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चुनावी हथियार के तौर पर क्यों हो सेना का इस्तेमाल

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यह देश है वीर जवानों का
अलबेलों का मस्तानों का
इस देश का यारों क्या कहना
यह देश है दुनिया का गहना

यह गीत सुनने के बाद पूरे शरीर में रोमांच पैदा हो जाता है और देश के वीर सपूतों पर अभिमान होने लगता है, मगर वर्तमान परिस्थितियों में यह गीत फिट नहीं बैठता है। इसका कारण है कि अपने देश में ही कुछ लोग सेना के शौर्य पर सवाल खड़े कर रहे हैं। सेना द्वारा किये वीरता कारनामों के सबूत मांगे जा रहे हैं। हालांकि इस देश ने सियासत के कई दौर देखे हैं लेकिन जो सियासत आज दिख रही है, वह इस लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।

मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि जिस सेना के दम पर यह देश सुरक्षित है, उसी सेना के जरिये राजनेता अपनी राजनीति भी चमकाते हैं। कुछ नेता हमारी सेना के शौर्य पर सवाल उठाकर राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हैं। पूरी दुनिया को भारत के दावे पर भरोसा है मगर इस देश के नेता ही बंट गए हैं। सेना को राजनीति का मोहरा बनाने में न तो विपक्ष पीछे दिखायी दे रहा है ओर न ही सत्ताधारी। दोनों अपने अपने फायदे के लिये सेना को हथियार बनाने की होड़ में शामिल हैं। सत्ताधारी जहां सेना के गुणगान करके वोट बटोरने की जुगत में लगे हैं, वहीं विपक्ष सत्ता को नीचा दिखाने के लिये सेना पर ही अंगुली उठा रहा है।

गत दिनों पुलवामा में सैनिकों पर हुये कायराने हमले के बाद सेना को राजनीति में घसीटने का दौर शुरू हो गया है। सत्ताधारी दल इस कार्रवाई का श्रेय लेने में सबसे आगे हैं। जबकि विपक्ष कार्रवाई के सबूत मांगने में पीछे नहीं है। दोनों हालात में यह सियासी दृश्य चिंताजनक है। हमें यह समझना होगा कि सेना के शौर्य पर सियासत क्यों हो रही है? यह सही है कि सियासत की नींव में सिर्फ अपना नफा-नुकसान ही होता है लेकिन नेता भूल गए हैं कि मुद्दा यहां सियासी गुणा-भाग का नहीं बल्कि राष्ट्र की सुरक्षा का है। देश के मान-सम्मान और स्वाभिमान का है।

काँग्रेस सहित समूचा विपक्ष सबूत मांगने के लिए सरकार पर टूट पड़ा। मिग-21 जैसे हमारे हवाई जहाजों की क्षमता पर भी सवाल खड़े किए गए। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उत्साह में आकर सेना और सरकार से पहले ही बालाकोट में मारे गए आतंकियों की गिनती भी कर दी। बालाकोट में सेना ने एअर स्ट्राइक करके पुलवामा का बदला लिया, लेकिन कितने आतंकी मारे गये इसका सही आंकड़ा किसी के पास नहीं है। अमित शाह का अति उत्साह में आकर आतंकियों की गिनती बता देना ही विपक्ष के लिये मुद्दा बन गया। जाहिर है कि यह सबकुछ देश के लिए नुकसान पहुंचाने वाला है।

कांग्रेस के बड़बोले नेता दिग्विजय सिंह कह रहे हैं कि जैसे अमेरिका ने ओसामा को मार कर सबूत दिया, वैसे भारत सरकार भी सबूत पेश करें। वहीं नवजोत सिंह सिद्धू कह रहे हैं कि सेना ने आतंकी मार गिराए या फिर पेड़ों को मार गिराया। दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल से लेकर ममता बनर्जी तक सब सवाल उठा रहे हैं।

पक्ष-विपक्ष अपने-अपने नफा-नुकसान के हिसाब से सेना के शौर्य को आंक रहा है, जो खतरनाक है। देश इस समय आम चुनाव की दहलीज पर खड़ा है। ऐसा लग रहा है कि सत्ता पाने की हसरतों ने सारी सीमाएं तोड़ दी हैं। सेना की कार्रवाई पूरे देश के लिए गौरव है ना कि किसी एक दल के लिए उपलब्धि।

उरी के सैन्य ठिकाने पर आतंकी हमले के बाद भी पाक में हमारी सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक की थी, जिसके सबूत बाद में सार्वजनिक भी कर दिए गए। ऐसे में अब विपक्ष को एयर स्ट्राइक के सबूत मांगने की जल्दी क्यों है?क्या सबूतों पर ही चुनावी समीकरण टिके हुए हैं? भारतीय सेना के शौर्य की दुनिया कायल है, लेकिन तमाम राजनीतिज्ञ अगर सेना का इस्तेमाल चुनावी हथियार के तौर पर करेंगे, तो यह अपराध है। सेना के शौर्य पर यह सियासत बंद होनी ही चाहिए। ऐसे बेशर्म नेता यह भी नहीं सोचते कि जिस परिवार ने अपना बेटा, पति, पिता और भाई खोया, उसे इस गंदी सियासत से कितनी तकलीफ पहुंचती होगी। जो वीर जवान देश के लिए शहीद हो गया, आज उसी देश के लोग उसके शौर्य पर सवाल उठा रहे हैं।

देश में बेराजगारी, विकास, सामाजिक समरसता जैसे तमाम मुद्दे हैं किन्तु चुनाव आते ही मूल मुद्दे गायब हो जाते हैं और जाति, धर्म, मंदिर-मस्जिद आदि की सियासत शुरू हो जाती है। सत्ता का सुख पाने की चाह में नेता समाज को बांटने में लग जाते हैं, लेकिन इस चुनाव में सेना को ही चुनावी हथियार बना दिया गया है जो एक स्वच्छ लोकतंत्र के लिये घातक है।

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