भदोही। कहने को प्रशासन अपने कागजी खानापूर्ति में हमेशा सही रहता है लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग रहती है। इस अन्तर के पीछे प्रशासन की लापरवाही कही जाए या मिलीभगत। क्योकि जिले के एक ही विभाग में नही अपितु सभी विभागों में लापरवाही का खेल देखने को मिलता है। जहां पर शिकायत करने पर सम्बन्धित अधिकारी का रटा रटाया बयान रहता है कि जांच कराई जायेगी यदि आरोप सही पाया गया तो कार्यवाही होगी। लेकिन अधिकतर मामलों में प्रशासन या विभाग के सामने ही लापरवाही का खेल होता है लेकिन कोई अधिकारी रिस्क नही लेना चाहता है। इसका उदाहरण स्वास्थ्य विभाग में बखूबी देखा जा सकता है कि हर गांव में कमोवेश एक-दो झोला छाप डाक्टर है। जो खुलेआम लोगों को दवाईयां दे रहे है और मामला बिगड जाने पर तुरन्त अपना हाथ ऊपर कर लेते है।
रोगी की जान जाए या जान बचे उससे इन झोलाछाप डाक्टरों से कोई सरोकार नही है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि जिला प्रशासन आखिर इनके खिलाफ कोई ठोस कार्यवाही क्यों नही करता है? या जानबूझकर लोगों को झोलाछाप डाक्टरों सेे दवा लेने पर छोड दे रहे है? कुछ तो ऐसे भी डाक्टर है जिनको दवा का नाम पढने व लिखने भी नही आता लेकिन उनकी फर्जी डाक्टरी धडल्ले से चल रही है। जिले में कुछ ऐसे भी डाक्टर है जिन्होने ऐन केन प्रकारेण कही से कोई आयुर्वेद या होमियोपैथी की डिग्री की व्यवस्था करके लोगों को एलोपैथी की दवा दे रहे है। लेकिन प्रशासन ऐसे डाक्टरों पर पता नही क्यों मेहरबान है? जिले का एक भी बाजार नही है जहां पर झोला छाप डाक्टर न हो।
हर गांवों में एक-दो झोला छाप डाक्टर देखे जा सकते है। जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग को जिले के झोलाछाप डाक्टरों के खिलाफ अभियान चलाकर आम जनता को इनसे मुक्ति दिलाने की बहुत जरूरत है। क्योकि जिले के ज्यादातर लोग इन झोलाछाप डाक्टरों के इलाज के बाद अच्छे डाक्टर को तब दिखाते है जब रोग सही नही होता है। दूसरी बात यह भी है कि झोलाछाप डाक्टर मनमानी रूपया लोगो से ऐंठते है खासकर महिलाओं से। क्योकि इन झोलाछाप डाक्टरों को डाक्टरी का कुछ ज्ञान तो है नही केवल अंदाज में महिलाओं को उलूल जुलूल बात बताकर मूर्ख बनाते है। आम जनता को भी चाहिए कि अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर किसी भी कीमत में झोलाछाप डाक्टरों से ईलाज न करायें।