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क्या मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण कर पायेगा जिन्ना का जिन्न

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भाजपा के हार्ड हिन्दुत्व के सामने पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना का नाम लेकर फंसे अखिलेश यादव

यूपी में विधानसभा 2022 की रणभेरी अभी बजी नहीं है किन्तु मतदाताओं को लुभाने की कवायद जोर शोर से शुरू हो गयी है। हिन्दू वोटरों को अपने साथ बनाये रखने के लिये जहां भाजपा धार्मिक तीर छोड़ने से पीछे नहीं है, वहीं सपा मुखिया अखिलेश यादव भी मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिये पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के जिन्न को छोड़ दिया है। अब अखिलेश इस जिन्न से कितना वोट निकाल पाते हैं, यह तो नहीं पता किन्तु लोगों में यह चर्चा आम हो गयी है कि भाजपा के हार्ड हिन्दुत्व के सामने मुसलमानों को लुभाने के लिये छोड़ा गया जिन्ना का जिन्न वोटरों को कितना प्रभावित कर पायेगा।

दरअसल गत दिनों हरदोई की एक जनसभा में अखिलेश ने मुस्लिम लीग के नेता और पाकिस्‍तान के संस्‍थापक जिन्‍ना के बारे में कहा था कि ‘सरदार वल्लभ भाई पटेल, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना ने एक ही संस्थान से पढ़ाई की और बैरिस्टर बने। अखिेलश यादव यहीं पर नहीं रूके बल्कि कहा देश को आजाद कराने में जिन्ना का बहुत बड़ा योगदान था। उन्होंने जिन्ना की तुलना सरदार पटेल से कर दी। यह बात न तो राष्ट्रवादियों को पसंद आयी और न ही भाजपा को। खैर विधानसभा चुनाव में हार्ड हिन्दुत्व का कार्ड खेलने को तैयार बैठी भाजपा को एक मुद्दा और मिल गया। हिन्दु वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिये भाजपा को विपक्ष की तरफ से आने वाले ऐसे ही बयानों की आवश्यकता है। जिससे विपक्ष को घेरा जा सके। भाजपा के नेताओं का कहना है कि अखिलेश मुस्लिमों को लुभाने के लिये जिन्ना को आजादी का नायक बता रहे हैं, जबकि जिन्ना का आजादी में कोई योगदान नहीं था। बल्कि देश के विभाजन में जिन्ना का सबसे बड़ा योगदान है।
भाजपा का यह पलटवार जाया भी नहीं जा रहा है। पिछले दिनों जब अखिलेश यादव से एक पत्रकार ने पूछा कि आपने जिन्ना को आजादी का नायक बताया तो उन्होंने पत्रकार को ही इतिहास पढ़ने की नसीहत दे डाली। यदि इतिहास पर गौर किया जाय तो जिन्ना और उनकी पार्टी मुस्लिम लीग ने द्वि राष्ट्र के समर्थक रहे। जिन्ना की जिद के कारण ही देश का बंटवारा हुआ और लाखों लोग बेघर हुये। लाखों लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी। दूसरी तरफ सरदार पटेल ने रियासतों बंटे भारत को एक राष्ट्र बनाने का इतिहास बनाया। जो लोग इतिहास जानते हैं उन्हें अखिलेश यादव का यह बयान बचकाना ही लगा जो भाजपा के लिये लाभदायक साबित हो रहा है।
गौरतलब हो कि समाजवादी पार्टी का मूल वोटबैंक यादव और मुस्लिम माना जाता है। जिसमें सेंध लगाने के लिये जहां भाजपा भी जुगत भिड़ा रही है। वहीं ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के राष्ट्रीय अध्यक्ष असादुदीन ओवैसी की यूपी चुनाव में इंन्ट्री से भी अखिलेश यादव का दिल धड़कने लगा है। ओवैसी की निगाह मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्रों में हैं जहां से वे अपने उम्मीदवार खड़ा करेंगे। इसके लिये ओवैसी ने 100 विधानसभा सीटों से अपने प्रत्याशी उतार सकती है। बस इसी बात को लेकर सपा मुखिया की नींद उड़ी हुई है। अखिलेश को पता है कि देश का विभाजन भले ही हो गया है किन्तु अधिकतर भारतीय मुस्लिम इस्लामिक कट्टरता के शिकार हैं और गाहे बगाहे पाकिस्तान का समर्थन करते रहते हैं। बस इसी कट्टरता को भुनाने के लिये अखिलेश ने मुस्लिमों को रिझाने का जाल जिन्ना के जिन्न को उतार कर फेंका है। अब उनके जाल में कितने मुस्लिम फंसते हैं यह तो नहीं पता किन्तु अपने बयान के बाद अखिलेश खुद फंसते दिखायी दे रहे हैं।
गौरतलब हो कि यूपी चुनाव के समय विकास का मुद्दा नगण्य हो जाता है। कौन सी सरकार ने कितने काम किये या नहीं किये यह देखने वाले कम हैं किन्तु चुनाव के समय कौन सी पार्टी किस जाति को अपने पक्ष में लामबंद करने के लिये भुना रही है। यह मुद्दा अधिक प्रभावी हो जाता है। देखा जाय तो भाजपा ने हिन्दुओं को अपने पक्ष में एकजुट करने के लिये राममंदिर, धर्मान्तरण, जनसंख्या बिल जैसे मुद्दों को उछाल रही है। वह जातियों की नहीं बल्कि हिन्दुओं की बात करती है। जिसका असर भी दिखायी दे रहा है। पिछले दिनों समाजवादी पार्टी के यादव वोटबैंक को अपने पक्ष में करने के लिये भाजपा ने लखनउ में एक बैठक कर अखिलेश की नींद उड़ा दी थी। जिससे घबराये अखिलेश ने क्षेत्रीय दलों से गठबंधन करके चुनावी नैया पार करना चाहते हैं, लेकिन यूपी चुनाव में ओवैसी की लगातार बढ़ रही दखलंदाजी से भी उन्हें मुस्लिम वोटबैंक खिसकने का अंदाजा हो गया है। जिसकी बौखलाहट का नतीजा है कि अखिलेश को देश का बंटवारा करने वाले जिन्ना को भी देश का नायक बता रहे हैं। वे जिन्ना की तूलना सरदार बल्लभ भाई पटेल, महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू से कर रहे हैं। खैर जिन्ना का जिन्न अखिलेश को कितना लाभ पहुंचायेगा। यह तो नहीं कहा जा सकता किन्तु यूपी के चुनाव में अब नेहरू, गांधी, पटेल और जिन्ना भी राजनीतिक दलों की नैया पार करने में सहायक बन रहे हैं।

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