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क्यों मनाया जाता है श्राद्ध

2006
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रेपोर्ट : अतुल शास्त्री

प्रतिवर्ष आश्विन मास में प्रौष्ठपदी पूर्णिमा से ही श्राद्ध आरंभ हो जाता है। इन्हें सोलह श्राद्ध भी कहा जाता है। इस वर्ष पितृपक्ष का श्राद्ध 24 सितम्बर से प्रारम्भ से 9अक्टूबर तक रहेगा। पितृपक्ष के दौरान वैदिक परंपरा के अनुसार ब्रह्म वैवर्त पुराण में यह निर्देश है कि इस संसार में आकर जो सद्गृहस्थ अपने पितरों को श्रद्धा पूर्वक पितृपक्ष के दौरान पिंडदान, तिलांजलि और ब्राह्मणों को भोजन कराते है, उनको इस जीवन में सभी सांसारिक सुख और भोग प्राप्त होते हैं। पितृपक्ष पक्ष को महालय या कनागत भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म मान्यता अनुसार सूर्य के कन्याराशि में आने पर पितर परलोक से उतर कर कुछ समय के लिए पृथ्वी पर अपने पुत्र- पौत्रों के यहां आते हैं। श्राद्ध का अर्थ अपने देवताओं, पितरोंतथा वंश के प्रति श्रद्धा प्रकट करना होता है।
मान्यता है कि जो लोग अपने शरीर को छोडक़र चले जाते है, वे किसी भी रूप में अथवा किसी भी लोक में हों, श्राद्ध पक्ष में वे पृथ्वी पर अवश्य आते हैं और उनकी तृप्ति के लिए श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है, वह श्राद्ध होता है। ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री के अनुसार, ”किसी वस्तु के गोलाकर रूप को पिंड कहा जाता है। प्रतीकात्मक रूप में शरीर को भी पिंड कहा जाता है। पिंडदान के समय मृतक के निमित अर्पित किए जाने वाले पदार्थ की बनाई गई गोलाकृति पिंड होती है। इसे जौ या चावल के आटे को गूंथकर बनाया जाता है। श्राद्ध की मुख्य विधि में मुख्य रूप से तीन कार्य होते हैं, पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोजन। दक्षिणाविमुख होकर आचमन कर अपने जनेऊ को दाएं कंधे पर रखकर चावल, गाय के दूध, घी, शक्कर एवं शहद को मिलाकर बने पिंडों को श्रद्धा भाव के साथ अपने पितरों को अर्पित करना पिंडदान कहलाता है। जल में काले तिल, जौ, कुशा एवं सफेद फूल मिलाकर उस जल से विधिपूर्वक तर्पण किया जाता। कहते है कि इससे पितर तृप्त होते हैं। इसके बाद श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन कराया जाता है।”
शास्त्रों में पितरों का स्थान बहुत ऊंचा बताया गया है। उन्हें चंद्रमा से भी दूर और देवताओं से भी ऊंचे स्थान पर रहने वाला बताया गया है। पितरों की श्रेणी में मृत पूर्वजों, माता, पिता, दादा, दादी, नाना, नानी सहित सभी पूर्वज शामिल हैं। व्यापक दृष्टि से मृत गुरु और आचार्य भी पितरों के श्रेणी में आते हैं। श्राद्ध के महत्व के बारे में कई प्राचीन ग्रंथों तथा पुराणों में वर्णन मिलता है। पितरों को आहार तथा अपनी श्रद्धा पहुँचाने का एकमात्र साधन श्राद्ध है। मृतक के लिए श्रद्धा से किया गया तर्पण, पिण्ड तथा दान ही श्राद्ध कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार जिन व्यक्तियों का श्राद्ध मनाया जाता है, उनके नाम तथा गोत्र का उच्चारण करके मंत्रों द्वारा अन्न आदि उन्हें समर्पित किया जाता है, वह उन्हें विभिन्न रुपों में प्राप्त होता है। जैसे यदि मृतक व्यक्ति को अपने कर्मों के अनुसार देव योनि मिलती है तो श्राद्ध के दिन ब्राह्मण को खिलाया गया भोजन उन्हें अमृत रुप में प्राप्त होता है। यदि पितर गन्धर्व लोक में है तो उन्हें भोजन की प्राप्ति भोग्य रुप में होती है। पशु योनि में है तो तृण रुप में, सर्प योनि में होने पर वायु रुप में, यक्ष रुप में होने पर पेय रुप में, दानव योनि में होने पर माँस रुप में, प्रेत योनि में होने पर रक्त रुप में तथा मनुष्य योनि होने पर अन्न के रुप में भोजन की प्राप्ति होती है।
श्राद्ध करने का सही समय
कुतुप मुहूर्त = 11:48 से 12:36 तक
रौहिण मुहूर्त = 12:36 से 13:24 तक
अपराह्न काल = 13:24 से 15:48 तक
24 सितंबर 2018 सोमवार पूर्णिमा /किसके लिए : जिनकी मृत्यु पूर्णिमा तिथि को हुई हो।

श्राद्ध 25 सितंबर 2018मंगलवार प्रतिपदा श्राद्ध /किसके लिए : जिनकी मृत्यु प्रतिपदा तिथि को हुई हो। नानी-नाना का श्राद्ध भी इस दिन किया जा सकता है।

26 सितंबर 2018बुधवार द्वितीय श्राद्ध /किसके लिए : जिनकी मृत्यु द्वितीय तिथि को हुई हो।

27 सितंबर 2018गुरुवार तृतीय श्राद्ध /किसके लिए : जिनकी मृत्यु तृतीय तिथि को हुई हो।

28 सितंबर 2018शुक्रवार चतुर्थी श्राद्ध/किसके लिए : जिनकी मृत्यु चतुर्थी तिथि को हुई हो।

29 सितंबर 2018शनिवार पंचमी श्राद्ध /किसके लिए : जिनकी मृत्यु पंचमी तिथि को हुई हो। यह श्राद्ध उन परिवारजनों के लिए भी किया जाता है जिनकी मृत्यु कुवारेंपन में हुई हो। इसलिए इसे कुंवारा पंचमी श्राद्ध भी कहा जाता है।

30 सितंबर 2018रविवार षष्ठी श्राद्ध /किसके लिए : जिनकी मृत्यु षष्ठी तिथि को हुई हो।

1 अक्टूबर 2018सोमवार सप्तमी श्राद्ध/किसके लिए : जिनकी मृत्यु सप्तमी तिथि को हुई हो।

2 अक्टूबर 2018मंगलवार अष्टमी श्राद्ध /किसके लिए : जिनकी मृत्यु अष्टमी तिथि को हुई हो।

3 अक्टूबर 2018बुधवार नवमी श्राद्ध /किसके लिए : जिनकी मृत्यु नवमी तिथि को हुई हो। इस दिन को मुख्य रूप से माताओं और परिवार की सभी स्त्रियों के श्राद्ध के लिए भी उचित माना जाता है। इसलिए इसे मातृनवमी भी कहा जाता है।

4 अक्टूबर 2018गुरुवार दशमी श्राद्ध/किसके लिए : जिनकी मृत्यु दशमी तिथि को हुई हो।

5 अक्टूबर 2018शुक्रवार एकादशी श्राद्ध /किसके लिए : जिनकी मृत्यु दशमी तिथि को हुई हो।

6 अक्टूबर 2018शनिवार द्वादशी श्राद्ध /किसके लिए : जिनकी मृत्यु द्वादशी तिथि को हुई हो। इस दिन उन लोगों का श्राद्ध भी किया जाता है जिन्होंने मृत्यु से पूर्व सन्यास ले लिया हो।

7 अक्टूबर 2018रविवार त्रयोदशी श्राद्ध, /किसके लिए : जिनकी मृत्यु त्रयोदशी तिथि को हुई हो। घर के मृत बच्चों का श्राद्ध करने के लिए भी इस दिन को शुभ माना जाता है।

8चतुर्दशी श्राद्ध/किसके लिए : जिनकी मृत्यु त्रयोदशी तिथि को हुई हो। घर के मृत बच्चों का श्राद्ध करने के लिए भी इस दिन को शुभ माना जाता है।

9 अक्टूबर 2018सोमवार सर्वपितृ अमावस्या, महालय अमावस्या
किसके लिए : जिनकी मृत्यु अमावस्या तिथि, पूर्णिमा तिथि और चतुर्दशी तिथि को हुई हो। इसके अतिरिक्त जिन लोगों को अपने मृत परिवारजनों की तिथि याद नहीं रहती उनका श्राद्ध भी इसी दिन किया जा सकता है। क्योंकि इसे सर्व पितृ अमावस्या भी कहते है।

पितृ पक्ष का अंतिम दिन सर्वपित्रू अमावस्या या महालय अमावस्या के नाम से जाना जाता है। पितृ पक्ष में महालय अमावस्या सबसे मुख्य दिन होता है। इस दिन किसी भी मनुष्य का श्राद्ध किया जा सकता है। जिन लोगों को अपने मृत पूर्वजों की तिथि का पूर्ण ज्ञान नहीं होता वे भी इस दिन पितरों का तर्पण करवा सकते है।

ज्योतिष सेवा केंद्र, मुंबई
संस्थापक – पंडित अतुल शास्त्री
सम्पर्क क्रमांक – 09594318403/9820819501

 

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