सनातन धर्म में त्योहारों एवं उत्सवों का आदि काल से ही ज्योतिषीय महत्व रहा है। हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहाँ पर मनाये जाने वाले सभी त्यौहार व्यावहारिक और वैज्ञानिक तौर पर खरे उतरते है
ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे
नव अक्षरों वाले इस अद्भुत नवार्ण मंत्र के हर अक्षर में देवी दुर्गा कि एक-एक शक्ति समायी हुई हैं, जिस का संबंध एक-एक ग्रहों से हैं।
नवरात्रि का धार्मिक आध्यात्मिक लौकिक और शारीरिक दृष्टि से बड़ा महत्व महत्व है| शिव और शक्ति की आराधना से जीवन सफल और सार्थक होता है |
शारदीय नवरात्र के दिनो में ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए मां दुर्गा की पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्मकुंडली के ग्रहों की शांति हेतु नवरात्रि के दिनो में मां दुर्गा की आराधना पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से कि जाये , तो मां दुर्गा कि प्रमुख नौ शक्तियाँ जाग्रत , होते हुए नव ग्रहों को नियंत्रित करती हैं, जिससे ग्रहों से होने वाले अनिष्ट प्रभाव से रक्षा प्राप्त होती है और ग्रह जनित बाधाओ से मुक्ति प्राप्त होती है| ज्योतिष मत के अनुसार यदि जन्म कुंडली में चंडाल योग, मातृदोष दरिद्र योग, ग्रहण योग, विष योग, कालसर्प एवं मांगलिक दोष, एवं नवग्रह संबंधित पीड़ा एवं दैवी आपदाओं से मुक्ति प्राप्त करने का सरल साधन देवी कि आराधना हैं। जब ज्योतिष के दूसरे उपायों जैसे पूजा, अर्चना, साधना, रत्न एवं अन्य उपायो से पूर्ण ग्रह पीडाए शांत नहीं हो हो पा रही हो तब एसी स्थिती में आदि शक्ति मां भगवती दुर्गा के नव रुपो कि आराधना से व्यक्ति सरलता से विशेष लाभ प्राप्त कर सकता हैं।प्रायः देखा जाता है कि ज्योतिष के माध्यम से पता चलता है कि किस कारण से यह रोग हुआ है और उसका इलाज रत्न चिकित्सा या मंत्र चिकित्सा के माध्यम से किया जाता है |मंत्र भी सही मुहूर्त मे करने पर शीघ्रातिशीघ्र प्रभावशाली होते है |
यही कारण है कि पुराने से पुराने असाध्य रोगो को भी नवरात्रो मे मंत्र चिकित्सा द्वारा ठीक कर पाना सम्भव होता है | ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे।
नवार्ण मंत्र दुर्गा कि नव शक्तियाँ व्यक्ति को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष कि प्राप्ति में सहायक सिद्ध होती हैं।
दुर्गा सप्तशती पाठ से जिसमे बताया गया है की तीनो लोको के कल्याण के लिए किस तरह देवी दुर्गा माँ का अवतरण हुआ है और क्यों देवी माँ दुर्गा की ही आराधना से सभी मुख्य देवी देवताओ का आशीष साधक को प्राप्त होता है |तो क्यों न होगा दोष शान्त या ग्रह शान्त क्योंकि नौ ग्रहो के तीन मुख्य रूप से स्वामी जिसने सात ग्रह के अधिष्ट्रत्र शिव परिवार और एक के ग्रह के विष्णु और एक ग्रह की देवी है और जिससे चलती है पूरी ग्रहण का चाल
देवताओ के तेज से भगवती का अवतार हुवा :
दुर्गा सप्तशती के दुसरे अध्याय से जब दानव राज महिषासुर ने अपने राक्षसी सेना के साथ देवताओ पर सैकड़ो साल चले युद्ध में विजय प्राप्त कर ली और स्वर्ग का राजाधिराज बन चूका था | सभी देवता स्वर्ग से निकाले जा चुके थे | वे सभी त्रिदेव (बह्रमा विष्णु और महेश) के पास जाकर अपने दुखद वेदना सुनाते है | पूरा वर्तांत सुनकर त्रिदेव बड़े क्रोधित होते है और उनके मुख मंडल से एक तेज निकलता है जो एक सुन्दर देवी में परिवर्तित हो जाता है | भगवान शिव के तेज से देवी का मुख , यमराज के तेज से सर के बाल , श्री विष्णु के तेज से बलशाली भुजाये , चंद्रमा के तेज से स्तन , धरती के तेज से नितम्ब , इंद्र के तेज से मध्य भाग , वायु से कान , संध्या के तेज से भोहै, कुबेर के तेज से नासिका , अग्नि के तेज से तीनो नेत्र |
जानिये नवग्रह का क्या असर होगा नवरात्रि का
सूर्य कमजोर हो तो स्वास्थ्य के लिए शैलपुत्री कि उपासना से लाभ मिलेगा |
चन्द्रमा के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए कुष्मांडा देवी |
मंगल ग्रह के दुष्प्रभाव से बचने के लिए स्कन्द माता |
बुध ग्रह कि शांति तथा अर्थव्यस्था के उत्तरोत्तर वृद्धि के लिए कात्यायनी देवी |
गुरु ग्रह कि अनुकूलता के लिए महागौरी |
शुक्र के शुभत्व के लिए सिद्धिदात्री |
शनि के दुष्प्रभाव को दूर कर, शुभता पाने के लिए कालरात्रि उपासना से लाभ मिलेगा |
राहु कि महादशा या नीचस्थ राहु होने पर ब्रह्माचारिणी कि उपासना से शक्ति मिलती है |
केतु के विपरीत प्रभाव को दूर करने के लिए चन्द्रघंटा कि साधना अनुकूलता देती है |
देवताओ द्वारा शक्ति का संचार देवी दुर्गा में :
शिवजी ने देवी को अपना शूल , विष्णु से अपना चक्र , वरुण से अपना शंख , वायु ने धनुष और बाण , अग्नि ने शक्ति , बह्रमा ने कमण्डलु , इंद्र ने वज्र, हिमालय ने सवारी के लिए सिंह , कुबेर ने मधुपान , विश्वकर्मा में फरसा और ना मुरझाने वाले कमल भेट किये , और इस तरह सभी देवताओ ने माँ भगवती में अपनी अपनी शक्तिया प्रदान की |
एक स्त्री के पूरे जीवनचक्र का बिम्ब है माँ नवदुर्गा के ये नौ स्वरूप।
1. जन्म ग्रहण करती हुई कन्या “शैलपुत्री” स्वरूप है।
2. कौमार्य अवस्था तक “ब्रह्मचारिणी” का रूप है।
3. विवाह से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से वह “चंद्रघंटा” समान है।
4. नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने पर वह “कूष्मांडा” स्वरूप में है।
5. संतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री “स्कन्दमाता” हो जाती है।
6. संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री “कात्यायनी” रूप है।
7. अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से वह “कालरात्रि” जैसी है।
8. संसार (कुटुंब ही उसके लिए संसार है) का उपकार करने से “महागौरी” हो जाती है।
9. धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार में अपनी संतान को सिद्धि(समस्त सुख-संपदा) का आशीर्वाद देने वाली “सिद्धिदात्री” हो जाती है।.
ज्योतिष सेवा केंद्र
पंडित अतुल शास्त्री
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