Home भदोही सपा भदोही में फूट डालने की कौन कर है रहा नाकाम कोशिस

सपा भदोही में फूट डालने की कौन कर है रहा नाकाम कोशिस

727
1
samajwadi party

आधुनिक राजनीति में पैसे का बड़ा प्रभाव होता है। जब आपकी जेब में पैसा हो तो चंद लोगों को इकठ्ठा करके राजनीतिक उथल पुथल मचायी जा सकती है। व्यवसायी से नये नये नेता बने एक ऐसे ही व्यक्ति ने पैसे के दम पर लोगों को भड़का कर बिन्द समाज को समाजवादी पार्टी के खिलाफ खड़ा कर दिया है, जिससे भदोही की समाजवादी पार्टी में फूट पड़ गयी है। ऐसा हम नही कहते बल्कि समाजवादी के खेमें में ही ऐसी चर्चा होनी शुरू हो गयी है।

समाजवादी पार्टी भदोही
व्यवसायी से नेता बने राजेन्द्र बिन्द

बता दें कि भदोही जनपद के जगतपुर सुरियावां निवासी राजेन्द्र बिन्द का मुम्बई सहित विदेशों में भी व्यापार चल रहा है। व्यवसायी श्री बिन्द कभी भदोही की राजनीति से जुड़े नहीं रहे और न ही भदोही जनपद में कोई ऐसा कार्य किया जिससे यहां के लोगों के लिये लाभप्रद होता। कई वर्षों तक अपनी मातृभूमि से अलग रहने के बाद दिल में राजनीतिक महात्वाकांक्षा हिलोरे लेने लगी तो भदोही आकर सपा की सदस्यता ग्रहण कर लिये। श्री बिन्द की राजनीतिक महात्वाकांक्षा उनलोगों को रास नहीं आयी जो वर्षों से पार्टी के लिये अपना खून पसीना बहा रहे हों।

samajwadi bhadohi
ऐसे ही चंद लोगों की खड़ा कर फोटाग्राफी करके हो रही नाकाम राजनीति

उनके दिल में एक कसक हो गयी कि अपनी मेहनत के बल पर भदोही में समाजवादियों ने जो नींच को मजबूत करने का काम किया है, उसपर कोई बाहर से आकर पैसे के दंभ में अपना महल खड़ा कर ले। सपा के कार्यकर्ताओं का कहना है कि श्री बिन्द अपने व्यवहार से पार्टी में अपना स्थान बनाने की जगह लोगों को पैसे का रोब दिखाकर नेतागिरी करना चाहते हैं। श्री बिन्द न तो पार्टी पदाधिकरियों और न ही कार्यकर्ताओं को अपने व्यवहार से जीतने की कोशिस किये। ऐसे में उन्हें कोई भी अपना नेता मानने को तैयार नहीं है।

बता दें कि श्री बिन्द भदोही से सपा के टिकट पर सांसद बनने का सपना पाले हैं। समाजवादी पार्टी के पिछले टिकट बंटवारे पर नजर डालें तो सपा पैसा नहीं बल्कि कैडर को तरजीह देती है और यहीं ​राजेन्द्र बिन्द शायद भूल गये थे। पिछले दिनों सपा की जिला कमेटी में हुई बैठक में अपना आपा खो दिये और सपा के जिला महासचिव ओमप्रकाश यादव और युवजन सभा के जिलाध्यक्ष मनोज यादव से उलझ गये। एक अच्छे नेता के गुण होते हैं कि पार्टी के अंदरूनी विवाद में मिलकर जुलकर मामले का हल निकाले जिससे पार्टी की साख पर बट्टा न लगे बल्कि पार्टी की छवि बरकरार रहे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं बल्कि श्री बिन्द ने पार्टी के बड़े पदाधिकरियों पर बिना आगा पीछा सोचे मुकदमा दर्ज करा दिये। जिसका परिणाम हुआ कि उन्हें पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया। सोचने वाली बात है कि उनके निष्कासन से पार्टी के पुराने कार्यकता व पदाशिकारी खुश ही दिखे और चुप्पी साधे रहे। इस कार्रवाई से तिलमिलाये राजेन्द्र बिन्द पार्टी के पदाधिकारियों को सबक सिखाने की नाकाम कोशिस में जुट गये।

सपा की जिला ईकाई द्वारा की गयी यह उपेक्षा श्री बिन्द को रास नहीं आयी और उन्होंने पार्टी के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया। चर्चा है कि श्री बिन्द ने अपने कुछ गुर्गो को यह प्रचारित करने का निर्देश दिया कि बिन्द बिरादरी में जाकर बतायें कि यह बिन्दों को अपमान है। तरीका तो अच्छा था लेकिन श्री बिन्द के गुर्गे भी उतने कारगर नहीं हुये या फिर बिन्द समाज इस राजनीति से दूर रहना चाहता था। लेकिन इतना अवश्य हुआ कि दस पांच लोगों को खड़ा करके हाथ उठवाकर फोटो खिंचवा लिया और यह प्रचारित करने लगे कि बिन्द समाज उनके साथ हुये कथित व्यवहार से आहत है और सपा को सबक सिखाना चाहता है।

विरोध करने वालों की संख्या देखकर ही पता चल जाता है श्री बिन्द का भदोही में राजनीतिक कद

श्री बिन्द ने शायद नहीं सोचा कि चंद लोगों को कही भी खड़ा करके हाथ उठवाकर फोटो खिंचा लेने से राजनीति नहीं होती। यदि बिन्द समाज उनके साथ है तो घटना के बाद एक बड़ी जनसभा करते और बिन्दों को जमा करके पार्टी में संदेश देते कि बिन्द समाज उनके साथ है। लेकिन शायद वे भी जानते हैं कि ऐसा कर पाना असंभव है। जो बिन्द समाज प्रत्याशी के नाम पर हमेशा पाला बदलता रहा हो। विभिन्न पार्टियों में बंटकर वोट करता हो, जो कभी पूरी तरह से सपा के साथ न रहा हो। वह भला चंद दिनों पहले राजनीति में आये राजेन्द्र बिन्द के साथ कैसे होगा।

श्री बिन्द अभी नये नये राजनीति में आये हैं और नया आदमी पहले आता है तो अपनी पहचान बनाने के लिये फड़फड़ाता भी बहुत है, लेकिन यह तो राजनीति है और यहां पैसे का रोब नहीं बल्कि सही जगह उसका उपयोग चलता है, जो बेवजह फड़फड़ाने से नहीं होगा। सबसे बड़ी बात कि सपा का यादव पारंपरिक वोट रहा है, फिर उस वोट बैंक को नाराज करके श्री बिन्द कौन सी राजनीति करेंगे। निश्चित तौर पर जब यादव बिन्द के बीच यह स्वघोषित नेता फूट डालकर अपनी राजनीति पारी खेलना चाहेंगे तो यादव ही मजबूत दिखेगा जो श्री बिन्द के लिये हानिकारक होगा। अब तो पुराने सपा कार्यकर्ता यह गाने लगे हैं कि ‘राजेन्दर पार्टी के लिये तूं तो हानिकारक है।’