माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को सादर प्रणाम के साथ आज इस मंच का सहारा लेते हुए मैं भी मेरा जीवन संघर्ष साझा कर रही हूँ। मेरी कहानी में संघर्ष तो है ही, मगर समर्पण से दर्पण कितना साफ दिखाई देता है। चाह को राह कैसे मिलती है, कैसे कोई अपनी इच्छा शक्ति से राह को निष्कंटक बनाता है, जानिए कैसे किया मैंने समस्याओं का विसर्जन और शून्य से सर्जन….’मेरी कहानी मेरी जुबानी’
“गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर आर.जे. आरती,
संघर्षों से जूझती इस कवियत्री पर गर्व करे स्वयं माँ भारती”
इन पंक्तियों के साथ एक जगह मुझे संबोधित किया गया था। पर आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक हसती-खिलखिलाती लड़की जिंदा लाश बन गई कागज-कलम लेकर बैठी और कवयित्री बन गई !
वर्ष 2004 में मेरे पिता जी के देहावसान के उपरांत मुजे इतना गहरा आघात लगा कि पिता की मृत्यु पर मैं रोयी ही नहीं !स्तब्ध जो हो गई थी। चिकित्सकों ने सलाह दी कि मुजे रुलाया जाए। सारे प्रयास असफल रहे पिता के देहावसान के चौथे दिन मैं निरुद्देश्य ही एक कागज का टुकड़ा और कलम लेकर कुछ लिखने लगी। मेरी आँखों ने बरसना शुरू कर दिया। स्तब्धता धुलती गई और कलम से कागज पर जो भी मुझसे उकेरा गया वह एक प्रभावी भावनात्मक काव्य बन गया था! माँ के पूछने पर भी मैं बता नहीं पाई थी कि मेरा लेखन शुरू हो गया है, क्योंकि मैं खुद भी कहाँ समझ पाई थी। मैं स्वयं नहीं समझ पा रही थी कि मैंने क्या लिखा है। इस तरह पिता के मृत्यु के कारण दुखों’ अभावों एवं पीड़ाओं से संघर्ष करते करते मेरी कलम का जन्म हुआ। पिता के निधन के 6 महीने बीत चुके थे। घर में अभावों का साम्राज्य पसरा हुआ था। पिता की मृत्यु के कई वर्षों पहले भाई को भी खोया था। दो बहनों और माँ के साथ 4 स्त्री कंधों पर टिके घर में आज तक हम रहते हैं।
दिसंबर 2004 में समाचार पत्र में काव्य गोष्ठी की खबर पढ़कर मैं वहां चली गई। एक श्रोता की तरह काव्य सुनती रही। काव्य गोष्ठी से देर रात घर वापस आकर उस ही रात मैंने एक साथ कई कविताएं रच डाली। काव्य गोष्टी की प्रेरणा प्रोत्साहन दे रही थी। मुंबई में आयोजित होने वाले कवि सम्मेलनों में जाने का सिलसिला शुरू हो चुका था। कवि सम्मेलन में आने-जाने के लिए अर्थाभाव की बाधा थी। परन्तु मैं रेलवे व पैदल चलकर कार्यक्रमों में जाने लगी। पीतल के बर्तन बेचकर रेलवे टिकट के पैसे माँ देती थी। पर टिकट के पैसे तो प्लेटफार्म पर ही खत्म हो जाते थे उसके बाद पूरे दिन का क्या ? घर से निकलते वक्त मैं माता सरस्वती से विनती करके निकलती थी कि हे माँ मेरी इतनी लाज रखना कि कवि सम्मेलन के बाहर लगे बुक स्टॉल पर कोई मुझसे बुक खरीदने का आग्रह न करे क्योंकि हाथ में पर्स तो है पर पर्स में पैसे नहीं! पैसे ना होने की वजह से साहित्यिक कार्यक्रमों में जाने से मुझे न तो मेरी मम्मी ने रोका न तो बहनों ने, पिता की प्रथम पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि स्वरुप मेरी स्वरचित पुस्तिका “सत्यमेव जयते” का प्रकाशन हुआ। मेरी रचनाओं की सारगर्भिता एवं उत्कृष्टता देखकर कई कवियों ने मेरी उपलब्धियों को नकारने के राह में बाधायें खड़ी करने के अनेक प्रयास किए। कलम को कुचलने का प्रयास करते रहे किंतु माँ सरस्वती की कृपा से मैं आगे बढ़ती ही गई। काव्य गोष्ठियों में मुझे माइक ना मिल पाए इसके लिए कई लोगो ने अनेक प्रयास किए। पर आज सरस्वती ने वह माइक मुजे दिया है जो देश की आवाज है। जन-जन की आवाज है। जहां से माननीय प्रधानमंत्री जी भी अपनी मन की बात करते है। वह है आकाश को स्पर्श करती वाणी ‘आकाशवाणी’।
2012 में मेरे साहित्य जीवन में स्वर्णिम अवसर आया। आकाशवाणी पर मुझे काव्य पाठ का अवसर मिला। उसके बाद युववाणी में मेरे कार्यक्रम प्रसारित होने लगे। फिर मैंने आकाशवाणी में उद्घोषिका के पद हेतु आवेदन किया। मैं कभी नहीं भूल पाऊंगी की जब मैं उद्घोषिका हेतु आवेदन पत्र जमा करने आकाशवाणी गई थी तब मेरे पर्स में केवल ₹10 ही थे और आवेदन के लिए डीडी बनाने के लिए पैसे माँ ने घर से बर्तन बेचकर दिए थे। आकाशवाणी कि उद्घोषिका के रूप में मेरा सिलेक्शन हुआ और फिर आकाशवाणी मुंबई की 100.1 fm gold वाहिनी पर से गुजराती भाषा में मेरे लाइव शो विश्वभर में प्रसारित होने लगे। आप की दुआओं से अब मैं परिचय की मोहताज नहीं थी। 2014 में मेरा काव्य संग्रह “पुष्पदीप” प्रकाशित हुआ जिसे गिरा गुर्जरी सम्मान भी मिला और इस काव्य संग्रह के प्रकाशन हेतु महाराष्ट्र राज्य गुजराती साहित्य अकैडमी के तरफ से अनुदान भी प्राप्त हुआ।
2016 में श्री कच्छी विसा ओसवाल स्थानकवासी जैन महाजन नारी उत्कर्ष समिति द्वारा मुजे वूमन्स अचीवमेंट अवार्ड प्रदान किया गया। इसी वर्ष से हिंदुस्तानी प्रचार सभा से मैंने उर्दू सिखना शुरू किया। डोंबिवली से चर्नी रोड तक उर्दू सीखने के लिए आवागमन करते वक्त मुझे कोई अपेक्षा ही नहीं थी कि मैं कभी उर्दू मंचों पर भी पठन करूंगी। इस दौरान मुझे हिंदुस्तान की कोहिनूर शायरा डॉ. कमर सुरूर का साथ मिला ऑल इंडिया उर्दू मुशायरा के बैनर तले मैंने परभणी, श्रीवर्धन, कर्नाटक, अहमदनगर, मुरुड जंजीरा, मीरज, संगमनेर, वडोदरा सहित भारत के अनेक स्थलों में काव्य पाठ किया। जी.टी.पी.एल.गुजराती टीवी चैनल पर और इन ट्वेंटी फोर न्यूज़ चैनल पर भी काव्य पाठ किया।
मेरे पिता जी का नाम “हीरा” था। संयोग से मेरी माता जी का नाम भी “हीरा” ही है। पापा के अवसान के दुख से लिखना शुरू हुआ और माता की रोक-टोक बिना की विचारधारा ने मुझे आगे बढ़ने दिया इसीलिए मैंने अपना तखल्लुस रख दिया “हीरांशी” माता हीरा – पिता हीरा और हीरा की अंश याने ‘हीरांशी’ जब मेने सोचा कि यह क्या अचानक पापा के जाने से मेरी कलम चल रही है ! पापा इतनी ऊंची भेंट मुझे दे गए हैं। तो क्यों मैं यह ना करूं कि मैं कागज और कलम से ही शादी कर लूं ! और मेरा जीवन साहित्य को समर्पित कर दूँ। “बिना रुकावट और बिना बाधा के मैं साहित्य में आगे बढ़ना चाहती हूं, इसीलिए मम्मी मैं शादी नहीं करना चाहती।” यह सुनते ही मेरी मम्मी ने तुरंत ही कहा कि,”हां, शादी भले मत कर लेकिन समाज को उपयोगी हो ऐसे काम जरुर करना” इस जवाब से मेरी माता की नवयुग लक्षी विचारधारा का सहज ख्याल आता है!
जिन काव्य स्पर्धाओं में मैं स्पर्धक के रूप में भाग लिया करती थी उनमें अब मुजे अनेक बार निर्णायिका की भूमिका निभाने बुलाया जाता है। मेरे अब तक के साहित्यिक सफर की सबसे बड़ी सिद्धि यह है कि मेरा नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड तथा लिम्का बुक में शामिल हुआ है। 28 अक्टूबर से 1 नवंबर तक दिल्ली में लगातार 101 घंटे तक चलने वाले मेरेथोन मुशायरे का आयोजन हुआ था। इस मुशायरे में भारत भर के हजारों शायरों में से चुनिंदा 603 शायरों में से एक मात्र कच्छी जैन शायरा थी तो वह थी आप की अपनी आर.जे.आरती…। मेरे पठन के दौरान ही वहां घोषित किया गया कि अब तक भारत ने पाकिस्तान का विश्व रिकॉर्ड तोड़ दिया है। इस घोषणा ने मुशायरे के माहौल को जश्न में बदल दिया।
” मैं जैन हूँ, जैन समाज से हूँ “यह कह कर मेने इस मुशायरे में पठन की शुरुआत की। भारत के नामांकित शायरों के साथ मुजे भी विश्व रिकॉर्ड की ट्रॉफी, प्रमाणपत्र व मानधन से सम्मानित किया गया। अनेक संस्थाओं के साथ जुड़कर मुंबई के अनेक विद्यालयों महाविद्यालयों में हिंदी भाषा के उत्थान के लिए कई तरह के कार्यक्रम के आयोजन के साथ माध्यम फाउंडेशन के सहयोग से एड.राजीव मिश्रा के साथ प्रति वर्ष 15 अगस्त तथा 26 जनवरी को भारतीय सेना के वीर जवानों और शहीदों को समर्पित कार्यक्रम “एक शाम वतन के नाम” का गौरवशाली आयोजन कर खुद को मैं भाग्यशाली समझती हूँ। जो एक कार्यक्रम नही बल्कि एक मिशन है, भारतीय सेना के प्रति आदर व सम्मान जगाने का, उनकी सेवाभावना को नमन करने का तथा उनके उच्च आदर्शों को हृदय में स्थापित करने का।
आप सभी की दुआओं से अब तक मुझे जितने भी सम्मान प्राप्त हुए हैं वह प्रत्येक सम्मान मेरे लिए साक्षात माता सरस्वती के समान है। जिनमें, आनंदोत्सव सरस्वती सम्मान 2014, वडलो सम्मान 2015, कच्छ शक्ति पारितोषिक 2016, नवी मुंबई केवल फाउंडेशन द्वारा महिला गौरव अवॉर्ड 2017, राइ्टर्स एंड जर्नलिस्ट एसोसिएशन महाराष्ट्र इकाई वाजा इंडिया द्वारा काव्य सम्मान 2017, श्री भाणबाई नेणशी महिला विद्यालय द्वारा बी.एन.एम.वी. महक लिटरेरी अवॉर्ड 2016-17, 17-18, 18-19, 19-20, सहारा एजुकेशन एंड वेलफेयर फाउंडेशन परभणी का राज्य स्तरीय महिला गौरव सम्मान 2018, काव्य सृजन द्वारा साहित्य रत्न सम्मान 2018, कच्छ युवक संघ डोंबिवली द्वारा साहित्य सम्मान 2018, शब्दवेल साहित्य प्रतिष्ठान वसई द्वारा बहुभाषी कवि सम्मेलन अंतर्गत काव्य सम्मान 2018, शिवसेना डोंबिवली पश्चिम शाखा क्रमांक 49 द्वारा साहित्य सम्मान 2015, अखिल भारतीय अग्निशिखा मंच द्वारा अग्निशिखा गौरव रत्न पुरस्कार 2018, कच्छी जैन फाउंडेशन नवनीत नगर यूथ फोरम द्वारा रिकॉर्ड होल्डर 2019 सम्मान, माध्यम फाउंडेशन एवं शब्द सारथी साहित्य मंच द्वारा काव्य सम्मान 2019, अनुबंध फाउंडेशन द्वारा साहित्य सम्मान , जीवनधारा साहित्य रत्न 2019, हिरकर्णी अवार्ड 2019, कच्छी जैन फाउंडेशन एवं कच्छी जैन महाजन द्वारा सम्मान, कच्छी जैन समाज से उड़ान अवार्ड, केशा कवियत्री सम्मान, रामलीला सम्मान, ऑल इंडिया पोएट सम्मान जैसे अनेक सम्मानों के साथ महफिल- ए -ग़ज़ल साहित्य समागम द्वारा महादेवी वर्मा सम्मान सहित सारे सम्मानों को मैं सादर प्रणाम करती हूँ।
पिता के देहावसान से लेकर आज तक हमारे परिवार को जय प्रकाश मोदी जी के मारवाड़ी परिवार ने जो साथ दिया है उस के लिए इतना ही कहूँगी की भगवान यकीनन जय प्रकाश मोदी जी के परिवार जैसा होता होगा। आवास लाभ के लिए कच्छी जैन फाउंडेशन, कच्छी जैन महाजन की भी मैं कायम रुणी रहूंगी। वर्तमान में मैने एस.एन.डी.टी. महिला यूनिवर्सिटी के गुजराती विभाग से गुजराती लिटरेचर में एम.ए. किया है और डॉक्टरेट करना चाहती हूं। आप सबके आशीष की शुभ मंगल कामना के साथ आप सभी को नतमस्तक प्रणाम