जेएनयू की हिंसा और अराजकता की घटना कोई पहली घटना नहीं है। वामपंथ इस विश्वविद्यालय को अपना गढ़ मानता है, और इसकी स्थापना (22 अप्रैल,1969) से अभी तक के पिछले पांच दशकों में इस विश्वविद्यालय की राजनीति पर वामपंथी अधिपत्य रहा है। इस काल में हिंसा की अनेक घटनाएं लगभग हर दशक में हुईं हैं। 1983 में तो वामपंथी राजनीति जेएनयू के केम्पस में इस कदर हिंसक और बेकाबू हो गयी थी! उस समय एक वर्ष के लिए यूनिवर्सिटी को बंद करना पड़ा था और सभी होस्टलों को खाली करा कर विद्यार्थियों को जबरदस्ती घर भेजना पड़ा था! देश धीरे-धीरे यह समझ चुका है कि वामपंथी राजनीति जेएनयू के कुछ छात्रों को फंसा कर उनके सहयोग से पूरे विश्वविद्यालय को अपने प्लेटफार्म की तरह इस्तेमाल कर रही हैं!
वैचारिक विकृति हिंसा की तरफदार रही JNU 1983 में वामपंथी हिंसा से इस कदर बेकाबू हो गया था कि एक साल के लिए यूनिवर्सिटी बन्द करना पड़ा था। वामपंथी शिक्षा से प्रभावित छात्र कुलपति पीएन श्रीवास्तव के घर लुटपाट की संपत्ति लूट ले गए। कारगिल युद्ध के बाद एक मुशावरे में भारत को दोषी बताते हुए शेर पढ़ा तो दो सैनिक भी थे विरोध किया तो वामपंथियों ने उन्हें अधमरा मार कर गेट पर फेंक दिया। वामपंथीयों ने JNU में 2013 में महिषासुर पूजन मनाया। आराध्य देवी दुर्गा माँता के लिए अपशब्द का प्रयोग किया गया। 2016 में “भारत तेरे टुकड़े होंगे” का नारा समाज देश की कलंकित स्मृति में अंकित है। इसी साल आतंकी अफजल की बरसी इसी यूनिवर्सिटी में वामपंथी दलों ने मनाया जब 370 हटा तो यहीं से अलगाव वादी के नारे लगाए गए।
अभी राहुल गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री बिना पुलिस सुरक्षा के जाकर दिखाए क्या इतने हिंसक उपद्रवियों की जमात JNU यूनिवर्सिटी में हो गए कि प्रधानमंत्री भी सुरक्षित नही वहाँ जाकर?? इससे यह साफ हो जाता हैं कि यह यूनिवर्सिटी किस तरह के अवांक्षित उपद्रवियों कट्टरपंथी का आश्रयस्थल का केन्द्र बन चुका है जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय!!