देश में आजादी के कुछ दशकों तक पत्रकारिता में ऐसी पवित्रता होती थी कि लोग पत्रकारों को किसी बडे प्रभावशाली नेता से कम नही आंकते थे। और इसकी वजह यह थी कि लोग पत्रकारिता को समाजसेवा के रूप में देखते थे। उस समय के पत्रकारों के कलम से एकता, अखण्डता व देशभक्ति के ही शब्द निकलते जो भले ही कम लोग पढते देखते लेकिन जो लोग पढते देखते उनके अन्दर भी देश के प्रति राष्ट्रभक्ति का संचार हो जाता। और लोग देश के हित को आगे रखकर कार्य करते लेकिन धीरे-धीरे पत्रकारिता का बाजारीकरण हो गया। जिसका सटीक उदाहरण आज देश में देखने को मिल रहा है। आज तो ऐसे-ऐसे पत्रकार और मीडिया घराने है। जो प्रेस की स्वतन्त्रता की आड़ में किसी देशद्रोही से कम कार्य नही करते है। इसके पीछे उनकी गलती नही है बल्कि उनको टीआरपी और पैसे की बहुत भूख है। जिसके वजह से कुछ मीडिया घराने और पत्रकार देश को बदनाम करने से भी पीछे नही रहते है।
भारत की जनता आज भले ही शिक्षित हो रही है लेकिन मीडिया के जादू को समझना सब के बस की बात नही है। भारत के कुछ टीवी चैनल खबरों को इस तरह से तोड मरोड़कर प्रसारित करते है। कि जिस चीज को दिखाना चाहते है उसका उनकी उस रिपोर्ट से तनिक भी सम्बन्ध नही है, लेकिन जनता को इस तरह गुमराह कर देते है कि लोग उनके तरफ से परोसी गई झूठी खबर को लोग सच्ची खबर मान लेते है। कुछ मीडिया घराने और उसके पत्रकार वही दिखाते है जो उनको फंडिंग करने वाले उनके ‘आका’ संकेत करते है। देश की आम जनता को यह पता नही है कि इन मीडिया के पीछे का सच क्या है? देश की ज्यादातर मीडिया समूह किसी बडे पूंजीपति या विदेशी फंड पर संचालित हो रही है। तो जाहिर सी बात है जो इन मीडिया समूह का मालिक होगा वह भी कही न कही किसी राजनैतिक दल या किसी विशेष धर्म या समुदाय का समर्थक होगा, किसी विशेष विचारधारा का व्यक्ति होगा। तो आखिर वह क्यों चाहेगा कि उसके द्वारा संचालित मीडिया समूह या चैनल/अखबार में उसके विरोधी विचारधारा से जुडी खबरों को जगह दी जाए? इसके पीछे की सच्चाई यह है कि पत्रकारिता के भेष में कमाई का जरिया जरूरी है। देश के टीवी चैनल जो एक ही खबर को अलग अलग ढंग से मंडित करते है। जिसमें कुछ चैनल उस खबर की सकारात्मक पहलू को दिखाते है तो कुछ नकारात्मक।
भारत में लोग मीडिया की वास्तविकता से धीरे धीरे रूबरू हो रहे है। जिससे मीडिया का दोहरा चरित्र लोगो के सामने आ भी रहा है। इस दोगलेपन के पीछे है ‘पैसा’। जो मीडिया लोगो को जागरूक करके राष्ट्रहित की भावना जागृत करता था वही कुछ बिकाऊ मीडिया घराने व पत्रकारों की वजह से आज लोग राष्ट्र विरोधी कार्यो में लिप्त है। और कुछ पत्रकार चंद पैसो और टीआरपी के लिए देश के माहौल को खराब करने के लिए तुले है। इसके पीछे कही न कही उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी है जो कुछ पत्रकारों को ‘मीडिया से मंत्री’ का दिवास्वप्न दिख रहा है।
हालांकि 2020 के आगाज होते ही साहिनबाग में मीडिया को सही संदेश नही मिला और मामला कितना बिगड़ा वह तो वही लोग बता सकते है जो इस छोटी सी खबर बडा रूप देने गये थे लेकिन उनका ही मामला लोगो ने सेटल कर दिया और एक पत्रकारिता पर प्रश्नचिह्न लग गया? आखिर पत्रकारिता करने गये एक पत्रकार के साथ ऐसी हरकत क्यों? क्या अब लोगो को पत्रकारों के कार्यों से विश्वास उठ गया है? या यह पत्रकारिता के दोहरे चरित्र का परिणाम का एक छोटा सा नमूना था। अभी जेएनयू में एक महिला पत्रकार के साथ लोगो ने बदतमीजी की थी लेकिन वहां की कुछ महिलाओं ने उस महिला पत्रकार को सुरक्षित बाहर निकाल लिया लेकिन साहिनबाग की घटना तो मीडिया के कार्यो पर प्रश्नचिह्न सा लगा दिया। हालांकि कुछ लोग इसे पूरी मीडिया के लिए नही बल्कि केवल उस मीडियाकर्मी से जोडकर देख रहे है। जो हमेशा सेक्युलरिज्म की दुहाई देता है और बाद में उसी से उसे झटका लगा। इस मामले कुछ जानकारों का मानना है कि इस तरह के विशेष कार्य केवल ‘एक ही पत्रकार’ के लिए आरक्षित है बाकी लोगो के लिए यह सही नही है। हालांकि पत्रकारिता की इस तरह की दुर्दशा कराने के पीछे पत्रकार या मीडिया घराने ही जिम्मेदार है जो चंद पैसों की लालच में अपने जमीर को बेचकर मानवाधिकार समेत अन्य अधिकारों की आड़ में देश को बदनाम करते है।
देश में गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, बीमारी और अन्धविश्वास जैसी कुप्रथाएं व समस्याएं देश के कोने में है। लेकिन बिकाऊ मीडिया केवल नेता और पूंजीपतियों की हर पल की खबर को अपनी सूर्खियां बनाते है। वही उसी क्षेत्र में एक गरीब बीमारी से मर रहा है उसकी खबर दिखाने की हिम्मत नही है। क्योकि ये बिकाऊ मीडिया के लोग जानते है कि नेता या पूंजीपति की खबर दिखाऊंगा तो उनकी कृपा मिलती रहेगी। किसी गरीब की खबर दिखाने में क्या मिलेगा न टीआरपी न पैसा। चैनल वालों को इक्सक्लूसिव रिपोर्ट दिखाते समय कभी यह ध्यान नही आता कि भारत में रोज गरीब और बीमार बिना भोजन व दवा के मर रहे है। इसकी इक्सक्लूसिव रिपोर्टिंग नही करते है। आखिर यह मीडिया का दोहरा चरित्र नही है तो क्या है? भारत में नेताओं और पूंजीपतियों की खबर के अलावा और कोई खबर मिलती ही नही इन चैनल वालों को? जब किसी के हाथ की कठपुतली ही बन कर पत्रकारिता करनी हो तो पत्रकारिता करना बेईमानी है। इस चीज को नजरअंदाज नही किया जा सकता कि आज आधुनिक युग में पैसो की जरूरत नही है। पैसों को सभी को जरूरत है और हमेशा रहेगी लेकिन यह भी ध्यान होना चाहिए कि कुछ पैसों की वजह से हम अपने देश और संस्कृति को बदनाम करें और पैसों के दम पर गलत को सही और सही को गलत दिखाने का प्रयास करें। जो राष्ट्रद्रोहिता से कम नही है। देश में बहुत समस्याएं है और उनकी आवाज उठाने वाले कम है। पत्रकारिता एक ऐसा अस्त्र है कि इसके माध्यम से सच्चे लोगों की बात को बुलन्द किया जा सकता है। लेकिन चंद पैसों के लिए पत्रकार और मीडिया घराने किसी विचारधारा, धर्म, पंथ, दल से प्रभावित होकर गलत को सही और सही को गलत सिद्ध करना चाहते है जो सर्वथा अनुचित है।
पत्रकारिता करने वालों से आग्रह है कि पत्रकारिता को ऐसा रूप दें जिससे देश की एकता, अखण्डता बनी रहे और देश की छवि विश्व के अन्य देशों में एक अच्छे देश के रूप में जाये। मानते है कि कुछ लोग सरकारों की विचारधारा से अलग विचारधारा रखते है लेकिन ठंडे दिमाग से यह सोचकर कोई कार्य किया जाये जिससे भारत की छवि विश्व पटल पर धूमिल न हो। भारत की एकता और अखण्डता को देखकर विश्व के अन्य देश हमेशा यही सोचते है कि आखिर भारत में विभिन्न धर्म, सम्प्रदाय, खान-पान, रहन-सहन के अलावा भी लोग आपस में प्रेम व सौहार्द्र से रहते है। यही भावना बनाएं रखने के लिए सभी को राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखकर कार्य करना है। रही बात मीडिया की कठपुतली बनने की तो बेशक फंडिंग करने वाले अपने हिसाब से खबरे चाहेंगे लेकिन एक सच्चा पत्रकार और देशभक्त कुछ पैसों के लिए राष्ट्र हित से समझौता नही करेगा। भारत की एकता, अखण्डता और तरक्की में आइए हम सब मिलकर काम करें। जिससे भारत का नाम हमेशा विश्व पटल पर चमकता रहे।