Home मन की बात हम कहाँ आ गये ?

हम कहाँ आ गये ?

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तिरछी नज़र……

परम आदरणीय, आपके जादुई व्यक्तित्व का चमत्कार कहें या अपने अन्दर आपके प्रति अन्ध आस्था… हर दल/सरकार से तिरस्कृत हम सवर्ण एक खेवनहार के रूप में आपको अवतरित सत्ता समझने लगे थे।

देखिये न, नोटबन्दी में विपक्षी कितना चिल्लाये थे ? कितना भडकाये थे ? लेकिन बैंक की कतारों में जूझते हुये हमने आपकी जय जयकार ही की।

मन्दिर मुद्दा नहीं सुलझा… कोई बात नहीं, जरूर आपकी कोई मजबूरी रही होगी । हमने कभी इस मुद्दे को उछाला ही नहीं।

कश्मीर के मुद्दे पर आशायें थी कि आप इस ज्वलन्त मुद्दे को जरूर हल करेंगे । आपने कोशिश नहीं की तो क्या हुआ ? हमने आपका झन्डा बुलन्द रखा। जरूर कुछ विवशता होगी।

आरक्षण पर हम मुँह बाये आप की ही तरफ तो ताक रहे थे।  किसी का हक न छीनकर हमें भी उस लाभ से जुड़ जाने की अभिलाषा थी, लेकिन निराशा हुई कि हम वंचित के वंचित ही रह गये। हम कुछ संतुष्ट हुये थे कि अयोग्य बेचारे भी अफसर हो गये और हमारे योग्य सवर्ण भाई बड़ी मुश्किल से कुछे एक सफाईकर्मी के पद पर आसीन हुये।

हमें आप पर गर्व था और खाली हाथ होने के बावजूद सिर्फ आपका नाम और नाम का नशा छाया रहता था।

तन्द्रा तो तब भंग हुई जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी करते हुये आपने एक अध्यादेश लाकर हमें पंगु बना दिया । बिना किसी अपराध के पहले जेल फिर जाँच का विधान बना दिया।

हम किंकर्तव्यविमूढ हो गये।
विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि बिना चारा पानी के हमारे गले को यूँ रेता जायेगा और हमारी आने वाली पीढियों के बच्चे असहाय अवस्था में अपने भगवान को कोसेंगे कि किस वंश में जन्म ले लिया ?…

यहां से हमारी सहनशीलता की सीमा समाप्त होती है।

कुछ आरोप लगेंगे,,, तो कुछ साथ मिलेगा।

हम करें तो क्या करें…?

सबसे बड़ा भरोसा आपका ही का था लेकिन सबसे बडी चोट भी आपसे ही पहुँची।

राष्ट्रवाद की घुट्टी जो आप पिला रहे थे, हम खाली पेट ही सही,,, पंगु ही सही,,, पीते गये,,, पीते रहेंगे।…

वन्दे मातरम

देवराज मिश्र
राष्ट्रीय कवि/लेखक/पत्रकार
भ्रमणध्वनि – +९८१९ ४५९ ४४८

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