Home खास खबर तुमने कहा था हम एक ही हैं.. तो..

तुमने कहा था हम एक ही हैं.. तो..

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बलात्कार, छेड़खानी, उत्पीड़न,  जैसी खबरें हमेशा टीवी चैनलों और अखबारों में छायी रहती हैं। आखिर क्यों? जिस देश में नारी को देवी की उपाधि दी गयी। जिस देश की हर बच्ची को देवी का स्वरूप मानकर नवरात्र में पूजा जाता है। वहीं देवी जब बड़ी हो जाती है तो लोगों को उसकी देह दिखायी देने लगती है। उसके उभार दिखने लगते हैं। उसकी चाल, होंठ, गला दिखने लगता है। क्या यहीं हमारे भारत का इतिहास रहा है। क्या यहीं हमारी संस्कृति रही है।

जिस देश में अपहरण की हुई नारी को अपहरणकर्ता के चंगुल से बचाने वाला भगवान बन जाता है। भरी सभा में एक नारी की अस्मत को उसके ही सगे संबंधियों से बचाने वाला नारायण बन जाता है। उसी देश में नारी कागजों, दिखावे में भले सबला हो। किन्तु आज भी वह अबला है। एक नारी के बिना कोई पुरूष पूर्ण नहीं हो सकता। दोनों एक दूसरे की आवश्यकता हैं। फिर भी समाज मान्यता पुरूष को देता है। महिला को नहीं। आखिर क्यों ?

एक महिला चाहे वह परिवार से प्रताड़ित हो, उसका सामाजिक मानसिक शारीरिक उत्पीड़न हो रहा हो, लेकिन यदि उसने अपनी आवाज उठायी तो यहीं समाज उसकी मजबूरियों को नहीं देखता बल्कि मन में छल कपट पाले सहारा बनने की छद्म कोशिस करता है। हम में से बहुत लोग ऐसे होंगे, जिन्हें किसी की मजबूरी मजाक समझ में आता है। उसकी पीड़ा व्यथा नहीं समझ में आती। यहीं वजह है कि एक महिला, एक लड़की, अपनी पीड़ा को, अपनी बात को किसी के सामने रखने में डरती है और उसका मानसिक बलात्कार होता रहता है।

बलात्कार सिर्फ शरीर का ही नहीं होता बल्कि उसके आत्मा का, मन का रोज बलात्कार हो रहा है। संस्कार की परिभाषा हम औरतों को सिखाते ​हैं किन्तु वहीं आचरण हम स्वयं करना नहीं चाहते हैं। दिव्या दत्ता की कविता आज सुनकर बहुत कुछ सोचने पर विवश हो गया। कविता की कुछ पंक्तियां आप भी पढ़िये और स्वयं मंथन कीजिये।

तुमने कहा था हम एक ही हैं तो अपने बराबर कर दो ना,
नैपी जब मैं बदलती हूँ तो दूध की बोतल भर दो ना,

बस यूँ ही एक हैं एक हैं करके कहां ज़िंदगी चलती है
कभी तुम भी सर दबा दो मेरा ये भी कमियां खलती हैं

जब मैं भी ऑफ़िस जाती हूँ तुम भी घर को संवार दो ना
तुमने कहा था हम एक ही हैं तो अपने बराबर कर दो ना

मत करो वादे जन्मों के इस पल ख़ुशी की वजह दो ना
कभी बाज़ारों से ध्यान हटे तो मकान को घर भी कर दो ना

आओ पास बैठो कुछ बातें करें कभी दिल के ज़ख़्म भी भर दो ना
क्यूँ कहना भी पड़ता है ये तुम एहसासों को समझो ना
तुमने कहा था हम एक ही हैं तो अपने बराबर कर दो ना

तुम क्रिकेट भी अपनी देखो और मैं सीरियल अपना लगाऊँगी
थोड़ा हाथ बंटा देना मैं जब किचन में जाऊँगी

तुम भी नए से हो जाओ अब और नयी सी मुझे उमर दो ना
तुमने कहा था हम एक ही हैं बस यूँ ही जीवन बसर हो ना

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