Home खास खबर जिम्मेदार कौन : हिन्दू—मुस्लिम के बीच गहरी हो रही अविश्वास की खाईं

जिम्मेदार कौन : हिन्दू—मुस्लिम के बीच गहरी हो रही अविश्वास की खाईं

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वर्ष 1990 का समय देश के लिये सबसे बड़ा दुर्भाग्य का दिन रहा जब मुस्लिम बाहुल्य कश्मीर में हिन्दुओं के नरसंहार, हिन्दू मां बहनों के अस्मत की लूट, हिन्दुओं को पलायन हुआ। उसी सत्य घटना पर बनी फिल्म ‘द कश्मीर फाईल’ आज चर्चा में है। कम वजट में बनी यह फिल्म बिना प्रमोशन के ही कई सारे रिकार्ड तोड़ रही है। 32 साल पहले घटी घटना से आज की पीढ़ी पूरी तरह अनजान थी। कश्मीर में हुई घटना का दर्द आज हर उस चेहरे पर छलकता दिखायी दे रहा है जो उस फिल्म को देख रहा है। यह फिल्म जहां भाजपा शाषित प्रदेशों में टैक्स फ्री कर दी गयी है, वहीं दूसरे राजनैतिक दल अपनी जमीन खिसकता महसूस कर तिलमिला भी रहे हैं। लोगों का मानना है कि यह फिल्म आगामी 2024 के लोकसभा चुनाव में काफी असर डालेगी। पिछले कई वर्षों से देश की राजनीति में हिन्दू-मुस्लिम के बीच एक गहरी खाई बनती जा रही है। भाजपा विरोधी आरोप लगाते हैं कि इस खाई को पैदा करने में भाजपा का हाथ है किन्तु मंथन इस पर भी होना चाहिये कि यदि भाजपा ऐसा कर रही है तो उसे पाटने की कोशिस दूसरे दल या मुस्लिम क्यों नहीं कर रहे हैं। इस खाई को दिनोंदिन गहरी करने में हिन्दुओं की भूमिका है या फिर मुस्लिम खुद अपने कृत्यों से इस खाई को और भी गहरी करते जा रहे हैं।

बात शुरू करते हैं 27 फरवरी 2002 से जब अयोध्या से लौट रही एक रेलगाड़ी के डिब्बों पर ज्वलनशील पदार्थ डालकर गुजरात के गोधरा में मुस्लिम समुदाय ने जला दिया था। जिसमें मासूम बच्चों महिलाओं सहित कुल 90 लोगों की दर्दनाक मौत हुई थी। उसके बाद गुजरात में भड़के दंगों में 1044 लोग मारे गये। जिसमें 790 मुसलमान और 254 हिन्दू थे। अदालत ने 450 लोगों को दोषी पाया था। जिसमें 350 हिन्दू और 100 मुसलमान थे।

इन दंगों के लिये गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आरोप अभी तक लगाया जाता है। हालांकि उस समय केन्द्र की सत्ता पर काबिज कांग्रेस सरकार की जांच एजेंसिया मोदी को दोषी नहीं ठहरा पायी। इसके बावजूद भी अभी तक मोदी को गैर भाजपा दल और मुसलमान दोषी मानते हैं। किसी भी मुस्लिम ने यह नहीं कहा कि दंगों के लिये मुस्लिम समुदाय दोषी है। क्योंकि कारसेवकों को जलाया नहीं जाता तो दंगा नहीं भड़कता। क्रिया की प्रतिक्रिया होनी स्वाभाविक है। दंगा किसी हिन्दू ने शुरू नहीं किया था बल्कि हिन्दुओं में पैदा हुये आक्रोष के बाद उक्त घटना घटित हुई थी।

कश्मीर में हुये नरसंहार की बात करें तो उस घटना के बाद लाखों हिन्दुओं को विस्थापित होना पड़ा। लेकिन आज तक किसी मुस्लिम नेता या गैर भाजपा राजनीतिक दलों ने इस घटना पर दुःख व्यक्त करना या फिर पीड़ित हिन्दुओं के लिये न्याय की बात करना मुनासिब नहीं समझाा। आज भी जब फिल्म रिलीज हुई तो हिन्दू समुदाय के ही कुछ लोगों ने फिल्म का विरोध करना शुरू किया। गैर भाजपाई हिन्दू नेता ही बयान दे रहे हैं कि इससे मुस्लिमों की भावना आहत हो रही है। जबकि मुसलमान चुप है। यदि भारत का मुसलमान फिल्म के समर्थन में खुलकर खड़ा हो जाता कि उस समय जो घटना घटी वह गलत थी। मुस्लिम अपने बच्चों को वह फिल्म दिखाकर बताते कि देखो एक राज्य में कुछ सिरफिरे मुस्लिमों ने मानवता के विरूद्ध कृत्य किया और उसका आरोप आज सारे मुस्लिमों को सहना पड़ रहा है। यदि ऐसा होता तो लगता कि मुस्लिम हिन्दुओं को काफिर समझकर मारने पर यकीन नहीं करता बल्कि वह भी मानवता के साथ खड़ा है और इंसानियत के विरूद्ध हुये कृत्य के खिलाफ आवाज उठा रहा है। लेकिन मुस्लिम समाज मौन धारण कर यह जताने की कोशस कर रहा है कि जो भी हुआ वह गलत नहीं हुआ। जब भी कोई आतंकी मारा जाता है तो अधिकतर मुस्लिम उसे बेकसूर बताने लगता है और उसके जनाजे में भारी भीड़ जमा हो जाती है। जबकि हिन्दुओं के साथ घटी घटना पर वह चुप रहकर अप्रत्यक्ष रूप से हिंसा को समर्थन देने लगता है। बस इसी बात का डर हिन्दुओं को है कि जहां भी मुस्लिम जनसंख्या बढ़ेगी वहां हिन्दू सुरक्षित नहीं होगा।

अब बात करते हैं विधानसभा चुनाव 2022 की । भाजपा सरकार ने सबका साथ सबका विकास का सिर्फ नारा ही नहीं दिया बल्कि उस नारे को सार्थक करते हुये सभी को विकास का लाभ पहुंचाया। किसी भी जाति या धर्म के साथ भेदभाव नहीं किया गया। प्रधानमंत्री आवास योजना योजना का सर्वाधिक लाभ दलित समुदाय और मुस्लिमों ने उठाया। भाजपा को विश्वास था कि जब उसने बिना भेदभाव के सबका काम किया है तो कम से कम योजना का लाभ लेने वाले मुस्लिम अपना वोट भाजपा को देंगे। परिणाम आने पर सब भौचक रहे। जितने आवास मुस्लिमों को मिले थे, उतने वोट भी भाजपा को नहीं मिले। चैंकाने वाला वाकया तो गोरखपुर का रहा। चुनाव प्रचार के दौरान मुस्लिम समुदाय बयान देता रहा कि वे योगी आदित्यनाथ के साथ हैं क्योंकि उन्होने बिना भेदभाव के सबका विकास किया है। यहां तक कि गोरखनाथ मंदिर से कई मुसलमानों की रोजी रोटी चलती है। चुनाव के दौरान मुस्लिम मतदाताओं ने योगी की खूब तारीफ भी की, लेकिन बूथ संख्या 267, 217, 264, 218 व 219 के 5451 मुस्लिम मतदाताओं में से योगी को सिर्फ 97 वोट मिले। जो साफतौर यह साबित करते हैं कि मुसलमान भले ही कैमरे के सामने कुछ भी बोल दे किन्तु उसके दिल में कुछ और भी चल रहा है। जो उन्ही के प्रति विश्वास की डोर को कमजोर कर रहा है।

सोचने वाली बात है कि एक फिल्म जो 32 साल पहले घटी घटना का सच उजागर कर रही है, वह किसी मुस्लिम की भावनाओं को कैसे ठेस पहुंचा सकती है। फिल्में तो समाज का आईना होती है। 80 के दशक में लगभग हर फिल्मों में विलेन किसी ठाकुर को बनाया जाता था। इतिहास के पन्नों में राजपूतों ने अपने राष्ट्र को बचाने के लिये, प्रजा की रक्षा के लिये अपने प्राणों की आहुति दी। इतिहास ऐसे गाथाओं से भरा पड़ा है। किन्तु फिल्मों में ठाकुरों को खलनायक बना दिया। ब्राह्मणों को कपटी दिखाया गया। बनिया व लाला समाज को ठगने वाला दिखाया गया। समय आगे बढ़ा तो यादव भी विलेन बन गये, लेकिन किसी समाज की भावनायें आहत नहीं हुई। कभी किसी ने विरोध नहीं जताया फिर एक फिल्म जो 32 साल पहले घटी घटना पर बनायी । जो कश्मीरी हिन्दुओं की पीड़ा को उजागर कर रही है। जो हिन्दू बहन बेटियों की तार-तार हुई अस्मत को बयान करती है। उससे किसी की भावना कैसे आहत हो रही है।

जो लोग कह रहे हैं कि इससे हिन्दू-मुसलमानों के बीच अविश्वास की खाई पैदा हो रही है। उन्हें यह सोचना चाहिये कि यह अविश्वास की खाई कोई हिन्दू नहीं पैदा कर रहा है। बल्कि आतंकियों की मौत पर आंसू बहाने वाले, आतंकियों के जनाजे में जमा होने वाली हजारों की भीड़ अविश्वास पैदा करती है। आज यदि फिल्म के पक्ष में मुस्लिम समुदाय खुलकर सामने आता और बोलता कि उस समय जो घटना घटी निन्दनीय थी तो शायद भाजपा इस फिल्म का लाभ आगामी चुनाव में नहीं उठा पाती। किन्तु एक जुमला जो अच्छे और बुरे मुसलमान का बोला जाता है वह भी कारगर होता दिखायी देता। यहीं नहीं पता चल पाता कि कौन अच्छा है और कौन बुरा। तब अविश्वास की जड़ें और भी गहरी होने लगती हैं।

बदलाव लाना है तो हमें हिन्दू मुसलमान बनने से पहले एक अच्छा इंसान बनना होगा। गलत को गलत और सही को सही कहने का माद्दा भी रखना होगा। चुप रहने से अविश्वास की खाई कभी नहीं पाटी जा सकती बल्कि इसकी जड़ें दिनोंदिन और भी गहरी होती जायेगी। जो समाज के ताने बाने को और भी कमजोर करने का काम करेंगी।इसलिये समाज हित में सकारात्मक विचार रखने वालों को साथ आना होगा। सोचिये अविश्वास का जिम्मेदार कौन? द कश्मीर फाइल में कृष्णा पंडित का चरित्र निभा रहे दर्शन कुमार के उस डायलॉग को भी याद रखना चाहिये जिसमें कहा गया गया कि कश्मीर में सिर्फ पंडित ही मारे या भगाये नहीं गये बल्कि उसमें सिक्ख, दलित, कायस्थ के साथ वे मुस्लिम भी थे जो कट्टरपंथियों का साथ देने को तैयार नहीं हुये। यह तो सच है कि आज की राजनीति में हिन्दू—मुस्लिम के बीच अविश्वास की खाई गहरी हो रही है, लेकिन यह भी सोचना होगा कि इसके लिये वास्तव में जिम्मेदार कौन है।

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