भारतवर्ष विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। सत्ता परिवर्तन यहाँ के जनता के हाथों में हैं। जनता चाहे तो किसी का भी तख्तापलट कर सकती है। लेकिन जनता के पास अधिकार होते हुए भी कहीं न कहीं जनता की अनदेखी हो जाती है। इस ‘राजनैतिक लोकतंत्र’ में अधिकतर राजनीतिज्ञ केवल अपना विकास करने में लग जाते हैं और जनता के अधिकारों का हनन करने में लग जाते हैं। शायद इसीलिए हमारा देश अभी तक विकासशील देशों की श्रेणी में ही शामिल है। रोजगार की समस्या, गरीबी, शोषण, शिक्षा का अभाव इत्यादि आज भी हमारे देश में व्याप्त है। इसका कारण जन-जागरूकता का अभाव और कुछ हद तक जातिवादी व सम्प्रदायवादी विचारधाराएं भी हमारे देश के पिछड़ेपन का कारण बनती हैं। क्योंकि जातिवादी व सम्प्रदायवादी विचारधाराओं का पलड़ा भारी होने से मानव समाज बंट जाता है, मानव समाज में एकता का अभाव पनपता है। जिससे हमारे समाज का हमारे देश का सर्वांगीण विकास सम्भव नहीं हो पाता।
हमारे देश में मतदान के माध्यम से हमें अपना जनप्रतिनिधि चुनने का अधिकार है और चुने हुए जनप्रतिनिधि अपना नेता चुनते हैं। हम जैसा प्रतिनिधि चुनेंगे, वैसा ही कार्य वह देश के लिए करेगा। यदि हम अनैतिक व्यक्तियों को चुनेंगे तो वह अनैतिक कार्य ही करेगा। और यदि हम ईमानदार नैतिकवान जनप्रतिनिधि का चुनाव करेंगे तो निश्चित रूप से वह देश के प्रति, देश की जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए नैतिक आधार पर देश के विकास के लिए सतत प्रयास करेगा। इसमें मन में प्रश्न आता है कि हम नैतिकवान व्यक्तियों की परख कैसे करेंगे, क्या सभी दिखने में नैतिकवान या ईमानदार सच में ईमानदार रहेंगे? तो इसका जवाब ये है कि हमारा विवेक इतना समझने में सक्षम रहता है कि हम नैतिक व अनैतिक व्यक्तियों की पहचान कर सके। यदि कुछ के स्वभाव में नकारात्मक बदलाव होता भी है तो भी सत्ता में नैतिकवादियों की संख्या ज्यादा होने से देश के विकास में आने वाली बाधाएं कमजोर पड़ेंगी। जब नैतिकवान जनप्रतिनिधि चुना जाएगा तो वह नेता भी नैतिकवान ही चुनेगा।
आज देश में उपज रहे समस्याओं के कारण केवल चुने गए जनप्रतिनिधि नहीं है, इन समस्याओं के जिम्मेदार हम भी हैं। कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इसके जिम्मेदार हम यानी देश की जनता ज्यादा है। क्योंकि हम ऐसे लोगों को चुनकर सदन भेजते हैं कि हम उनसे देश के विकास के लिए कोई प्रश्न भी नहीं पूछ सकते।
हम बाहुबली को चुन कर भेज देते हैं, गुंडों को चुनकर भेज देते हैं, भ्रष्टाचारियों को चुनकर भेज देते हैं। यदि कोई हमारे बीच का ईमानदार, सरल स्वभाव व्यक्तित्व वाला, आर्थिक रूप से मध्यमवर्ग या निम्नवर्ग का व्यक्ति चुनाव लड़ जाए तो ‘हम मतदाता’ मतदान पूर्व ही स्वयं घोषित कर देते हैं कि फलां व्यक्ति नहीं जीतेगा। यदि कोई बाहुबली या बहुत बड़ा पूंजीपति होगा तब हमारी प्रतिक्रिया होती है कि फलां आदमी बहुत पैसे वाला है बहुत बड़ा गुंडा है, पक्का जीत जाएगा। जबकि हमारे मन में ये विचार आने चाहिए कि हम जिसको वोट देंगे वह जीतेगा या हम ईमानदार व्यक्ति को वोट देंगे वह जीतेगा।
चौक चौराहे पर चर्चाओं में अलग अलग दलों के लोगों से अक्सर सुनने को मिलता है कि भइया हमारा मुखिया अच्छा है, क्षेत्रीय सांसद/विधायक/जनप्रतिनिधि कोई भी हो हम चुनेंगे चाहे वह कैसे भी हों। ऐसे लोगों से देश के जिम्मेदार नागरिक एक प्रश्न अवश्य पूछें कि “यदि आपका मुखिया इतना अच्छा है तो देशद्रोहियों,गुंडों,भ्रष्टाचारियों, निष्क्रिय व्यक्तियों, बाहुबलियों अथवा लुटेरों को टिकट क्यों देते है?” यदि वास्तव में दलों के मुखिया ईमानदार हैं तो ईमानदार उम्मीदवारों को मैदान में उतारें और यदि ‘दल’ ऐसा नहीं करते हैं तो ‘दल-दल’ से बाहर आये और अपना स्वतंत्र जनप्रतिनिधि चुनें।
देश में हो रही ‘लोकतंत्र की हत्या’ के जिम्मेदार सबसे ज्यादा हम स्वयं हैं इसके बाद चुने गए ऐसे जनप्रतिनिधि जो देश के प्रति, देश की जनता को धोखा देकर केवल देश का धन लूटकर
अपने विकास में लगे रहते हैं। यदि हम देश के सच्चे नागरिक हैं तो हमें अपना कर्तव्य निर्वहन करना होगा। जहाँ भी देश के साथ गलत हो रहा है उसके विरुद्ध हमें संग्राम करना होगा, हमें अपने देश के विकास के लिए संवैधानिक लड़ाई लड़नी होगी। देश की जनता को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजग रहना होगा अन्यथा ‘लोकतंत्र की हत्या’ होती रहेगी और हम ढूंढते रह जाएँगे कि “लोकतंत्र का हत्यारा कौन?”
जय हिंद-वन्दे मातरम