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बगैर लाइसेंसी दवा दुकानों का संरक्षणदाता कौन…?

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हमार पूर्वांचल

बस्ती। जहां प्रदेश सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक के द्वारा भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात किया जा रहा है वही जनपद के औषधि प्रशासन विभाग के अधिकारी व कर्मचारी अपने निजी स्वार्थ में सरकार के सारे दावों को खोखला साबित कर रहे हैं। मिली जानकारी के अनुसार जनपद में कुल थोक दवा की 607 व फुटकर दवा की 1186 लाइसेंसी दुकाने कागजी आंकड़े के अनुसार संचालित हो रही हैं। जबकि सूत्रों की मानें तो दुकान की स्थित कागजीआंकड़े से काफी अलग है।

शहर से लेकर गांव व कस्बों तहसील मुख्यालयों पर धड़ल्ले से संचालित हो रही दवा की दुकानों की बात की जाए तो यह आंकड़ा कागजी आंकड़े से दसाे गुना दुकानें संचालित हो रही हैं। जिस के संबंध में जानकारों द्वारा यह बताया जाता है कि दुकाने बगैर लाइसेंस व सरकारी मानक के विपरीत संचालित हो रही हैं। उन दुकानों से विभाग का मासिक सुविधा शुल्क बंधा हुआ है, जिसे कि विभागीय अधिकारी व कर्मचारी को खुली छूट दिए हुए हैं। इतना ही नहीं जो दुकाने लाइसेंस पर भी संचालित हो रही हैं उनमें से भी अधिकांश दुकानें विभागीय मानक को पूरा नहीं करती। जिस पर कि इनके मासिक सुविधा शुल्क बंधे हुए हैं, लेकिन बगैर लाइसेंस की दुकानों से इनके सुविधा शुल्क कुछ कम है जिनकी वसूली प्रतिमाह विभागीय लिपिकाे या फिर कस्बों या क्षेत्र में तैनात एजेंटों द्वारा किया जाता है जो कि लाकर सीधे विभाग में पूरी इमानदारी के साथ पहुंचा देते हैं और विभाग आंखें बंद किए रहता है।

इतना ही नहीं नियमानुसार सभी फुटकर दवा की दुकानाे पर फार्मासिस्ट का होना अनिवार्य होता है। तभी फुटकर दवा की दुकान हेतु लाइसेंस दिए जाने का प्रावधान है, जिससे कि दवा की पर्ची के ऊपर लिखी दवा अलग न हो और मरीजों के स्वास्थ्य से कोई खिलवाड़ न हो, लेकिन यहां स्थिति ठीक इसके विपरीत है। शायद ही किसी दुकान पर फार्मासिस्ट मौजूद रहते हैं। फार्मासिस्टाे की भी खूब कमाई होती है वह कागजी खानापूर्ति हेतु सुविधा शुल्क लेकर अपना प्रमाणपत्र दुकानदारों को दे देते हैं और दुकान पर कभी नहीं बैठते जिससे कि मरीजों के पर्चे पर लिखी दवा गलत होने का अंदेशा हमेशा बना रहता है, लेकिन विभाग को किसी के स्वास्थ्य से कुछ भी लेना देना नहीं होता इन्हें सिर्फ अपने सुविधा शुल्क से ही मतलब होता है।

इतना ही नहीं शासन द्वारा विभाग में लाइसेंस हेतु अनियमितताओं को देखते हुए भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने हेतु ऑनलाइन आवेदन कर दिया गया जिससे कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सके लेकिन यहां भी तू डाल- डाल मैं पात- पात के मुहावरे को चरितार्थ करते हुए हैं , क्योंकि आवेदन की जांच विभागीय अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा ही किया जाता है। जानकारों की मानें तो फोक के लिए 80 हजार व फुटकर दुकान के लिए लाइसेंस हेतु ₹60000 शुल्क निर्धारित किया गया है। जिसे की अदा करने पर विभाग द्वारा आवेदन को निरस्त करने से लेकर अनेकों कमियां निकाल कर एक तरफ से दौड़ाया जाता है जैसे कि अंत में आवेदक को सुविधा शुल्क देने के बाद ही उसके वर्क देने के बाद ही मिल पाता है।  जिस के संबंध में यह बात बताया जाता है कि इसकी सारी सेटिंग बरसों से किसी एक ही जगह पर जमे लिपिक के माध्यम से किया जाता है । यहां तक कि फार्मेसिस्ट नहीं या फिर कोई प्रपत्र ना हो सुविधा शुल्क देने पर विभागीय लिपिक द्वारा उसे भी पूरा करा दिया जाता है।  जिस के संबंध में विभाग की गोपनीय जांच कराई जाए तो सारी कलई खुल कर सामने आ जाएगी।

अभी हाल ही में कैली चिकित्सालय के पास संचालित अनेकों दुकानों का जिला अधिकारी द्वारा औचक निरीक्षण किया गया तो अनेकों दुकानों में कमियां पाई गई। जिसको की जिलाधिकारी काे सील कर आने तक के आदेश देना पड़ा। इसके बावजूद भी विभागीय अधिकारियों के कान पर जूं तक नहीं रेगा और दूर ना जा कर सिर्फ शहरी क्षेत्रों में संचालित हो रहे दुकानों की जांच कराई जाए तो फार्मासिस्ट की ना मौजूदगी सहित अनेकों कमियां उभर कर सामने आ जाएंगे। जिससे कि वहां विभाग सरकार के भ्रष्टाचार मुक्त शासन पर बट्टा लगा रहा है। वहीं मरीजों के अहित होने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता हैं।

जैसे कि लाइसेंस से प्राप्त होने वाले राजस्व की क्षति हो रही है वहीं सरकार के भ्रष्टाचार मुक्त शासन पर भी पानी फिरता नजर आ रहा है। जिस के संबंध में जब औषधि निरीक्षक सीमा वर्मा से बात की गयी तो उन्होंने खुद को अनभिज्ञ बताया। कहा की हमें इस बारे मे कोई जानकारी नहीं है।

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