं सीता मृग नैनी।
रास्ते में जटायु गिद्ध मिलता है जो प्रभु के हाथों में अपना प्राण त्याग करता है, प्रभु उसका अंतिम संस्कार कर आगे बढ़ते हैं। जहां शबरी रोज की भांति प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा करती रहती है।
लम्बी लम्बी केसिया शबरी, रहिया बहारन लागे
आजु एंही रहिया अईहे, राम जी पहुनवा हो।
प्रभु सबरी को दर्शन देते हैं और नवधा भक्ति प्रदान करते हैं।
आगे सुग्रीव मित्रता होती है और हनुमान जी माता जी का पता लगाने निकलते हैं।
कथा में विशेष रूप से आशीर्वाद प्राप्त किया
श्री कृष्ण कुमार पाण्डेय जी (अध्यक्ष राष्ट्रीय ब्राह्मण समाज), श्री अनिल तिवारी जी (उपाध्यक्ष राष्ट्रीय ब्राह्मण समाज), श्री संतोष दूबे जी, श्री भरत भाई जी, श्री चंदन सिंह जी, श्री अवधेश नारायण पटेल जी, श्री सुरज सिंह जी, श्री विक्की सिंह जी, श्री बृजेश यादव जी, श्री बृजेश तिवारी जी, श्री अखण्ड सर जी और श्री दिनेश तिवारी जी।