Home मुंबई सावधानः लोकतंत्र खतरे में है!

सावधानः लोकतंत्र खतरे में है!

2393
2

भारत देश में हमेशा दो चीजें बार-बार खतरे में आ जाती हैं। एक तो है “धर्मविशेष” जो पिछले कई दशकों से खतरे में न आये इसीलिए देश की पिछली सरकारों ने बड़े जतन से रखा हुआ था, लेकिन 2014 के बाद से नरेन्द्र मोदी सरकार के कार्यकाल में यह “धर्मविशेष” बार-बार खतरे में आ ही जाता है। दूसरा है यहाँ का लोकतंत्र जो 2014 के पहले तक कभी खतरे में तो नहीं था लेकिन 2014 में जैसे ही नरेन्द्र मोदी ने शपथ ग्रहण किया है लोकतंत्र के खतरे में आने की शुरुआत हो गयी। एक धर्म और लोकतंत्र कब खतरे में आ जाये कहा नहीं जा सकता है।

नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने धर्म खतरे में आ गया, योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन गए धर्म खतरे में आ गया, ट्रिपल तलाक बिल आ गया धर्म खतरे में है, हलाला और नारी शक्ति पर बात करो तो धर्म खतरे में है, आतंकी को फांसी की सजा सुना दो धर्म खतरे में है, वन्दे मातरम के नारे लगा दो, राष्ट्रगान गा दो, मंदिर-मस्जिद से लाउड स्पीकर हटाने की बात कर दो तो धर्म खतरे में है।

देश ने इमरजेंसी के वो “सुहाने” दिन भी देखे थे लेकिन तब लोकतंत्र सही था तब तो पता भी नही था किसी को की लोकतंत्र भी खतरे में आ सकता है। यह तो 2014 का साल ही ऐसा मनहूस था जब पूर्ण “लोकतान्त्रिक” तरीके से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की जनता ने पूर्ण बहुमत से नरेद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाया जिसके बाद से लगातार आये दिन लोकतंत्र खतरे में आने लगा है। एक नेशनल हेराल्ड क्या हुआ लोकतंत्र खतरे में आ गया। याकूब को फांसी हुई, 2जी घोटाला, चारा घोटाला, अन्य घोटालों में सजा मिलने की शुरुआत क्या हुई लोकतंत्र खतरे में आ गया।

कांग्रेस 404 सीटें जीतते रही। गरीबी हटाने के नाम पर गरीबी तो हटी नहीं घोटाले जरुर हो गए, लेकिन बीजेपी ने विकास के नाम पर 300 सीटें जीतते ही लोकतंत्र को खतरा हो गया। फिर जैसे जैसे हर राज्य में बीजेपी प्रचंड बहुमत पाकर सरकार बनाती गयी लोकतंत्र खतरे के निशान के अन्दर ही रहा ऊपर निकल ही नहीं पाया। दशकों से अटके देश के गंभीर सवालों में से एक राम जन्मभूमि पर फैसला जल्द करने की बात क्या कर दी लोकतंत्र फिर खतरे में आ गया। लालू जेल पधार लिए तो लोकतंत्र भारी खतरे में आया ही था की माननीय चीफ जस्टिस महोदय ने 1984 के दंगो की फाइल खुलवाने की बात क्या कर दी लोकतंत्र तो मानो महा खतरे में आ गया है। अब इसे बचाने की जरुरत है वो भी उसी जनता पर इसको बचने की जिम्मेदारी आन पड़ी है जिसने 2014 में नरेन्द्र मोदी सरकार को “लोकतान्त्रिक” तरीके से चुनकर लोकतंत्र को खतरे में ला दिया था।

2014 के पहले सब कुछ सही चल रहा था। देश में एकदम राम राज्य था सभी धर्म मिल जुलकर रहते थे ना कोई धर्म खतरे में था न देश का लोकतंत्र। इमरजेंसी तो ऐसे ही मजाक में लगा दी थी लेकिन इतनी छोटी सी बात पर थोड़ी लोकतंत्र को खतरा हो सकता है। खतरा तो तब होता है जब देश के गद्दारों को, आतंकियों को, घोटालेबाजों को सरकार जेल भेजने लगे और विकास पर ध्यान दे, जनता से विकास पर वोट मांगे, फैसलों पर न्याय करें, देश विरोधी ताकतों को कमजोर करें और राष्ट्रवाद मजबूत होने लगे, विश्व भर में देश की साख बढ़ने लगे तब असली मायनों में लोकतंत्र खतरे में आता है। अब जनता की जिम्मेदारी है की वे 2019 में लोकतंत्र को खतरे से बाहर निकाले और अगर फिर नरेंद्र मोदी की सरकार बन गयी तो मतलब जनता भी मिली हुई है और लोकतंत्र फिर खतरे में ही रहेगा अगले 5 साल तक।

केरल में सैकड़ों स्वयंसेवकों की हत्या पर सांप सूंघ जाता है लेकिन एक अखलाक पर लोकतंत्र पर हमला नजर आता है। वैसे हजारों कश्मीरी पंडितों और सिखों का नरसंहार तो छोटी सी बात है इसमे कैसा खतरा? लेकिन एक रोहित वेमुला आत्महत्या कर ले तब असलियत में लोकतंत्र की हत्या हो जाती है और देश असहिष्णु हो जाता है। देश में दशकों से हजारों केस लटके पड़े है, अयोध्या रामजन्मभूमि पर हिन्दू मुस्लिम एक दूसरे से बरसों से लड़ रहे है लेकिन माननीय न्यायाधीशों को इसका क्या उन्हें तो तारीख पे तारीख देकर बस अपने रिटायरमेंट तक इसे खींचना है उसके बाद अगला देखते बैठे। कहने का मतलब लाखों केस देश में पेंडिंग है लेकिन सर्वोच्च न्यायलय के जज साहब का जो सबसे पसंदीदा केस है वो है जन्माष्टमी की दही हांड़ी की उंचाई ! जज साहब को बिलकुल नहीं पसंद ये दही हांड़ी मनाना इसीलिए वे बड़ी याद से हर साल इसकी उंचाई दो बिलांग छोटी कर देते है। जज साहब को दीवाली के पटाखे भी बिलकुल नहीं पसंद इसलिए लाखों केस के निपटारे को छोड़कर वे याद से दीवाली में पटाखे न चलाने की याद दिला ही देते है। वैसे ही इन्हें होली के पानी की बर्बादी याद रहती है लेकिन जज साहब को बिलकुल नहीं पसंद की कोई क्रिसमस और ईद पर मासूम पेड़ों और जानवरों को काटने के खिलाफ कोई एक लफ्ज भी कह दे। एक अखलाक मारा गया तो देश असहिष्णु हो गया। 4 फर्जी दलितों ने कह दिया तो देश में तानाशाही सरकार आ गयी।

2019 का महापर्व भी आ गया है और लोकतंत्र को खतरे से बचाने के लिये कांग्रेस ने जबरदस्त मेनीफिस्टो तैयार किया है। सैनिकों के हाथों से बंदूक छोड़कर लाठी पकड़ा के लोकतंत्र बचाने की घोषणा हो चुकी है। एक ही देश में कश्मीर को अलग कानून के दायरे में रखने से लोकतंत्र बचा रहेगा। लोकतंत्र तब भी बचा रहेगा जब फारूख और उमर अब्दुल्ला कश्मीर में अलग प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति मांगे। लोकतंत्र तब भी खतरे से बचेगा जब कश्मीर में अलगाववादी ताकते अपना सिर उठाकर चलें। लोकतंत्र तब भी मजबूत होगा जब अपने ही देश में पाकिस्तान के झंडे को लहराकर भारत विरोध के नारे लगे और नारे लगाने वालों को खुलेआम छोड़ दिया जाये।

लोकतंत्र पर खतरा तो तब है जब योगी जी अयोध्या में दीपावली मनाते हैं। मोदी गंगा आरती करते हैं। कुंभ का भव्य आयोजन होता है। लोकतंत्र खतरे में तब भी होता है जब सबके साथ और सबके विकास की बात होती है। लोकतंत्र पर खतरा तब है जब देशद्रोहियों पर अंकुश लगाने की कोशिस होती है। लोकतंत्र तब खतरे में है जब अलगाववादियों की नकेल कसी जाती है। आतंकियों को ठोंका जाता है। यदि देशहित में ऐसे कार्यों को करने से लोकतंत्र खतरे में है तो जरूरी है कि लोकतंत्र हमेशा खतरे में रहे।