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आखिर यूंही कोई नहीं रचता इतिहास, पराये को भी अपना बनाने का हुनर तो होगा ही …..!

उक्त लाइन भदोही के राकेश उर्फ पप्पू तिवारी पर सटीक बैठती है। जिन्होंने बीते 15 अगस्त को भदोही में ऐतिहासिक तिरंगा यात्रा निकाल कर अंचल के बड़े से बड़े नेताओं को भी हेरत में डाल दियां कारवां भी ऐसा जिसमें खुद लोग जुड़े और जुड़ते जुड़ते इतिहास रच दिया। एक हजार से अधिक बाइक और दर्जनों चारपहिया वाहनों से सजी तिरंगा यात्रा अपने में स्वयं तिरंगामय हो गयी। भदोही नगर के चाहे जिसे हिस्से से यात्रा गुजरी लोगों का भरपूर समर्थन मिला। करीब तीन घंटे तक ठहरी भदोही में सिर्फ एक ही आवाज एक ही नारा हर जुबां और वाद्य यंत्रों से निकलता रहा। वह था भारत माता की जय वंदे मातरम वीर सपूत अमर रहें और इसकी अगुवाई करते दिखे राकेश उर्फ पप्पू तिवारी।

श्री तिवारी के बायें बुलेट रानी के नाम से विख्यात राजलक्ष्मी मांडा ओर दायें वरिष्ठ पत्रकार हरीश सिंह चलते दिखे। पीछे हजारों की तादात में युवा जत्था जिनके हाथों में तिरंगा और जुबां से भारत माता की जय गूंजती रही। करीब तीन चार कतारों में चलती तिरंगा यात्रा अपने काफिले को एक किलोमीटर से अधिक लंबी कर दी। सड़क जाम प्रशासन हलकान किन्तु तिरंगा थामे सुवाओं का जोश आसमान पर रहा। निश्चय ही कालीन नगरी की यह तिरंगा यात्रा भदोही के इतिहास में दर्ज होगी। जब जब कोई किसी यात्रा या रैली का नाम लेगा तब तब पप्पू तिवारी के नेतृत्व में निकली तिरंगा यात्रा लोगों के जुबां पर अपनी याद ताजा बनाती रहेगी।

जो भदोही की गंगा जमुनी तहजीब और यहां के जन जन में समायी राष्ट्रीय भावना का बखान करती दिखेगी।
एक जिज्ञासा स्वमेय जागती है कि उक्त ऐतिहासिक यात्रा का नेतृत्वकर्ता पप्पू तिवारी है कौन? जिसके एक आवाहन पर हजारों लोग अपने संसाधनों से यात्रा में उमड़ पड़े। तो बता दूं कि एक सामान्य ब्राह्मण परिवार में जन्मे पप्पू तिवारी के पिता खुफिया विभाग में अधिकारी रहे। उनकी माता धर्मसेवी एवं दीन दुखियों की सेविका महिला के रूप में लोकप्रिय हैं। मूल रूप से भदोही के प्रजापतिपुर निवासी पप्पू तिवारी को समाजसेवा और मनवतावाद की सीख इनके माता पिता से मिली। विशेषकर गरीब और दुखियों के प्रति पप्पू की संवेदना उन्हें गरीब उपेक्षितों और बेसहारों के बीच अधिक लोकप्रिय किया। पप्पू के लिये बड़ी उपलब्धि यहीं है कि अंचल के अधिसंख्य लोग इन्हें अपने घर परिवार का ही एक सदस्य मानते हैं।

पप्पू तिवारी को कम उम्र में ही तत्कालीन सांसद एवं पूर्व दस्यू सुंदरी स्व. फूलन देवी का विश्वसनीय बना लिया। उस दौरान पप्पू तिवारी ने भदोही अंचल की करीब पांच दर्जन ग्राम पंचायतों में सैकड़ों ऐसे गरीब परिवारों के यहां तत्कालीन सांसद से सिफारिश कर हैण्डपम्पों की स्थापना कराया जो बड़े के आगे कभी सरकारी सुविधा का सपना नहीं देखा था। यही से बढ़ी पप्पू तिवारी की लोकप्रियता उन्हें ब्राह्मण समाज का भी चहेता बना दिया। फूलन देवी की हत्या के बाद सपा से विमुख हुये पप्पू तिवारी ने रंगनाथ मिश्र की पहल पर बसपा का दामन थामा। उस दौरान बसपा मय बने अंचल में रंगनाथ मिश्र के बाद भदोही में यदि किसी दूसरे का नाम था तो वह था पप्पू तिवारी। इस बीच पप्पू तिवारी कई क्षेत्रीय चुनाव में हाथ आजमाया।

यह लोगों में उनके प्रति लगाव का ही प्रतिफल रहा कि उनकी धर्मपत्नी श्रीमती वंदना तिवारी उप ब्लाक प्रमुख और जिला पंचायत सदस्य निर्वाचित हुई। बिना किसी पद किन्तु अपनी मानवता वादी सोच वाले कद की बदौलत पप्पू तिवारी भदोही के लिये एक ऐसा नाम है। जिसकी लोकप्रियता जिले के उन सभी भाजपा नेताओं को चुभती है जो पप्पू तिवारी को चुनावी दावेदारियों में अपना प्रतिद्वंदी मानते हैं।

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