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जब अमेरिका का प्रस्ताव ठुकरा कर इस सांसद ने बढाया था भगवा का सम्मान

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भदोही संसद वीरेंदर सिंह 'मस्त'

 

बात अगस्त 2016 की है। भारत के एक सांसद को अमेरिका ने किसानों के एक कार्यक्रम को संबोधित करने के लिये आमंत्रित किया था। जब सांसद जी वीजा के लिये अमेरिकी दूतावास गये तो उन्हें पगड़ी उतारने के लिये कहा गया। उन्होंने सीधे इनकार करते हुये कहा कि भगवा पगड़ी उनकी शान है, यदि इसे उतार कर ही वीजा मिलेगा तो अमेरिका का प्रस्ताव उन्हें मंजूर नहीं है और वे वीजा ठुकरा कर चले आये। उस सांसद की चर्चा उस वक्त मीडिया में छायी हुई थी। लोगों का कहना था कि जब अमेरिका जाने के लिये लोग कपड़े उतारने के लिये तैयार रहते हों, ऐसे में अपने भगवा स्वाभिमान के लिये पगड़ी न उतार कर सांसद ने देश का मान बढ़ाया है।
जी हां! यह बात सौ फीसदी सच है और ऐसा करने वाला कोई और नहीं बल्कि भदोही लोकसभा से तीसरी बार सांसद चुने गये विरेन्द्र सिंह मस्त थे।

गौरतलब हो कि जब देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उनके उपर गुजरात में हुये दंगे का आरोप लगा था। उसके बाद कांग्रेस के लगभग सौ सांसदों ने पत्र लिखकर अमेरिका से अनुरोध किया था कि श्री मोदी को वीजा न दिया जाये। वहीं देश में भाजपा की सरकार बनने के बाद अमेरिका खुद मोदी के सम्मान में खड़ा हो गया था। ऐसे में एक सांसद द्वारा अमेरिका का प्रस्ताव ठुकरा देना मामुली बात नहीं थी।

तीन बार चुने गये भदोही के सांसद

विरेन्द्र सिंह मस्त की पगड़ी उनकी खास पहचान है। यह पगड़ी वे हमेशा लगाये रहते हैं। संसद में उनकी पगड़ी दूर से ही नजर आती है। पहली बार 1991, दूसरी बार मिर्जापुर-भदोही सीट से दस्यु सुंदरी फूलन देवी को हराकर वे 1998 में 12 वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। 2009 में लोकसभा का चुनाव उन्होंने पूर्व पीएम चंद्रशेखर सिंह के पुत्र नीरज शेखर के खिलाफ लड़ा था, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिल पायी थी। मुंह की खानी पड़ी थी। तत्पश्चात भदोही से 2014 में मोदी लहर में तीसरी बार 16वीं लोकसभा के लिए चुने गए।

विरेन्द्र सिंह मस्त पर हमेशा बाहरी होने का ठप्पा लगता रहा है। इसके बावजूद उन्होंने तीन बार भदोही से जीत हासिल की। श्री मस्त की जन्मभूमि बलिया भले रही हो लेकिन उन्होंने भदोही को अपनी कर्मभूमि बनाया। भदोही में उनका स्वदेशी आश्रम है, जहां वे प्रत्येक शनिवार और रविवार को लोगों से मिलते रहे हैं। वीरेंद्र सिंह अपनी सभाओं में किसानों और उनकी समस्याओं की खूब वकालत करते हैं। गांव, देहात और यहां की खान-पान संस्कृति को बेहद सराहते हैं लेकिन किसान मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते वह किसानों के लिए बहुत कुछ नहीं कर पाए।

हमेशा लगता रहा बाहरी होने का आरोप

बलिया की भूमि पर जन्म लेने वाले सांसद विरेन्द्र सिंह की कर्मस्थली भदोही ही रही है। पिछले 30 सालों से वे भदोही में रहकर भाजपा को आगे बढ़ाने में लगे रहे। भाजपा के बुरे दिनों में भी उन्होंने पार्टी के प्रति सदैव निष्ठा दिखायी। 1988 से 1989 तक भदोही भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष रहे। 1989 से 1992 भदोही जिलाध्यक्ष रहे। 1991 में भदोही से पहली बार मिर्जापुर-भदोही संसदीय क्षेत्र से दसवीं लोकसभा के लिए निर्वाचित घोषित हुए। 1996 से 1998 तक भदोही भाजपा किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष पद पर रहे। 1998 में 12वीं लोकसभा के लिए दूसरी बार समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार और दस्यु सुंदरी फूलन देवी को पराजित कर भदोही में अपने पगड़ी की शान रखी। साल 2000 से 2004 तक राज्य समन्वयक स्वदेशी जागरण मंच के लिए काम किया। जिस व्यक्ति ने अपना पूरा राजनीतिक जीवन भदोही में लगा दिया, उसको बाहरी की संज्ञा देना कितना उचित है।

विकास कार्यों के प्रति रहा रूझान

विरेन्द्र सिंह मस्त यह कार्यकाल जिले के लिये महत्वपूर्ण रहा। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 21 सड़कों का नवीनीकरण तथा 20 सड़कों की स्वीकृति, भदोही में रिंग रोड और वाराणसी से जौनपुर व दुद्धी लुम्बिनी मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग का दर्जा, 124 पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार,
55 सोलर वाटर पंप, अंचल के 83 हजार गरीब परिवारों को धुआंमुक्त करते हुये गैस कनेक्शन, गंगा एक्शन प्लांन के तहत तटवर्ती 47 गांवों सहित अन्य गांवों को खुले में शौचमुक्त करने के लिये 25 हजार 968 शौचालयों का निर्माण, सभी बाजारों में अत्याधुनिक सुलभ शौचालयों का निर्माण, 52 हजार से अधिक सोलर स्ट्रीट लाइट और 300 बाजारों को एलइडी लाइट, भदोही, सुरियावां अभोली में मैटर्निटी होम विंग और औराई में ट्रामा सेन्टर के साथ ही गरीबों के इलाज के लिये सांसद निधि से 2 एम्बुलेंस सेवा, काशी नरेश राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में अत्याधुनिक वाचनालय के अलावा कृषि विज्ञान भवन का भी निर्माण, दीनदयाल ग्रामीण ज्योति योजना के तहत 1263 मजरों में विद्युतीकरण, ममहर, खमरिया, पाली, ज्ञानपुर, वहिदा, सीतामढ़ी, दुर्गागंज, मिसिराईनपुर स्थित विद्युत सब स्टेशनों को अपग्रेड जैसे कई कार्य उनके नाम जुड़े हुये हैं। किन्तु अपने कार्यों को सही तरीके से जनता के सामने पहुंचाने में अक्षम रहे हैं।

साधारण जीवन शैली किन्तु समर्पित कार्यकताओं से रही दूरी

भदोही सांसद विरेन्द्र सिंह मस्त की जीवन शैली बहुत ही साधारण रही है। तीन बार सांसद और भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहने के बावजूद कभी उनके साथ कोई सुरक्षाकर्मी नहीं देखा गया। स्वदेशी आश्रम पर लोगों से साधारण तरीके से मिलने वाले श्री मस्त कभी दूसरे नेताओं की तरह अपनी सुरक्षा के प्रति चिंतित नहीं दिखे। उनका कहना रहा कि जनता की वोट से जीतने वाला नेता सुरक्षा घेरे में रहने पर अपनी जनता से दूर हो जाता है। सुरक्षाकर्मियों के लिये जुगत भिड़ाने वाले नेताओं के लिये यह भी एक नजीर है कि किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उन्हें वाई श्रेणी की सुरक्षा मिली थी जिसे उन्होंने ठुकरा दिया था।

लेकिन साधारण जीवन शैली जीने वाले श्री मस्त के उपर हमेशा समर्पित कार्यकताओं की उपेक्षा का आरोप भी लगता रहा। श्री सिंह अपने आसपास सुरक्षा का घेरा तो नहीं बनाये, लेकिन आसपास चापलूसों की ऐसी फौज खड़ी कर ली, जो उन्हें भरमाते रहे। आम जनता विकास कार्यो के अलावा यह भी सोचती है कि उनका प्रतिनिधि उनके सुख दुख में भी भागीदार बने किन्तु ऐसा हो नहीं पाया। कौन सही और कौन गलत है। इसका फैसला लेने में उनका सरल स्वभाव ही उनके आड़े आया। भले ही उनके उपर एक ठाकुर नेता होने का आरोप लगता रहा किन्तु ब्राह्मणों को उन्होंने हमेशा तरजीह दी। ब्राह्मण नेता शैलेन्द्र दूबे टुन्ना को उन्होने अपना प्रतिनिधि बनाया। एक प्रतिनिधि का कार्य होता है कि जनप्रतिनिधि की गैर मौजूदगी में प्रतिनिधि ही मुख्य भूमिका में होता है किन्तु ऐसा नहीं हो पाया। श्री दूबे सांसद की गैर मौजूदगी में लोकसभा क्षेत्र तो दूर अपने जिले में भी उपस्थिति दर्ज कराने में अक्षम रहे। समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और प्रतिनिधि की जनता के प्रति उदासीनता ने सांसद की छवि को धूमिल किया, जो उनके टिकट न मिलने का कारण बना।

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