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— तो भाजपा इसलिये नहीं कर पा रही भदोही लोकसभा प्रत्याशी की घोषणा

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भदोही सांसद विरेन्द्र सिंह मस्त का टिकट बलिया से घोषित होने के बाद कालीन नगरी की राजनीति गरमा गयी है। भाजपा प्रत्याशी को लेकर तरह तरह के नाम की अफवाहें उड़ रही हैं किन्तु अभी तक भाजपा चयन समिति प्रत्याशी की घोषणा करने में असमर्थ नजर दिखायी दे रही है। भदोही लोकसभा सीट इस समय क्यों हाॅट सीट बनी हुई है, इसके पीछे सबसे बड़ा कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं। यहीं वजह है कि चयन समिति किसी नाम पर निर्णय लेने का फैसला अभी तक नहीं कर पायी है।

गौरतलब हो कि भदोही से टिकट पाने के लिये भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं अमित शाह, नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह से जुगाड़ फिट करने में कई लोग लगे हुये हैं। लेकिन चयन समिति ऐसा कोई निर्णय नहीं लेना चाहती जिससे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की साख दांव पर लग जाये। वर्ष 2014 में भारतीय जनता पार्टी की मोदी लहर ने पूरे प्रदेश से बसपा का सफाया कर दिया था तो सपा किसी तरह अपनी इज्जत बचाने में कामयाब हो पायी थी। यूपी की कुल 80 सीटों में से  2 सीटें कांग्रेस और 5 सीटें सपा के खाते में गयी थी। लेकिन इस बार सपा और बसपा के गठबंधन ने कुछ हद तक मोदी लहर को फीका कर दिया है। यदि भाजपा बिना मंथन के किसी को भी टिकट दे देती है तो मोदी की साख दांव पर लग सकती है।

बता दें कि वाराणसी लोकसभा सीट से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चुनाव लड़ रहे हैं। जब पीएम खुद वाराणसी से मैदान में हैं तो उनके लोकसभा क्षेत्र के आसपास की यदि कोई भी सीट भाजपा हार जाती है तो विपक्षियों को बोलने का मौका मिल जायेगा और यहीं मौका भाजपा किसी को देना नहीं चाहती है। पिछले लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो भदोही लोकसभा से निर्वाचित सांसद विरेन्द्र सिंह मस्त 4 लाख 03 हजार 544 मत, बसपा प्रत्याशी राकेशधर त्रिपाठी 2 लाख 45 हजार 505 मत और सपा प्रत्याशी सीमा मिश्रा पुत्री विजय मिश्रा 2 लाख 38 हजार 615 मत पायी थी। यदि सपा ओर बसपा के मिले मतों को जोड़ दिया जाये तो भाजपा जितना वोट पाकर जीती थी उससे 80 हजार 576 मत अधिक थे। यहीं गणित भाजपा को जल्दबाजी में फैसला लेने से रोक रही है।

वर्तमान सांसद श्री मस्त का निर्वाचन क्षेत्र भी शायद इसीलिये बदला गया।  पिछले काफी दिनों से श्री मस्त पर बाहरी और ठाकुर जाति का होने का आरोप लगाया जा रहा था। ब्राह्मण और ठाकुर की नींव भी उस समय पड़ गयी थी जब भदोही में आयोजित सीएम योगी के कार्यक्रम में व्यवस्था को लेकर श्री मस्त और भाजपा नेता अशोक तिवारी के बीच हुये विवाद को हवा दी गयी। एक सांसद और पार्टी पदाधिकारी के बीच हुआ विवाद जाति के रंग में रंग दिया गया और उस समय फलित हुई बेल सींची जाती रही। जिसका परिणाम यह हुआ विपक्षी अपने हाथ सेंकते रहे और चुनाव आते आते जातिगत जामा पहनाने में सफल रहे। शायद यहीं वजह रही जो श्री मस्त का निर्वाचन क्षेत्र परिवर्तित कर दिया गया।

हांलाकि अभी तक बसपा ने रंगनाथ मिश्रा को अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है किन्तु जबसे वे लोकसभा प्रभारी बनाये गये हैं लोग उन्हीं को प्रत्याशी मानकर चल रहे हैं। इसलिये भाजपा जातिगत समीकरण को गहराई से देख रही है। भाजपा के लिये भदोही में मूल मुद्दा क्षेत्रीय या बाहरी का नहीं बल्कि जातिगत आंकड़ों का है। इसीलिये भदोही से पिछड़े या ब्राह्मण वर्ग के प्रत्याशी को उतारने की योजना बन रही है। यहां पर ब्राह्मणों और पिछड़ों का वोट लगभग बराबर है। भाजपा कभी नहीं चाहेगी कि गठबंधन का प्रत्याशी पीएम नरेन्द्र मोदी के पड़ोसी लोकसभा की सीट हथिया ले और उनकी साख पर बट्टा लगे।

चर्चा है कि दिल्ली में टिकट लेने के लिये ज्ञानपुर के बाहुबली विधायक विजय मिश्रा, बसपा से भाजपा में आये रमेश बिंद, पूर्व सांसद गोरखनाथ पाण्डेय, गुलाब तिवारी, भोजपुरी कलाकार पवन सिंह सहित कई राजनीतिक हस्तियां अपने जीत का दावा करके दिल्ली में डेरा जमाये हुये हैं किन्तु भाजपा चयन समिति इस हाट सीट पर कब फैसला लेगी कहा नहीं जा सकता है। यह भी हो सकता है कि जबतक गठबंधन और अन्य दल अपने प्रत्याशियों की अधिकारिक घोषणा न कर दें तबतक 2014 की तरह इस बार भी मामला अधर में ही रहे।

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एक ऐसे सवाल का जवाब जिसे पूछने में झिझकते हैं आप

2 COMMENTS

  1. आपका विश्लेषण कुछ हद तक ठीक है। किन्तु जो नामो का आप अनुमोदन किया है। वह काफी हद तक ठीक नहीं है।

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