Home अवर्गीकृत कमलनाथ के बयान पर रार क्यों?

कमलनाथ के बयान पर रार क्यों?

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हमार पूर्वांचल
अयोध्या न्यूज़

मध्यप्रदेश के नव नियुक्त मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जब बयान दिया कि मध्यप्रदेश के संशाधनों पर पहला हक यहां के स्थानीय निवासियों का है और नौकरियों में सबसे पहले 70 प्रतिशत हक स्थानीय लोगों को दिया जायेगा। इस बयान के बाद कांग्रेस और कमलनाथ पर हमले होने शुरू हो गये। लोगों के जहन में इस बयान के बाद जहर भरा जाने लगा। किन्तु बयान पर इतना जहर क्यों पैदा किया जा रहा है? मध्य प्रदेश के नव नियुक्त मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कोई नई बात नहीं कही। राज्य में स्थानीय लोगों को नौकरी मिले इसमें जरा भी गलत नहीं है, जो बात इससे पूर्व गुजरात सहित कई अन्य राज्यों में लागू है वहीं बात कही। यदि गलत है तो गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी भी गलत है। विजय रूपानी ही क्यों गलत तो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी है जो खुले मंच से उत्तर प्रदेश में नौकरियों में स्थानीय लोगों को 90 प्रतिशत स्थान देने की वकालत करते हैं।
गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने घोषणा करते हुए कहा था कि ‘गुजरात में औद्योगिक और सेवा क्षेत्र में प्रवेश करने वाली कंपनियां 80 प्रतिशत नौकरियाँ गुजरातियों को देनी होंगी’। इसके पूर्व जब नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री थे तब से राज्यों में 70 प्रतिशत नौकरियाँ गुजरातियों के लिये लागू कर दी थी। आपको याद होगा कि कुछ ही महीने पूर्व गुजरात से किस प्रकार बिहारियों को खदेड़ा गया था।
यही हाल महाराष्ट्र का है जहां भाजपा की सहयोगी शिवसेना और मोदी के चेहते राज ठाकरे खुले आम बिहार और यूपी के लोगों के विरूद्ध जहर उगलते ही रहते हैं। वहीं भाजपा की महाराष्ट्र सरकार ने पूरे महाराष्ट्र में 80 प्रतिशत नौकरी स्थानीय मराठी लोगों को देने का आदेश पारित किया है। इसी प्रकार पिछले उत्तर प्रदेश के चुनाव में भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में छपा हुआ था कि उत्तर प्रदेश में यूपी के स्थानीय लोगों को नौकरियों में 90 प्रतिशत आरक्षण दिया जायेगा।
इसी प्रकार बिहार में भी 50 प्रतिशत का नियम लागू है। कमलनाथ के बयान में कुछ भी गलत नहीं है उन्होंने वही बात कही जो भाजपा कहती आ रही है । फिर कमलानाथ को ही क्षेत्रवाद फैलाने का दोषी बताया जा रहा है। कमलनाथ ने कोई नई बात नहीं की है बल्कि उन्होंने जो भी कहा उचित ही है। किसी भी प्रदेश में स्थानीय लोगों को यह अधिकार मिलना ही चाहिये। आखिर लोग क्यों अपना प्रदेश अपना घर छोड़कर दूसरे प्रदेशों में जायें। क्यों अपनों से दूर होकर अकेला रहने का दंश झेले।
आखिर यह तो राज्य सरकारों की नाकामयाबी ही है जो लोग अपने बीब बच्चे घर परिवार छोड़कर दूसरे प्रदेशों में जाकर रोजी रोटी कमाते हैं और अपमान का घूंट पीकर जीते हैं।
महाराष्ट्र में कितने वर्षों से देखा जा रहा है कि रोजगार को लेकर उत्तरभारतीयों को निशाना बनाया जा रहा है। कभी शिवसेना उत्तरभारतीयों की पिटाई करके अपमानित रही तो अपनी राजनीति चमकाने के लिये मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने उत्तर भारतीयों के मान सम्मान के खिलवाड़ ही नहीं किया बल्कि कितने लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी। एक दौर ऐसा भी आया जब उत्तरभारतीयों की अपनी जान बचाने के लिये भागना पड़ा।
इस क्षेत्रवाद की लड़ाई में गरीब उत्तरभारतीयों को ही निशाना बनाया गया। जब भी ऐसा हुआ तो कुछ चालाक और शातिर उत्तरभारतीयों ने अपनी राजनीति चमकायी और जुगाड़ फिट करके राज्यसभा या विधानसभा पहुंच गये।
सोचनीय बात है कि देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तरप्रदेश का युवा बेरोजगारी का दंश झेल रहा है। जबकि इसी उत्तरप्रदेश ने देश को कितने प्रधानमंत्री दिये हैं। इसके बावजूद भी उत्तरप्रदेश में कोई ऐसा उद्योग धंधा नहीं लगाया गया जिसे यहां के युवाओं का पलायन रूकता। यदि यहां पर उद्योग धंधे स्थापित करने की पहल की गयी होती तो युवाओं को अपने घर परिवार से अलग नहीं होना पड़ता। कमलनाथ के बयान पर राजनीति करने वाले आखिर यूपी के युवाओं के मान-सम्मान और स्वाभिमान के बारे में क्यों सोचता। कमलनाथ के बयान पर राजनीति करने वाली भाजपा को पहले खुद पर मंथन करना होगा।

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