Home खास खबर कालीन कारोबारी को क्यों बचा रही है भदोही पुलिस ..!

कालीन कारोबारी को क्यों बचा रही है भदोही पुलिस ..!

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दो दिन पूर्व क्लोन चेक से 2 करोड़ 40 लाख की ठगी के प्रयास का पुलिस ने किया है खुलाशा

भदोही। नवागत पुलिस अधीक्षक डॉ. अनिल कुमार के पद ग्रहण के बाद भदोही पुलिस काफी मुस्तैद दिखायी देने लगी है। साइबर क्राइम से जुड़े कई मामलों के खुलासे सहित पशु तस्करी जैसे मामलों पर पुलिस को सफलता प्राप्त हुई है। अभी हाल में ही दो दिन पूर्व पुलिस ने दो करोड़ 40 लाख की ठगी होने से पहले खुलाशा कर दिया। हालांकि इसमें पुलिस से अधिक एचडीएफसी बैंक के प्रबंधक की भूमिका अधिक सराहनीय है। यदि उसे समय रहते क्लोन चेक की जानकारी नहीं हो पाती तो ठगी होने के बाद ही पुलिस को कुछ पता चलता। वहीं इस खुलासे के बाद भदोही पुलिस पर अंगुली भी उठनी शुरू हो गयी है। क्योंकि जिस खाते से फर्जी चेक का भुगतान होना था, उस खाते धारक को पुलिस ने साफ साफ मासूम बताकर बरी कर दिया जबकि इस काण्ड के आरोपी वे भी बनाये गये हैं जिनका मुख्य अभियुक्तों से सिर्फ बातचीत के सबूत मिले हैं।

बताते चलें कि 21 नवंबर को ज्ञानपुर स्थित एचडीएफसी बैंक के प्रबंधक अविनाश त्रिपाठी ने भदोही पुलिस को सूचना दी कि उसके बैंक में 16 नवंबर को एक खाते में 2 करोड़ 40 लाख रूपये का चेक भुगतान के लिये आया है। जो फर्जी है। 21 नवंबर रविवार को 3 बजे पुलिस ने बैंक प्रबंधक की तहरीर पर ज्ञानपुर कोतवाली में अज्ञात लोगों के खिलाफ भरतीय दंड संहिता की धारा 419, 420, 467, 468 व 471 के तहत मुकदमा दर्ज करती है। मात्र दो दिन में ही पुलिस सारे मामले का पर्दाफास करके 11 लोगों को आरोपी बनाती है और जिसमें 9 लोगों को गिरफ्तार भी किया जाता है। जबकि जिस खाते में चेक क्लियरेंस के लिये जमा किया गया था। उसके खाताधारक को बाइज्जत पुलिस बेगुनाह बता देती है।

पुलिस के बयान के अनुसार चेक जमा करने वालों ने कालीन खरीदने के नाम पर कालीन कारोबारी से बात किया और चेक उसके खाते में जमा भी कर दिया। पुलिस ने बयान दिया है कि कालीन कारोबारी को भी शक था कि बिना किसी मोलभाव के बिना कोई सेम्पल देखे कैसे उसके खाते में चेक जमा कर देता है। पुलिस का यहीं बयान ही उसे शक के दायरे में लाता है। सोचने वाली बात यह है कि मुख्य आरोपियों से संबंध रखने वाले और उनसे थोड़ी बहुत बात करने वालों को भी पुलिस ने आरोपी बना दिया, लेकिन जिस खाते से लेन देन होना था। उस खाताधारक को पूरी तरह मासूम बताकर पूरे झेमेले से ही बाहर कर दिया गया।

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गौर करने वाली बात यह भी है कि खाते में फर्जी चेक 16 नवंबर को जमा किया गया। प्रबंधक द्वारा चेक फर्जी होने की रिपोर्ट 21 नवंबर को दर्ज करायी गयी। पुलिस ने तेजी दिखाते हुये एक दिन में ही सारी जांच पूरी करके 23 नवंबर को मामले का खुलाशा भी कर दिया। किन्तु फर्जी चेक जिसमें खाते में 5 दिन जमा रहा। उसे इस बात की खबर ही नहीं थी। जो व्यक्ति एक कालीन कंपनी का मालिक है। जिसके खाते में रोजाना लेन देन होते होंगे। उसके खाते में बिना किसी बात के, बिना कालीन का दाम तय किये, बिना सेम्पल देखे कोई व्यक्ति ढाई करोड़ का चेक जमा करता है और वह मासूम बनकर चेक के भुगतान का इंतजार कर रहा होता है। होना यह चाहिये था कि कालीन उद्यमी खुद पुलिस के पास जाता और सूचना देता कि उसके खाते में किसी ने बिना जानकारी के करोड़ों का चेक जमा करा दिया है तब उसे पुलिस बेकसूर बताती तो बात कुछ हजम होने लायक रहती। किन्तु मुकदमा कालीन कारोबारी नहीं बल्कि बैंक मैंनेजर ने दर्ज कराया है। एक आम इंसान भी सोच सकता है कि बिना किसी बातचीत के, बिना कोई हिस्सा तय किये कोई भी व्यक्ति किसी के खाते में कोई रकम या चेक जमा नहीं कर सकता। साथ ही बिना किसी निष्कर्ष या हानि लाभ के कोई भी व्यक्ति छोटी रकम जमा करने के लिये भी अपना खाता नंबर नहीं देगा। फिर यह तो दो करोड़ 40 लाख की एक बड़ी रकम का मामला था। फिर पुलिस की वह कौन सी नस थी जिसे दबाकर कालीन कारोबारी मासूम बन गया और इतने बड़े ठगी काण्ड से साफ— साफ बरी हो गया।

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