Home सम्पादकीय बुद्ध व नशामुक्ति

    बुद्ध व नशामुक्ति

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    बुद्ध का मतलब ज्ञान से प्रकाशित या ज्ञान से भरा हुआ। आज से 2500 साल पहले कपिलवस्तु के राजा सुसोधन के पुत्र सिद्धार्थ का जन्म #लुम्बिनी वन में हुआ था। सिद्धार्थ का ग़ोत्र गौतम होने के कारण इनका नाम सिद्धार्थ गौतम पड़ा। राजा सुसोधन ने पूरे कपिलवस्तु के जितने भी ज्ञानी ज्योतिषी थे सबको बुलाकर सिद्धार्थ का भविष्य जानना चाहते थे। पर कपिलवस्तु के जितने भी ज्ञानी पंडित थे, वो उनके डर की वजह से सबने सिद्धार्थ चक्रवर्ती सम्राट बनेंगे ऐसी भविष्यवाणी की थी। उस वक़्त के प्रखण्ड ज्ञानी असितमुनि राज दरबार में आते हैं और भविष्यवाणी करतें हैं, कि यह कोई साधारण मनुष्य नही है, यह आने वाले समय को बदलेगा। और यह क्षत्रिय कूल में जन्मा अब तक सबसे ज्यादा विद्वान और ज्ञानी पुरुष होगा। अर्थार्त ये चक्रवर्ती सम्राट नही सन्यासी होगा। जिसमें करुणा, दया, मोह, माया, राज पाठ सबको त्याग शांति का दूत होगा।

    इस भविष्यवाणी को सुन राजा सुशोधन ने पूरे कपिलवस्तु से बीमार, दुखी, बुढो और दिव्यांगजनो को एक आरोग्य धाम नाम का नया गाँव बसाकर उन्हें कपिलवस्तु से दूर कर दिया गया था। सिद्धार्थ ने अपने जीवन के 16 साल में ही धरती का हर सुख भोग लिया था, 16 के आयु में सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा से कर दिया गया था। फिर काल का चक्र बदलता है और सिद्धार्थ सन्यासी का रूप धारण कर वन के लिए निकल पड़ते हैं। सात सालों के कठिन तपस्या के बाद सिद्धार्थ गौतम से बुद्ध बनते हैं। उन्हें अब मुक्ति का मार्ग मिल चुका था वो अब साधारण पुरुष नही रहे, अब वो बुद्ध बन जाते हैं। उन्होंने अपने जीवन के बचे 45 वर्ष पूरे भारत वर्ष में घूमकर लोगो को दीक्षा प्रदान की। यह तो रही बुद्ध की छोटी सी कहानी जो मैने आप को बताया।

    आइये समझते हैं क्या बुद्ध के कही बातों को हम अपने जीवन में उतार पाते हैं? बुद्ध ने चार आर्य सत्य, अष्टांगिक मार्ग व पंचसील सिद्धान्त हमें बताया था।

    आर्यसत्य

    (1) दुःख : संसार में दुःख है,
    (2) समुदय : दुःख के कारण हैं,
    (3) निरोध : दुःख के निवारण हैं,
    (4) मार्ग : निवारण के लिये अष्टांगिक मार्ग हैं।

    पंचसील सिद्धान्त

    1: झूठ न बोलना
    2: चोरी न करना
    3: हिंसा न करना
    4: व्यभिचार न करना
    5: नशा न करना

    जिस नशे की लत को हमने आज जाना है वो बुद्ध ने 2500 साल पहले ही बोल दिया था। बुद्ध कहते हैं। मदिरापान महाहिंशा हैं। पर आज का मनुष्य इस नशे को अपने आदत में शुमार कर लिया है। बुद्ध ने देश को पहले ही बताया था नशा नर्क का द्वार है, इससे आप बच गए तो आपने सब कुछ पा लिया, नही तो यह आप का मानव जीवन ही व्यर्थ है। आज हम सब मिलकर संकल्प ले कि इस बुद्धा पूर्णिमा के दिन से कोशिश करें नशे को त्यागने में। तभी बुद्ध को आप याद कर सकेंगे नही तो व्यर्थ की बात न करें। जो अपने आप को समझ लिया वही बुद्ध है। वो क्यों ,आप या में ही क्यों न हूँ। अपने जीवन का रास्ता स्वयं चुने किसी और रास्ते पे चलने से पहले आत्ममंथन करें।

    लेखक

    सुमित सिंह ( संस्थापक, काशियाना फाउंडेशन )
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