आइए करते है कानूनों पर कुछ विचार
हमारे संविधान में मजदूर को सम्मानजनक काम और मजदूरी देने के साथ साथ कानूनी नियमों के अंतर्गत संरक्षण दिया है। काम और पूरी मजदूरी देने का प्रावधान कर शोषण से बचाने के लिए अलग से ही श्रम कानून का गठन कर शोषणकर्ता को दंड का प्रावधान है, कोई भी नियोक्ता या ठेकेदार,फैक्टरी,कारखाना मालिक उनका शेाषण नहीं कर सकता। कानून में असंगठित क्षेत्र में भी काम करने वाले कर्मचारियों को शोषण से बचाने के लिए भी उपाय किए गए हैं।
हर वर्ष अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस मई महीने की पहली तारीख को मनाया जाता है। एक मजदूर देश के निर्माण में बहुमूल्य भूमिका निभाता है और उसका देश के विकास में अहम योगदान होता है। किसी भी समाज, देश, संस्था और उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों की अहम भूमिका होती है। मजदूरों के बिना किसी भी औद्योगिक ढांचे के खड़े होने की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए श्रमिकों का समाज में अपना ही एक स्थान है। लेकिन आज भी देश में मजदूरों के साथ अन्याय और उनका शोषण होता है। आज भारत देश में बेशक मजदूरों के आठ घंटे काम करने का संबंधित कानून लागू हो लेकिन इसका पालन सिर्फ सरकारी कार्यालय ही करते हैं, बल्कि देश में अधिकतर प्राइवेट कंपनियां या फैक्टरियां अब भी अपने यहां काम करने वालों से १२ घंटे तक काम कराते हैं। जो कि एक प्रकार से मजदूरों का शोषण हैं। आज जरुरत है कि सरकार को इस दिशा में एक प्रभावी कानून बनाना चाहिए और उसका सख्ती से पालन कराना चाहिए।
भारत देश में मजदूरों की मजदूरी के बारे में बात की जाए तो यह भी एक बहुत बड़ी समस्या है, आज भी देश में कम मजदूरी पर मजदूरों से काम कराया जाता है। यह भी मजदूरों का एक प्रकार से शोषण है। आज भी मजदूरों से फैक्ट्रियों या प्राइवेट कंपनियों द्वारा पूरा काम लिया जाता है लेकिन उन्हें मजदूरी के नाम पर बहुत कम धनराशि पकड़ा दी जाती है। जिससे मजदूरों को अपने परिवार का खर्चा चलाना मुश्किल हो जाता है।
एक उदाहरण है कि कुत्ते को आधी रोटी दो तो एक तरफ आस लगाए बैठा रहता है कि मालिक उसे और रोटी देगा दूसरे संतुष्ट रहता है कि मालिक ने आधी रोटी दिया है और उसका पेट भरा हुआ है। ठीक उसी तरह प्रायवेट कारखाने के नियोक्ता मजदूरों के साथ करते है जिससे वे बमुश्किल घर चला पाते है और आस लगाए रहते है मालिक पगार बढ़ाएगा ही। पैसों के अभाव से मजदूर के बच्चों को शिक्षा से वंचित रहना पड़ता है। भारत में अशिक्षा का एक कारण मजदूरों को कम मजदूरी दिया जाना भी है।
आज भी देश में ऐसे मजदूर है जो २००० से ६००० मासिक वेतन पर मजदूरी का काम कर रहे हैं। यह एक प्रकार से इंसानियत का मजाक है। बेशक इसको लेकर देश में विभिन्न राज्य सरकारों ने न्यूनतम मजदूरी के नियम लागू किये हैं, लेकिन इन नियमों का खुलेआम उल्लंघन होता है और इस दिशा में सरकारों द्वारा भी कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता और न ही कोई कार्यवाही की जाती है सब ले देकर मामले को निपटा दिया जाता है। आज जरुरत है कि इस महंगाई के समय में सरकारों को प्राइवेट कंपनियों, फैक्ट्रियों और अन्य रोजगार देने वाले माध्यमों के लिए एक सख्त कानून बनाना चाहिए जिसमे मजदूरों की एक समान मापदंड रखते समान मजदूरी दी जानी चाहिए चाहें वो सरकारी कर्मचारी हो या प्रायवेट कामगार। मजदूरी इतनी होनी चाहिए कि जिससे मजदूर के परिवार को भूंखा न रहना पड़े और न ही मजदूरों के बच्चों को शिक्षा से वंचित रहना पड़े। कानून भारत के कमजोर वर्गों के आर्थिक और वास्तविक शोषण को रोकने के लिए बनाया गया था लेकिन आज भी जनसंख्या के कमजोर वर्गों के आर्थिक और वास्तविक शोषण को नहीं रोका सका है।
संविधान में प्रत्येक नागरिक को शोषण और अन्याय के खिलाफ अधिकार दिया गया है।लेकिन आज भी देश में कुछ पैसों या नाम मात्र के लालच में समाजसेवी कामगार संस्थाएं कामगारों के नेतृत्व के नाम पर मजदूरों को ठगने का ही काम कर रही है और हमारे चुने प्रतिनिधी केवल मजदूरों की दुर्दशा पर चर्चा करते है पर ठोस और सभी भारतीय मजदूरों पर समान नियमों का क्रियान्वयन नहीं करते। आज जरुरत है समाज और सरकार को मिलकर अमानवीयता को रोकने का सामूहिक प्रयास करना चाहिए। आज भी देश में मजदूरी में लैंगिक भेदभाव आम बात है। फैक्ट्रियों में आज भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर वेतन नहीं दिया जाता है। बेशक महिला या पुरुष फैक्ट्रियों में समान काम कर रहे हों लेकिन बहुत सी जगह आज भी महिलाओं को समान कार्य हेतु समान वेतन नहीं दिया जाता है। फैक्ट्रियों में महिलाओं से उनकी क्षमता से अधिक कार्य कराया जाता है। आज भी देश की बहुत सारी फैक्ट्रियों में महिलाओं के लिए पृथक शौचालय की व्यवस्था नहीं है। महिलाओं से भी १०-१२ घंटे तक काम कराया जाता है। अगर कोई कानूनों का उल्लंघन करे तो उसके खिलाफ कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए।
इसके लिए जो मजदूर अपने अधिकारों से वंचित हैं, उनके अधिकार उनको दिलाने के लिये समाज और देश को सामूहिक प्रयास करने होंगे। आज देश के प्रत्येक नागरिक को मजदूरों के शोषण के उन्मूलन करने की जरुरत है। कंपनियां देश के उत्पादन में वृद्धि और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो उच्च मानक हांसिल किये हैं वह हमारे श्रमिकों के अथक प्रयासों का ही नतीजा है। इसलिए राष्ट्र की प्रगति में अपने श्रमिकों की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानकर सभी देशवासिओं को उसकी सराहना करनी चाहिए। देश के विकास और निर्माण में बहुमूल्य भूमिका निभाने वाले लाखों मजदूरों के कठिन परिश्रम,दृढ़ निश्चय और निष्ठा का सम्मान करना चाहिए और मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए सम्पूर्ण राष्ट्र और समाज को सदैव तत्पर रहना चाहिए।
आज सरकार पारदर्शिता का हनन करते हुए नित नए नियमों में बदलाव करते हुए श्रम कानून पेचीदा बना दिया है जिसमें उलझा कर ठेकेदार, कारखाना मालिक, नियोक्ता फायदा उठाते हुए कर्मचारियों का शोषण करते हैं, जब कोई कर्मचारी कानून का दरवाजा खटखटाता है वह न्यायपालिका के क्रियाकलापों और दावपेचों में उलझा महसूस करता है वहीं वकील भी मिलजुल कर न्याय प्रणाली का दोहन करते हुए रफादफा कर देते हैं।
श्रम कानूनों के बदलाव को श्रमिक विरोधी करार देते हुए ट्रेड यूनियनों ने केंद्र सरकार के खिलाफ कई बार आवाज उठाया और इसे तुरंत रोकने की जरूरत बताया। आरोप लगाए कि कारपोरेट जगत के पक्ष में श्रम कानून बनाए जा रहे हैं। यदि सरकार द्वारा श्रम विरोधी कानून बनाए जाते हैं, तो श्रमिकों के एक बड़े वर्ग को इसके विपरीत परिणाम भुगतने होंगे लेकिन सरकार के कान में जूँ तक नहीं रेंगती।
इन श्रम कानूनों में हो रहा बदलाव सरकार द्वारा कुछ अहम श्रम कानूनों में बदलाव किए जा रहे हैं। इसमें मुख्य रूप से लघु फैक्टरी रोजगार नियम एवं सेवा शर्तें जैसे नए कानून की अनुशंसा करने के साथ-साथ फैक्टरी एक्ट, औद्योगिक अधिनियम,१९४७, औद्योगिक रोजगार कानून,१९४६, न्यूनतम मजदूरी कानून,१९४८, वेतन भुगतान कानून,१९३६, बोनस भुगतान कानून,१९६५, कर्मचारी बीमा कानून (इएसआई) भविष्य निधि (कर्मचारी भविष्य निर्वाह निधि), मातृत्व लाभ, कर्मचारी मुआवजा कानून-अंतर राज्य प्रवासी मजदूर कानून, दुकान एवं प्रतिष्ठान कानून, समान काम-समान वेतन कानून सहित बाल मजदूरी-निषेध कानून जैसे श्रमहित नियमो में व्यापक बदलाव कहीं ना कहीं मजदूरों के शोषण को दर्शाता है। देश का ८० प्रतिशत मजदूर इन्हीं कानूनों के परिधि में आता है। अगर कारखानों विभागों, प्रतिष्ठानों में इन नियमों को हटा दिया गया तो देश में जंगलराज कायम हो जाएगा। मालिकों को पाबंदी पर लगाम न लगाने से बेरोजगारी की स्थिति पैदा हो जाएगी। बड़े कारखानों के मालिक और ठेकेदार आउट सोर्स द्वारा काम करवाकर शोषण कर रहे हैं। सरकारी विभागों में भी सभी पुराने श्रम नियमों और अधिनियमों को समाप्त करना दोषपूर्ण है।
श्रम हित कानूनों में संशोधन कर कारपोरेट पक्ष में कानूनों पर रोक, महंगाई के चलते हो रही जमाखोरी पर रोक लगाकर कालाबाजारी बंद की जाए, सार्वजनिक वितरण प्रणाली मजबूत हो, न्यूनतम वेतन (२१००० प्रतिमाह) लागू हो, यूनियनों को अधिक पारदर्शी अधिकार देते हुए, सरकारी एवं निजी उद्योगों में स्थायी और उत्पादन कार्याें में ठेका श्रमिक पर पूर्ण प्रतिबंध लगे, उन्मूलन अधिनियम, निर्माण कार्यों एवं मजदूरों को काम की सुरक्षा गारंटी, अनुबंध श्रमिकों को न्यूनतम वेतन के साथ सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए, श्रमिकों की समस्याओं और श्रम कानून लागू करने के लिए श्रम विभाग को मजबूत बनाया जाना चाहिए।
एक सुरक्षित और स्वास्थ्य पूर्ण कार्य वातावरण प्रत्येक श्रमिक का मूल अधिकार है। राष्ट्रीय अथवा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो इस अधिकार का हनन एक आम बात हो गई है।
भारत में श्रमिक सुरक्षा
वर्षों से मज़बूत विकास के बावजूद व्यावसायिक और औद्योगिक सुरक्षा कोई अच्छा नहीं है।कार्य वातावरण को सुरक्षित हमेशा सरकार और संगठनों के लिए टेढ़ी खीर रही है क्योंकि कारखाना मैनेजमेंट कभी नियमों का पालन करने में रूचि नहीं दिखाते हैं हालाँकि भारत में श्रमिकों के अधिकारों और स्वास्थ्य की रक्षा के लिये बहुत से कानून मौजूद हैं, लेकिन उनके अप्रभावी कार्यान्वयन के कारण अब तक उनका सही लाभ आम लोगों तक नहीं पहुँच पाता है।
भारत में स्थिति इतनी खराब क्यों है? आइए जानने की कोशिश करते हैं।
१) भारत में कार्यबल काफी आसानी से एवं प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हुए भी देश का ९० प्रतिशत से अधिक श्रमबल असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत है फिर भी देश में बेरोज़गारी की दर भी काफी ऊपर है, जो श्रमिकों को शोषण के प्रति अतिसंवेदनशील बनाती है।
२) नियोक्ताओं के लिये अनिवार्य है कि वे प्रत्येक कारखाने में सुरक्षा के साथ साफ-सफाई सुनिश्चित करें।
३) प्रत्येक कारखाने के लिये यह अनिवार्य है कि वह अपने कार्य से उत्पन्न हुए धूल और धुएँ के निष्कासन की व्यवस्था करे।
4) प्रत्येक श्रमिक के लिये एक बैठने की व्यवस्था होनी चाहिये, ताकि भीड़-भाड़ से बचा जा सके।
५) नियोक्ताओं के लिये आवश्यक है कि वे श्रमिकों के लिये पर्याप्त और उपयुक्त प्रकाश की व्यवस्था करें। साथ ही सभी श्रमिकों के लिये स्वच्छ पेय जल की व्यवस्था होनी चाहिये।
६) सुरक्षा संबंधी प्रावधान में सभी प्रकार की मशीनों को सही ढंग से ढका जाना चाहिये और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सभी मशीनों का उचित रखरखाव होना चाहिये। किसी भी व्यक्ति को किसी भी मशीन पर कार्य करने की अनुमति तब तक नहीं दी जानी चाहिये, जब तक उसे मशीन के संदर्भ में सभी जानकारियाँ सही ढंग से उपलब्ध न करा दी जाएँ।
७) कारखाने में किसी भी व्यक्ति को इतना बोझ उठाने के लिये विवश नहीं किया जाएगा, जिससे उसे क्षति पहुँचने की संभावना हो। यदि कारखाने में कोई ऐसा कार्य हो रहा है जिससे श्रमिकों के स्वास्थ्य को कोई खतरा है तो नियोक्ता इससे बचाव हेतु उचित सुरक्षा उपकरणो की व्यवस्था करने चाहिये।
८) सभी कारखानों पर इस प्रकार की व्यवस्था की जानी चाहिये कि आग लगने जैसी किसी भी आपातकाल की स्थिति में सभी श्रमिक आसानी से बच सकें।
उल्लेखनीय है कि यह अधिनियम नियोक्ताओं को श्रमिकों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड रखने के लिये भी बाध्य करता है और इसमें कारखानों के निरीक्षण के लिये निरीक्षक की नियुक्ति का भी प्रावधान है। परंतु इस अधिनयम के अप्रभावी कार्यान्वयन के कारण अब तक यह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में विफल रहा है,
९) कर्मचारियों को नि: शुल्क वार्षिक स्वास्थ्य जाँच की सुविधा उपलब्ध कराना। यदि कार्यस्थल पर दुर्घटना के कारण कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है या उसे गंभीर शारीरिक चोट लग जाती है तो नियोक्ता को संबंधित अधिकारियों को तत्काल सूचित करना चाहिये साथ ही कर्मचारी के आश्रित लोगों के जीवन यापन की व्यवस्था करनी चाहिए। कर्मचारियों को ऐसे कार्यस्थल प्रदान करना जो सभी जोखिमों से मुक्त हों।
१०) कर्मचारियों को भी अपनी सुरक्षा और स्वास्थ्य का ख्याल रखना चाहिए, निर्देशित सुरक्षा और स्वास्थ्य मानकों का पालन करना। निरीक्षक को दुर्घटना होने की स्थितियों से अवगत करना।
सभी संस्थानों में कार्य के घंटों का निर्धारण केंद्र अथवा राज्य द्वारा बनाए नियमों के आधार पर किया जाना चाहिए जिसमें ८ घंटे ही कार्य का समय होता है प्रत्येक पाँच घंटे में आधा घंटा आराम दिया जाना चाहिए परंतु प्रायवेट कंपनियां आधा घंटा लंच टाईम जोड़कर साढ़े आठ घंटे काम लेती है जो नियमत: गलत है।
११) ओवरटाइम काम के लिये श्रमिक को दैनिक मज़दूरी दर से दोगुना भुगतान किया जाना चाहिये।
१२) कोई भी कर्मचारी सप्ताह में ६ दिनों से अधिक काम नहीं कर सकता है या सप्ताह में कुल ४८ घंटे काम करना कानून है और २४ घंटे के अवकाश के बाद अगली शिफ्ट ओवरलैप नहीं हो यह भी देखना होता है।
१३) चिकित्सा अवकाश के दौरान, श्रमिक को उसकी दैनिक मज़दूरी का आधा भुगतान किया जाना चाहिये।
यदि दुर्घटना के दौरान किसी भी कर्मचारी की मृत्यु हो जाती है तो नियोक्ता को दो साल तक की कैद अथवा अथवा पाँच लाख रुपए तक का जुर्माना या दोनों दिये जा सकते हैं।
एक सुरक्षित कार्य वातावरण सभी श्रमिकों का एक मूलभूत नैतिक अधिकार है और यह आवश्यक है कि भविष्य में कानून निर्माता विकास योजनाओं को बनाते समय इसे ध्यान में रखें। साथ ही नए कानून या नियमों पर पुनर्विचार किया जाए तो अनुभवी सांसद इसका विशेष परीक्षण करें और इसमें कामगारों, नियोक्ताओं, कामगार युनियन और विशेषज्ञों के सुझावों को भी शामिल करें।
व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम की स्थिति को लेकर २०१९ में श्रम और रोज़गार मंत्रालय द्वारा लोकसभा में पेश किया गया था।जो ऐसे स्थान पर लागू होती है जहाँ कम-से-कम १० श्रमिक कार्य कर रहे हों।
साथ ही इस बिल में कुछ विशेष प्रकार के प्रतिष्ठानों और कर्मचारियों के वर्गों जैसे कारखानों, खदानों और निर्माण श्रमिकों के लिये विशेष प्रावधान किये गए हैं।
यह बिल सुरक्षा, स्वास्थ्य और कामकाजी परिस्थितियों से संबंधित १३ श्रम कानूनों को निरस्त कर उन्हें एक ही कायदे में संलग्न किया गया है।
निरस्त होने वाले प्रमुख श्रम कानून में कारखाना अधिनियम १९४७,
खदान अधिनियम १९५२,
भवन और अन्य निर्माण कार्य (रोज़गार का विनियमन और सेवा शर्तें) कानून १९९६,
बागान श्रम अधिनियम १९५१, श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम, १९७० के प्रमुख प्रावधान किए गए।
संबंधित नियमों के तहत कवर किये गए सभी संस्थानों को पंजीकृत होना अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त निरीक्षण अधिकारी समय-समय पर संस्थानों का निरीक्षण कर सकते हैं। जिसमें केंद्र और राज्य सरकारें क्रमशः राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य सलाहकार बोर्ड स्थापित करें जो केंद्र और राज्य सरकारों के तहत बनाए जाने वाले मानकों, नियमों और विनियमों की सलाह दिया करें