उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में चुनाव आयोग के तमाम प्रयासों के बावजूद मतदान प्रतिशत बढ़ने का नाम नहीं ले रहा। क्या यह लोकतंत्र के प्रति जनता की उदासीनता है? मतदान कम होने से आखिर किस दल पर कितना प्रभाव पड़ेगा।
यूपी विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) के अब तक हुए पांच चरणों के मतदान में एक बात कॉमन है कि हर चरण के कुल मतदान प्रतिशत में करीब एक फीसदी की कमी दर्ज की गई है। चुनाव आयोग के अनुसार, पांचवें चरण में 12 जिलों की 61 सीटों पर 57.32 फीसदी मतदान हुआ है। जो 2017 के 58.24 फीसदी मतदान से करीब एक फीसदी कम है। पांचवें चरण के मतदान के साथ ही यूपी चुनाव 2022 पूर्वांचल में प्रवेश कर चुका है। अगले दो चरणों में पूर्वांचल से तय हो जाएगा कि यूपी में जीत का सेहरा किस राजनीतिक दल के सिर पर सजने वाला है। किसान, आवारा पशु, बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दों के इर्द-गिर्द जहां विपक्षी दलों ने अपनी रणनीति रची है. वहीं, सत्तारूढ़ दल भाजपा ने कानून-व्यवस्था, माफियाओं पर हुई कार्रवाई और कल्याणकारी योजनाओं के साथ हिंदुत्व और धर्म जैसे मुद्दों के साथ सत्ता में दोबारा वापसी पर जोर लगाया है। पांचवें चरण में भी मतदान प्रतिशत गिरने से सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिर इस बार किसको नफा-नुकसान होगा? आइए जानते हैं कि यूपी चुनाव 2022 क पांचवें चरण का वोटिंग ट्रेंड क्या कहता है…
मतदान में बाराबंकी आगे, सिराथू हॉट सीट वाले कौशांबी ने चौंकाया
यूपी चुनाव 2022 के पांचवें चरण में सबसे ज्यादा मतदान 66.94 फीसदी बाराबंकी जिले में दर्ज किया गया हो। लेकिन, यह पिछले विधानसभा चुनाव में हुए 67.42 फीसदी मतदान से एक फीसदी कम रहा। वहीं, मतदान के मामले में कौशांबी ने 59.56 फीसदी के साथ चौंका दिया है। दरअसल, कौशांबी जिले की तीन सीटों पर पिछले चुनाव मं 56.95 फीसदी मतदान हुआ था। लेकिन, इस बार कौशांबी जिले में 59.56 फीसदी के साथ करीब 3 फीसदी ज्यादा मतदान हुआ है। दरअसल, यूपी चुनाव 2022 की सबसे हॉट सीट कौशांबी जिले की सिराथू विधानसभा सीट थी। सिराथू सीट से योगी सरकार के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य सियासी अखाड़े में उतरे थे। सिराथू सीट पर 2017 के 55.94 फीसदी की तुलना में इस बार 60.05 फीसदी वोटिंग हुई है। मौर्य के खिलाफ समाजवादी पार्टी गठबंधन ने अपना दल (कमेरावादी) की पल्लवी पटेल को प्रत्याशी बनाया था। वहीं, कौशांबी जिले की दो अन्य सीटों की बात की जाए, तो मंझनपुर (सुरक्षित) पर करीब एक फीसदी वोटिंग बढ़ी और 60.53 फीसदी हो गई. वहीं, चायल विधानसभा सीट पर भी पिछले चुनाव की 55.66 फीसदी वोटिंग से मतदान बढ़कर 58.02 फीसदी हो गया।
किसी भी चुनाव में ज्यादा मतदान आमतौर पर बदलाव के संकेत के तौर पर देखा जाता है। लेकिन, कई बार कांटे की टक्कर वाली सीटों पर भी वोटिंग में उछाल दर्ज किया जाता है। दरअसल, ऐसी सीटों पर सियासी दलों के उम्मीदवार अपने पक्ष में मतदान करवाने के लिए पूरा जोर लगाते हैं। अब ये बढ़ी हुई वोटिंग किसके पक्ष में जाती है, ये देखना दिलचस्प हो जाता है। अयोध्या, चित्रकूट जैसे जिलों की जिन विधानसभा सीटों पर कांटे की टक्कर दिखाई दे रही थी। वहां वोटिंग परसेंटेज बढ़ा है। लेकिन, अयोध्या विधानसभा सीट पर पिछली बार के चुनाव में 61.96 फीसदी की तुलना में 58.11 फीसदी मतदान ही हुआ है। आसान शब्दों में कहा जाए, तो शायद मतदाताओं को ऐसा लगा कि अयोध्या सीट पर एक पार्टी विशेष आसानी से जीत दर्ज कर ले जाएगी, तो, लोग मतदान के लिए खुलकर आगे नहीं आए। इसी तरह अयोध्या की रुदौली सीट को छोड़कर बीकापुरी, गोसाईंगंज, मिल्कीपुर में वोटिंग प्रतिशत बढ़ा है। आसान शब्दों में कहा जाए, तो पांचवें चरण की कई सीटों पर इसी तरह का वोटिंग पैटर्न देखने को मिला है।
कम वोटिंग से किसका फायदा?
यूपी चुनाव 2022 के पांचवें चरण में 12 जिलों की 61 सीटों पर 57.32 फीसदी मतदान हुआ है। जो 2017 में 58.24 फीसदी रहा था। 2017 के विधानसभा चुनाव की बात करें, तो 2012 के मतदान के मुकाबले वोटिंग में तीन फीसदी की बढ़ोत्तरी ने भाजपा की सीटों में अभूतपूर्व उछाल ला दिया था। 12 जिलों की इन 61 सीटों में से 47 सीटों पर भाजपा और तीन सीटों पर उसके सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) ने जीत दर्ज की थी। वहीं, 2012 में 41 सीटें पाने वाली समाजवादी पार्टी 2017 के चुनावी नतीजों में केवल पांच सीटों पर सिमट गई थी। बसपा को तीन, कांग्रेस को एक और दो सीटों पर निर्दलीय जीते थे। जिनमें से एक प्रतापगढ़ कुंडा के बाहुबली कहे जाने वाले रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया और एक उनके ही करीबी विनोद सोनकर थे। पांचवें चरण के मतदान में प्रतापगढ़ जिले की रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के प्रभाव वाली दो सीटों कुंडा और बाबागंज में मतदान आश्चर्यजनक रूप से कम हुआ है। कुंडा सीट पर 2017 में 58.63 फीसदी वोटिंग हुई थी, लेकिन, इस बार 52.12 फीसदी ही वोट पड़े। वहीं, बाबागंज सीट पर 2017 में 55.06 फीसदी वोट पड़े थे, लेकिन, इस चुनाव में केवल 49.56 फीसदी वोटिंग हुई है।
पांचवें चरण के वोटिंग ट्रेंड की बात करें, तो 12 जिलों की 61 सीटों हुआ मतदान पूरी तरह से हर एक सीट के अपने समीकरण पर टिका हुआ है। यूपी चुनाव 2022 में कई सुरक्षित सीटों पर भाजपा की सीधी लड़ाई बसपा से नजर आ रही है। वहीं, कई अन्य सीटों पर जो पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन के चलते कांग्रेस के खाते में गई थीं। वहां भी कांग्रेस अपनी पूरी ताकत लगाकर लड़ रही है। जो कहीं न कहीं समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के सत्ता में आने के सपने को ठेस पहुंचाने वाला हो सकता है। आसान शब्दों में कहा जाए, तो इस बार उत्तर प्रदेश के मतदाता बसपा सुप्रीमो मायावती से भी ज्यादा ‘साइलेंट’ नजर आ रहे हैं। हालांकि, पांचवें चरण से पहले बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी आक्रामक तेवर अख्तियार कर लिए हैं। ऐसा लग रहा है कि मायावती यूपी चुनाव के पूर्वांचल में एंट्री करने का ही इंतजार कर रही थीं। बसपा नेत्री के हालिया बयानों पर नजर डालें, तो मायावती ने केवल अखिलेश यादव को ही निशाने पर नहीं लिया है। बल्कि, अब उनके निशाने पर उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ भी आ चुके हैं।
मायावती ने आखिरी तीन चरणों में बसपा के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। इस स्थिति में बसपा से छिटक सकने वाला वोटबैंक अगर पार्टी के साथ ही बना रहता है, तो भाजपा और समाजवादी पार्टी दोनों के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। क्योंकि, मायावती इस बार फिर से दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण मतदाताओं के सोशल इंजीनियरिंग वाले फॉर्मूले पर चल रही हैं। जो 2007 जैसा ही करिश्मा दोहराने की क्षमता रखता है। हालांकि, गैर-यादव ओबीसी मतदाताओं को अपने पक्ष में लामबंद करने के लिए समाजवादी पार्टी ने छोटे दलों से गठबंधन किया है। वहीं, भाजपा ने भी आस्था को मुद्दा बनाते हुए जातीय समीकरणों को ध्वस्त करने का दांव खेला है। राम मंदिर और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की चर्चा पीएम नरेंद्र मोदी के भाषणों में पांचवें चरण से पहले जुड़ी है। वहीं, सीएम योगी आदित्यनाथ पहले चरण से ही इनका जिक्र करते चले आ रहे हैं। वैसे, पांचवें चरण के मतदान के बाद यूपी चुनाव 2022 के बहुकोणीय होने की संभावना बढ़ती जा रही है। खैर, चुनाव के बाद सत्ता का सुख किसे मिलेगा, इसका फैसला 10 मार्च को चुनावी नतीजे ही तय करेंगे।