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सूरत के उत्तर भारतीय बागी नेताओं ने आखिर में क्यों उत्तर भारतीयों के भावनाओ से खेला?

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सूरत : जिन नेताओं के लिए उत्तर भारतीय आपसी रंजिश बढ़ा लिए, एक दूसरे को देखना तक नही पसंद  करते, वही नेता आज फिर बीजेपी का चोला पहन कर किस मुह से उत्तर भारतीयों के वोट के लिए गली-गली शोर मचा रहे है, आखिर उत्तर भारतीय नेताओं में उस समय सामंजस्य का अभाव क्यों था ? क्यों ये लोग रेल नही तो चैन नही के आंदोलन में बागी तेवर अख्तियार किये ? इस तरह के तमाम प्रश्न आज उत्तर भारतीय बागी नेताओ के करतूत से लोगो के मन मे उठ रहे है, क्या ये सभी लोग आंदोलन में अपने स्वार्थ के लिए जुड़ कर लोगो के भावनाओ से खिलवाड़ किये और सत्ता में आने के लालच से इतना उग्र और हिंसक हो गए थे और जब उनकी एक नही चली तो आज सब के सब औंधे मुंह बीजेपी वाले बीजेपी में और कांग्रेस वाले कांग्रेस का दामन पुनः पकड़ लिए?

आज उत्तर भारतीय जो उत्तर भारत से आकर यहाँ अपनी जीवनोपार्जन कर रहे है वे सब इन्ही नेताओ के कहने पर अपनी ड्यूटी को छोड़कर आंदोलन में नही कूदे थे, इन नेताओं ने रेल नही तो चैन नही के लिए सूरत में कई जन सभाएं किये, क्या उत्तर भारतीय इन नेताओं के एक आवाहन पर लाखों की तादात में विशाल जन समूह में एकत्र नही हुए? उन दिहाड़ी मजदूरों ने अपनी दिहाड़ी छोड़कर अपने समाज के सुविधाओ के लिए इन बागी नेताओ के कंधे से कंधा मिलाकर नही चले ? और जब आज चुनाव का समय आया तो सभी अपनी राजनीतिक साख बचाने के लिए थूक कर चाटने का काम किये। दिहाड़ी छोड़कर आंदोलन में कूदने वाले मजदूरों की भावनावो को एक ही झटके में चकना चूर कर दिया गया और एक बार फिर बिना ट्रैन की मांग पूरी हुए लोगो को भ्रमित करने का कार्य किया जा रहा है, उत्तर भारतीयों को अब तक ये दिलासा दिया जा रहा था कि मार्च के अंत तक ट्रेन की मांग पूरी हो जाएगी पर ट्रेन तो मिली नही जो रेल संघर्ष के लिए समिति बनी तो वो भी भंग हो गयी।

अब जब उत्तर भारतीयों के लिए एक आश थी रेल संघर्ष समिति जब वही भंग हो गयी तो ये उत्तर भारतीय नेता किस मुह से कह रहे है कि ट्रेन की मांग जायज है और ट्रेन की मांग पूरी होगी? आज आलम ये है कि सूरत से उत्तर भारत के लिए रोजाना की मात्र एक ट्रेन ताप्ती गंगा सुपर फास्ट है जबकि भोले नगरी, उधना दानापुर, जन सुविधा एक्सप्रेस या सब साप्ताहिक ट्रैन है, बात यहाँ यह उठती है कि अब तक ये कहा जाता था कि पटरी का दोहरी करन होना बाकी है, जबकि पटरी का दोहरी करन एक माह पहले ही पूर्ण हो चुका है तो इन साप्ताहिक ट्रेनों को रेगुलर क्यों नही किया जा रहा है?

क्या अजय चौधरी अब भी सांसद सी.आर.पाटिल से नाराज है

जी हाँ जिस दिन उत्तर भारतीय समाज के दिग्गज बागी नेता और समाज के अग्रणीय अजय चौधरी बीजेपी को जॉइन किये उस दिन चौधरी ने अपने फेस बुक के वाल पर अपने उन 10000 वोटरों का तहे दिल से शुक्रिया अदा किए साथ मे बीजेपी के उन तमाम नेताओ का भी धन्यवाद दिए जो उस कार्यक्रम में शामिल थे। परंतु वर्तमान नवसारी लोक सभा के सांसद सी आर पाटिल का नाम तक नही लिए जो प्रधान मंत्री मोदी के बाद सबसे ज्यादा मतों से विजयी होने वाले देश के दूसरे सांसद थे, क्या अब भी चौधरी जी सी आर पाटिल को अपना विरोधी मानते है? मिली जानकारी के अनुसार चौधरी गुजरात विधान सभा चुनाव के पहले सूरत बीजेपी के महामंत्री अध्यक्ष ऐसे कई पदों पर रह चुके थे, जब विधान सभा के चुनाव में किसी उत्तर भारतीय को टिकट नही मिला तो रेल आंदोलन के जन सैलाब को देखकर चौधरी ने निर्दलीय उम्मीदवार बन कर चुनाव लड़े और हार गए, जिसके बाद उन्हें बीजेपी से निष्काषित कर दिया गया। ऐसा भी सुनने को मिलता है कि विधान सभा चुनाव के बाद चौधरी ने बीजेपी को पुनः जॉइन करने के लिए भरपूर प्रयास किये परंतु सी आर पाटिल ही उनके सामने रोड़ा बने जिसके लिए चौधरी जी दिल्ली तक गए थे और अंत मे पूरनेश मोदी ने उनको पुनः बीजेपी में शामिल करवाया। हमार पूर्वान्चल चौधरी जी से संपर्क करने का भरपूर प्रयास किया परन्तु उनसे संपर्क नही हो पाया, जिससे वास्तविकता का सही अंदाजा नही लग पा रहा है पर चौधरी जी के वॉल से ये तो निश्चित हो रहा है कि पाटिल और चौधरी के बीच कुछ मलाल जरूर है ।

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