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जो करे जेब गरम भदोही पुलिस करे उस पर करम! योगी जी क्या यहीं है आपकी कानून व्यवस्था?

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गांव गिरांव क्षेत्रों में कुछ देहाती देवी देवता और आत्माओं की पूजा होती है। जिन्हें लोग विभिन्न नामों से जानते हैंं इन गंवई देवी देवताओं की विशेषता होती है कि जबतक इन्हें चढ़ावा नहीं मिलता है, तबतक यह लोग न किसी की सुनते हैं और न ही किसी की मन्नत पूरी करते हैं। यहीं नहीं बल्कि इन्हें चढ़ावा नहीं मिला तो बकायदा नाराज भी हो जाते हैं और लोगों का बुरा भी कर देते हैं।
गजब बात यह भी है कि ऐसे देवी देवताओं के बकायदा एजेन्ट भी होते हैं, जिन्हें ओझा या सोखा कहा जाता है। जो यह बताते हैं कि किस देवी देवता या आत्मा को कौन सी भेंट चाहिये। जिसमें मुर्गा, गांजा, दारू आदि सामानों सहित नकदी भी शामिल होती है।

बिल्कुल उसी तरह आजकल भदोही पुलिस हो गयी है। लोगों में चर्चा है कि  जिले के कुछ लगभग सभी थानों में वर्दी पहने देवतारूपी लोग तैनात हैं, जो बिना चढ़ावे के किसी फरियादी की सुनते नहीं हैं और इन्हें चढ़ावा क्या चढ़ेगा इसके ओझा व सोखा रूपी चंद पुलिसकर्मी व सत्ता के नाम पर तथा कथित पत्रकारिता के नाम पर रोजाना थानों में बैठोकी करने वाले कुछ दलाल भी शामिल होते हैं जो बकायदा सेंटिंग करके अपना भी खर्च चला लेते हैं। यह नजारा बकायदा सभी थानों में देखा जा सकता है। इन वर्दीधारी देवताओं और आत्माओं की जेबभरो नीति ने पीड़ितों की पीड़ा बढ़ा दी है और दबंग अपनी मनमानी पर उतर आये हैं।

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दबंगो ने महिला की ऐसी कर दी हालत

गौरतलब हो कि शनिवार को कुछ दबंगों ने एक घर में घुसकर एक गरीब महिला के कपड़े फाड़ दिये। उसे अर्धनग्न कर दिया। उसे घसीट—घसीटकर पीटा। वह रोती रही, गिड़गिड़ाती रही। रहम की भीख मांगती रही, किन्तु दबंगों की दिल नहीं पसीजा। जिस भदोही के सांसद की पहचान राष्टीय स्तर की हो। जिस भदोही के दो विधानसभाओं में भाजपा के विधायक हों, उसी जिले में कानून व्यवस्था कराह रही है।

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हद तो यह है कि जिस थाना क्षेत्र में मानवता को तार—तार कर देने वाली यह घटना घटित हुई है, वह विधानसभा सिर्फ भदोही नहीं बल्कि पूर्वांचल में बाहुबली माने जाने वाले विधायक विजय मिश्रा का है। अफसोस की इतनी बड़ी घटना घटित होने के बाद भी गोपीगंज के प्रभारी थानाध्यक्ष कार्रवाई करने के बजाय आरोपियों को बचाने में जुट गये। जिस महिला को घसीट—घसीटकर पीटा गया, उसके खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया। गोपीगंज पुलिस दोनों पक्षों के खिलाफ साधारण मारपीट का मुकदमा दर्ज करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली। यहीं नहीं जिले के आलाधिकारी भी इस मामले में सही जवाब नहीं दे पा रहे हैं।

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देखा जाय तो जिले का यह पहला मामला नहीं है जिसमें पुलिस लीपापोती करने में जुटी है, बल्कि जिले के थानों में अक्सर रोजाना ही ऐसे मामले देखने को मिल जाते हैं। जब भी कहीं किसी मामले को लेकर मारपीट होती है तो पुलिस सिर्फ उसके खिलाफ ही कार्रवाइ्र नहीं करती है जों वास्तव में दोषी होता है बल्कि दोनों पक्षों के खिलाफ कार्रवाई करके अपने कर्तव्य पूरा करती है जिससे दोषियों को मनोबल बढ़ जाता है। ऐसे में पीड़ित आदमी थानों में जाने से कतराने लगता है।

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खैर यह नहीं कहा जा सकता कि जिले के सभी पुलिसकर्मी या अधिकारी ऐसे जनविरोधी कार्यों में लिप्त हैं किन्तु जिस तरह मामले पटल कर उभर कर आ रहे हैं उससे यहीं लगता है कि थाने स्तर के अधिकारी या कर्मचारी स्वच्छाचारिता को बढ़ावा दे रहे हैं और जिले के उच्चाधिकारी चुप्पी साधे हुये हैं। दबंगों की दबंगई जिले में किस कदर प्रभावी है उसका एक उदाहरण खुद गोपीगंज के कोतवाल हैं जो पिछले तीन सप्ताह से गैरहाजिर हो गये हैं।

जिले के भांग की दुकानों पर गांजा की विक्री कराना, हाईवे पर पशु तस्करी का शह देना, जिले के कई जगहों पर अवैध मिट्टी खनन को बढ़ावा देना और अपनी जेब भरना पुलिस का मुख्य पेशा बन चुका है जिसकी चर्चा अब आम आदमी करने लगा है। यदि भदोही कोतवाली में ही देखें तो कुछ महीने पहले सावन माह में दंगा फैलाने की नीयत से की गयी गाय की हत्या, करियाव बाजार में एक युवक द्वारा की गयी फायरिंग, आधा दर्जन से अधिक हुई लूट आदि घटनाओं का खुलाशा पुलिस आज तक नहीं कर पायी है।

गौरतलब हो कि उत्तरप्रदेश में जब समाजवादी पार्टी की सरकार थी तब भारतीय जनता पार्टी जंगलराज का नाम देती थी। लोगों ने सोचा था कि भाजपा सरकार आने के बाद अपराध और अपराधियों पर लगाम लगेगी, लेकिन प्रदेश के साथ भदोही में भी अपराधिक घटनाओं में बढ़ोत्तरी हुई है। थानों में पीड़ितों को न्याय नहीं मिल रहा है। बल्कि पुलिस उन्हीं की सुनती है जिनकी जेब में पैसा होता है। गरीबों की सुनवाई नहीं हो पा रही है। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण गोपीगंज में घटित हुई यह घटना है।

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सभ्य समाज के उपर यह एक काला धब्बा है कि एक अकेली महिला के घर में घुसकर उसके कपड़े फाड़ दिये जाते हैं। उसे अर्धनग्न करके घसीट—घसीटकर पीटा जाता है। वह पुलिस के पास न्याय की गुहार लेकर जाती है, लेकिन गोपीगंज पुलिस उसकी नहीं सुनती बल्कि मामले को रफा दफा करने के दोनों पक्षों के उपर साधारण मारपीट का मुकदमा दर्ज करती है, ताकि दबाव में आकर वह गरीब परिवार सुलह कर ले और अपने साथ हुई शर्मसार घटना पर जिंदगी भर आंसू बहाती रहे।

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