हिन्दू मुस्लिम का राग अलापते राजनीतिक दलों पर क्यों नहीं लगता साम्प्रदायिकता का ठप्पा
उत्तरप्रदेश में चुनावी बिगुल भले ही अधिकारिक तौर पर न बजा हो किन्तु सभी राजनीतिक दल वोटरों को लुभाने की कवायद शुरू कर दिये हैं। जगह जगह चुनावी सभायें भी होनी शुरू हो गयी हैं। यूपी के करीब 82 विधानसभा सीट ऐसी हैं जहां पर मुस्लिम निणा्रयक भूमिका निभा सकते हैं। इसलिये भाजपा को छोड़कर लगभग सभी राजनीतिक दल मुसलमानों को लुभाने में लगे हुये हैं। पूर्व में यूपी की सत्ता पर काबिज रह चुकी सपा बसपा जैसी जातिवादी पार्टियां चुनाव आते ही मुस्लिम हितों की अनदेशी का आरोप लगाना शुरू कर देती हैं। मुसलमानों को डराया जाने लगता है कि उनका हित सिर्फ उन्हीं के साथ हैं। इस बार के चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम भी मजबूती से चुनाव लड़ने में जुट गयी है। ओवैसी भी मुसलमानों को बरगला कर अपने पक्ष में करने के लिये सपा बसपा पर प्रहार करने में लगे हुये हैं। सवाल यह खड़ा होता है कि जब सभी दल हिन्दू मुस्लिम का राग चुनाव आते ही अलापने लगते हैं तो सिर्फ भाजपा पर ही सांम्प्रदायिक होने का आरोप क्यों लगाया जाता है।
यूपी में 20 प्रतिशत से अधिक मुसलमानों पर ओवैसी की नजर
2011 में हुई जनगणना के अनुसार उत्तर प्रदेश की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी का आंकड़ा 19.26 प्रतिशत रहा है। निश्चचय ही इन 10 सालों में यह आंकड़ा 20 प्रतिशत से पार कर गया होगा। मानना है कि यूपी की 403 विधानसभा सीटों की 82 सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। 2017 में ओवैसी की पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में 38 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन उसे एक भी सीट नहीं मिली थी। जनगणना 2011 के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी 19.26 प्रतिशत है. ऐसा माना जाता है कि राज्य की 403 में से 82 विधानसभा क्षेत्रों में मुसलमान मतदाता निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। ओवैसी की पार्टी ने 2017 में उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में 38 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन उसे एक भी सीट नहीं मिली थी। हालांकि बिहार में हुए पिछले विधान सभा चुनाव में उसे सीमांचल की पांच सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इससे ओवैसी उत्साहित हैं और उत्तर प्रदेश में भी कामयाबी के प्रति आश्वस्त दिखायी देते हैं। इसलिये एआईएमआईएम ने उत्तर प्रदेश की 100 विधान सभा सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। यह सीटें मुस्लिम बाहुल्य होंगी। इसके लिये उन्होंने मुसलमानों को भड़काना भी शुरू कर दिया है।
असदुद्दीन ओवैसी ने रविवार को कानपुर के जाजमऊ स्थित खुशबू ग्राउंड में आयोजित सभा में मुसलमानों की तूलना बारात में बैण्ड बजाने वालों से कर दी। उन्होंने कहा कि यूपी में मुसलमानों की स्थिति बारात में बैण्ड बजाने वालों जैसी है। जब बारात निकलती है तो उन्हें दरवाजे तक बैण्ड बजाते हुये ले जाया जाता है। फिर बाहर खड़ा कर दिया जाता है।
ओवैसी ने इसके लिये सपा और बसपा दोनों पर ही आरोप लगाया। कहा मुसलमानों के हित की बात करने वाली समाजवादी पार्टी रही हो या फिर दलित—मुस्लिम एकता की बात करने वाली बसपा दोनों ने मुसलमानों के साथ एक जैसा बर्ताव किया है।
हिन्दू अधिकारों के हनन पर चुप रहे सभी दल
आजादी के बाद से ही देश की सबसे बड़ी आबादी हिन्दू के अधिकारों पर सभी दलों ने चुप्पी साध रखी है। इसका मुख्य कारण यहीं है कि हिन्दू आबादी जाति के नाम पर बंटी हुई है। गैर भाजपा सरकारों ने मुस्लिम तुष्टिकरण के लिये हर जतन किये। जाति आधारित सपा बसपा जैसी पार्टियों का हमेशा यहीं मानना रहा कि पहले सवर्णों के खिलाफ बोलकर अपनी जाति के लोगों को एकजुट करो फिर मुस्लिमों को चारा डालकर सत्तासुख भोगो। इसका एक असर और हुआ कि जातिवादी सरकारें हिन्दुओं के धार्मिक त्योहारों और महोत्सवों पर पाबन्दियां लगाने से परहेज नहीं किये, ताकि मुस्लिम तुष्टिकरण किया जा सके।
राष्ट्रवाद की अवधारणा साम्प्रदायिक कैसे
भारतीय जनता पार्टी ने पिछले 500 वर्षों से मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा ध्वस्त किये गये राममंदिर मुद्दे पर हिन्दू संगठनों का समर्थन किया, जिसे अन्य राजनीतिक दलों ने साम्प्रदायिकता करार दिया। राममंदिर और अयोध्या सिर्फ हिन्दुओं की भावना से नहीं जुड़ा है बल्कि यह देश की अस्मिता का सवाल है। भाजपा ने सदैव राष्ट्रवाद और देशप्रेम जैसी बातें की। कभी अपने किसी वक्तव्य में किसी भी जाति व सम्प्रदाय के खिलाफ बातें नहीं कही। सभी भारतीयों के लिये एक विचारधारा रखने वाली पार्टी को साम्प्रदायिकता का तमगा भी वहीं लोग दे रहे हैं जो खुलकर हिन्दू—मुस्लिम का राग अलापते हैं। चुनाव आते ही मुस्लिमों के नाम की माला जपने वाली सपा बसपा और अब ओवैसी जब साम्प्रदायिक नहीं हैं तो राष्ट्रवाद की बात कहने वाली भाजपा साम्प्रदायिक क्यों।