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जय शुक्ला के मन की बात : तुम वोट दो, मैं मौत दूंगा!

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इसी झोंपड़ी में दिन गुजारता था मृतक

By: Jay Shukla

जब देश गुलाम था तब नेता जी सुभाषचन्द्र बोस ने नारा दिया था कि ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।’ लेकिन देश आजाद होने के बाद आज के नेता शायद यहीं बोलते हैं कि ” तुम मुझे वोट दो, मैं तुम्हें मौत दूंगा “। पूर्वांचल के भदोही जिले में हुई मौत की घटना शायद इसी नारे को चरितार्थ करती है।

देखा जाय तो चुनाव के समय गांव गली की खाक छानने वाले नेताओं को सिर्फ अपना वोट ही दिखता होगा। यदि वोट मांगते समय यह भी देख लें कि गांव में लोग कैसे रह रहे हैं, उनके लिये क्या सुविधायें उपलब्ध हैं, क्या नहीं हैं। लेकिन ऐसा होता नहीं है, बल्कि उनकी नजरों में वोटर सिर्फ बलि का बकरा ही होता है। हलाल किये और चलते बने। चुनाव जीतने के बाद फिर सांसद या विधायक अपने चमचों की सुनने लगते हैं। जिस वोटर से चुनाव के समय हंस हंस के बात करते समय रिश्तेदार नजर आते थे, उसे पहचानने से भी इनकार कर देते हैं।

विद्यासागर दीक्षित मौत की नींद सो गया। अपने पीछे अपनी बिलखती पत्नी को छोड़ दिया । हो सकता है कि गरीबी से तंग आकर वह भी किसी दिन अपनी इहलीला को समाप्त कर दे। क्या फर्क पड़ेंगा इन नेताओं को, बस दो वोट कम हो जायेंगे।

अक्सर अखबारों में बयान आता है कि सांसद विरेन्द्र सिंह ने विकास की गंगा बहाई, विधायक रवीन्द्रनाथ त्रिपाठी ने योजनाओं का खजाना खोल दिया, लेकिन उनके ही क्षेत्र में जब गरीबों को आवास न हो, पानी पीने के लिये हैण्डपम्प न हो, राशन कार्ड निरस्त कर दिया गया हो, तो उससे यहीं प्रतीत होता है कि विकास की गंगा की धारा शायद सांसद के हितैषियों और उनके घर की तरफ ही बहती है। विधायक का खोला गया खजाना सिर्फ उन्हीं की तिजोरी में बंद हो जाता होगा। जनता से झूठे वादे करने वाले नेता और अधिकारी क्या कभी अपने जमीर में झांकने का काम करेंगे।

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