नारा बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ लेकिन महिलाओं के अपमान पर भाजपा सबसे आगे
अपनी काबिलियत के दम पर खास बन गयी गांव की आम लड़की
कवि शायर गायक व लेखकों का अस्तित्व आज से नहीं बल्कि अनादि काल से चलता आ रहा है। कुछ सत्ता की चाटुकारिता करके मलाई काटते रहे हैं वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं जो जन भावनाओं के अनुरूप सत्ता के खिलाफ मोर्चा खोल देते हैं। सरकार के असली चेहरों को आईना दिखाते हैं। किन्तु सत्ता में बैठे लोगों को शायद यह रास नहीं आता है और आईना दिखाने वाले को मानसिक शरीरिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित किया जाने लगता है, ताकि सत्ता शासन के खिलाफ कोई आवाज न उठाये और अपना मुंह बंद रखे। लोकतंत्र में सरकारों से सवाल पूछने चाहिए, ना कि उनके किए गए काम के कसीदे पढ़ने चाहिए। उसको पढ़ने के लिए तो सरकारी मीडिया है ही और उन्हें अच्छे काम करने के लिए ही तो चुना गया था। अगर हम, जिन्होंने वोट दिया है, वह उनसे सवाल नहीं करेंगे तो फिर कौन करेगा। इसलिए एक ऐसे दौर में जब मीडिया से लेकर जिन पर इस तरह के सवाल पूछने की जिम्मेदारी थी, वह चुप हैं या एक तरफा तारीफ में लगे हैं। ऐसे में नेहा जैसी एक आम लड़की लोकतंत्र के उस परचम को ऊंचा उठाने के लिए लोगों से सवाल कर रही है कि यूपी में “का बा” तो फिर भाजपा को मिर्ची क्यों लग रही है।
नेहा सिंह राठौर अपने गीतों के माध्यम से जनहित के मुद्दों को उठाकर चर्चित हुई हैं। किन्तु उसे इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा है। नेहा को भाजपा आईटी सेल द्वारा ट्रोल किया गया। उसके खिलाफ अपशब्द बोले गये। अपनी कर्मठता और रचनात्मक सोच के आधार पर अलग पहचान बनाने वाली नेहा राठौर का आईना दिखाना सत्ता में बैठे लोगों को रास नहीं आया और उसका मनोबल तोड़ने के लिये उसके खिलाफ तरह—तरह के दुष्प्रचार किये गये। जो भाजपा महिलाओं के सम्मान की बात करती है। जिस भाजपा सरकार में ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ के फर्जी नारे लगाये जाते हैं। उसी भाजपा के कार्याकर्ताओं ने चाटुकार पत्रकार और गायको की एक फौज खड़ी करके नेहा को अपमानित करने लगे। उसके खिलाफ अश्लील बातें की जाने लगी। यहां तक की गांव की बेटी नेहा के लिये रखैल जैसे शर्मनाक शब्दों का प्रयोग किया जाने लगा । उसकी आवाज को कुचलने के लिये अमर्यादित तरीके अपनाये जाने लगे। लेकिन उस हिम्मती लड़की ने अपने मनोबल को दृढ़ करके सभी को मुंहतोड़ जवाब दिया और दिखा भी दिया कि बेटियां किसी से कमजोर नहीं होती हैं। इस मामले से सरकार की सारी कलई खुल गयी कि सरकार द्वारा दिया जा रहा बेटी बचाओ का नारा पूरी तरह झूठा है। महिलाओं के सम्मान की बात तो दूर की कौड़ी है बल्कि महिलाओं के अपमान के लिये भाजपाई किसी भी हद तक जा सकते हैं।
यह मामला तब उठा जब फिल्मी दुनिया से सांसद बने रविकिशन ने ‘यूपी में सब बा’ गाना गया। इसमें अयोध्या काशी जैसे मुद्दों को दिखाया गया। खैर उनकी बात अपनी जगह सही थी। हर बात को देखने के लिये हर व्यक्ति का अपना नजरिया होता है। रविकिशन सरकार के अंग हैं, इसलिये सरकार का गुणगान करना उनका कर्तव्य बनता है, लेकिन इसका मतलब यह कत्तई नहीं हो जाता कि प्रत्येक व्यक्ति उसी नजरिये से हर मामले को देखे। भूख, भय, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, हत्या, लूट, अपराध, बलात्कार आदि घटनाओं से त्रस्त व्यक्ति का भी अपना नजरिया होता है। भारत एक स्वतंत्र देश है और संविधान ने सभी को अभिव्यक्ति की आजादी दी है। इस देश पर हिटलर का शासन नहीं है जो किसी के बोलने पर पाबंदी लगा दे। लेखक हो या पत्रकार, कवि हो या शायर सभी को अपने नजरिये अपनी सोच से अपने भावों को व्यक्त करने का अधिकार संविधान ने दिया है। किन्तु इस सरकार और उसके नुमाइंदों को शायद यह स्वीकार ही नहीं है कि कोई उसके खिलाफ आवाज उठा दे। नेहा राठौर की बस यहीं गलती थी। उसने यूपी में घटी कुछ घटनाओं को अपने गीतों के माध्यम से अपने अंदाज में रविकिशन के गाने का जवाब दिया जो भाजपा को पसंद नहीं आया।
शायद भाजपा को यह लगा कि एक लड़की कैसे सरकार की बुराई करके चर्चित हो सकती हैं। गाव में पली बढ़ी एक सामान्य लड़की को कैसे इतनी हिम्मत हो गयी कि वह योगी सरकार पर अंगुली उठाये। लिहाजा नेहा के खिलाफ भाजपा का पूरा आईटी सेल खड़ा हो गया। उसके उपर तमाम लांछन लगाये गये। अनामिका जैन अंबर जैसी मशहूर कवियत्री भी जवाब देने के लिये सामने आयी और ‘यूपी में का बा’ के जवाब में ‘यूपी में बाबा’ सुनाने लगी। कई गायकों ने रील बनायी। लेकिन नेहा राठौर के हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी कि उसने ‘यूपी में का बा’ का दूसरा पार्ट भी ला दिया। वह यहीं पर नहीं रूकी बल्कि बेराजगारी पर भी गीत गाकर भाजपा आईटी सेल को मुंहतोड़ जवाब दिया। हालात ऐसे पैदा हो गये कि नेहा के मनोबल को तोड़ने में नाकाम रही भाजपा की टीम को खुद अपने कदम पीछे हटाने पड़े।
यदि यूपी के विकास की बात करें तो बड़े शहरों को जोड़ने के लिये हाईवे बने किन्तु गावों की हालत आज भी बद से बदतर बनी हुई है। बहुत से गांव ऐसे मिल जायेंगे जहां जाने के लिये सड़क ही नहीं है। जो सड़कें बनी भी हैं उनमें एक साल के अंदर ही गढ्ढे बनने लगे जो भ्रष्टाचार की पोल खोलते हैं। यहीं नहीं इस सरकार में नौकरशाही को इतनी छूट मिल गयी कि सरकारी कार्यालय भ्रष्टाचार के अड्डे बन गये। अधिकारी राजा और सरकार चुनने वाला वोटर फरियादी बन हाथ बांधे प्रजा दिखने लगी। रिश्वत का बोलबाला हुआ तो गरीबों को न्याय मिलना बंद हो गया।
सरकार कहती है कि दंगों पर रोक लगी, अपराधियों को जेल भेजा गया। अपराध में कमी आयी किन्तु कुछ मामलों में अपराध घटे तो कुछ में बढ़े भी हैं। साल 2020 में एनसीआरबी के डाटा के अनुसार उत्तर प्रदेश में हर 2 घंटे में एक रेप का मामला रिपोर्ट किया जाता है। जबकि बच्चों के खिलाफ हर 90 मिनट में रेप का मामला दर्ज हुआ है। एनसीआरबी के मुताबिक साल 2018 में उत्तर प्रदेश में रेप पर कुल 4322 मामले दर्ज हुए थे इसका सीधा मतलब है कि हर रोज करीब 12 रेप के मामले हो रहे थे। महिलाओं के खिलाफ 2018 में 59445 मामले दर्ज किए गए। जिसका अर्थ है कि हर रोज महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराध के मामले 162 रिपोर्ट किए गए। जो कि साल 2017 के मुकाबले 7 परसेंट ज्यादा है। साल 2017 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 56011 मामले दर्ज किए गए थे। यानी उस वक्त यह आंकड़ा हर दिन के हिसाब से 153 केस था। साल 2018 में नाबालिग बच्चियों के साथ रेप के कुल 144 मामले दर्ज किए गए। जबकि साल 2017 में यह आंकड़ा 139 था। साल 2017 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 56011 मामले दर्ज किए गए थे। यानी उस वक्त यह आंकड़ा हर दिन के हिसाब से 153 केस था। एनसीआरबी के डेटा के अनुसार यूपी में साल 2016 में जहां कुल अपराध के 4,94,025 मामले दर्ज किए गए। वहीं साल 2018 में 5,85,157 मामले दर्ज किए गए। यानि की अपराधो में करीब 11 प्रतिशत का उछाल दर्ज हुआ। बस इन्हीं सब मामलों को लेकर नेहा राठौर ने सरकार को आईना दिखाया जो उसे पसंद नहीं आया।
जानिये कौन है नेहा राठौर
लोगों को लगता है कि नेहा सिंह राठौर कोई हउआ है, लेकिन उसके संघर्षो की लंबी गाथा है। उसके मां बाप को उसका गाना बजाना कभी पसंद नहीं रहा। मां चाहती थी कि वह बीएड करके मास्टरनी बन जाये या चूल्हा-चौका करे। मीडिया को नेहा ने बताया कि पिता चाहते थे किसी सरकारी नौकरी करने वाले से उसकी शादी हो जाए। पिता आज भी कहते हैं कि ये गाना-बजाना छोड़ो, नहीं चाहिए पैसा, हमें समाज में इज्जत चाहिए। लेकिन उसे लगता है कि वह जो कर रही है ठीक कर रही है। उसके लिये एक जंग घर से बाहर है ट्रोलर्स की तो दूसरी घर के अंदर है।
नेहा बिहार के कैमूर-भभुआ की रहने वाली है। उसके पापा लखनऊ में प्राइवेट नौकरी करते थे। गांव में वह भाई-बहन और अपनी मां के साथ रहती थी। लड़की होने के कारण मां भी भाई बहनों में फर्क करती थी। शुरुआती पढ़ाई करने के बाद वह बिहार से कानपुर आ गई, क्योंकि वहां ग्रेजुएशन करने में 6 साल लग जाते थे। पढ़ने-लिखने में शुरू से ही तेज थी। उसे बचपन से ही गाने का शौक था। मां और भाई उसे फोन देने के सख्त खिलाफ थे। वह अपने कजिन या चाचा के फोन में गाने रिकॉर्ड करती थी, लेकिन फेसबुक पर नहीं पोस्ट कर पाती थी। इसके बाद जिद करके मामा से फेसबुक पर अपना अकाउंट बनवा लिया। धीरे धीरे वह फेसबुक गाना पोस्ट करने से फेमस होने लगी। फिर बिहार में विधानसभा चुनाव का वक्त आया। एक मीडिया से कॉन्ट्रैक्ट हो गया। उसके लिए नेहा को डेढ़ लाख रुपए मिले। सबसे पहले उसने अपने लिए एक फोन खरीदा।
चुनाव के दौरान नेहा ने ‘बिहार में का बा’ गाया जिससे काफी शोहरत मिली। इस गीत के जवाब में बिहार सरकार को भी गाना बनाना पड़ा। सब लोग हैरान थे कि कौन है यह लड़की, जिसके गाने का जवाब सरकार को देना पड़ गया। मीडिया में भी खूब आया कि एक छोटी सी लड़की है जिसने ‘बिहार में का बा’ गाया है और सरकार को उस लड़की को जवाब देना पड़ रहा है। उस समय भी उसे ट्रोल किया गया। किसी ने दलाल कहा तो किसी ने आरजेडी की एजेंट। पार्टी विशेष के लोगों ने बिहार में भी बहुत भद्दी और अश्लील गालियां दीं। पहली बार ऐसा हुआ तो वह डर गई थी, घबरा गई कि यह क्या हो गया है। चौतरफा हमला देख वह खूब रोई।
ट्रोलिंग के बाद घर और बाहर दोनों तरफ से गालियां पड़नी शुरू हो गईं।
कुछ ऐसा ही ‘यूपी में का बा’ गाने के बाद हुआ। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात तो होती है किन्तु नेहा की अभिव्यक्ति के बाद उसकी स्वतंत्रता छिन गयी। क्या हुआ यह सर्वविदित है, लेकिन इस घटना से दो बातें बिल्कुल साफ हो जाती हैं। एक तरफ जहां नेहा ने यह संदेश दिया कि गांव की एक सामान्य लड़की अपनी क्षमता और हिम्मत से सेलीब्रेटी बन सकती है। वहीं यह भी दिखा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सिर्फ संविधान के पन्नों पर ही दर्ज है। हकीकत में सरकार की कमियों व अन्याय अत्याचार के खिलाफ बोलने व लिखने वाले लेखकों, पत्रकारों, कवियों, शायरों व गायकों को मुसीबतों का सामना करना ही पड़ता है।