Home धर्म और संस्कृति पितृ पक्ष का महत्व तथा पितृ दोष शान्ति

पितृ पक्ष का महत्व तथा पितृ दोष शान्ति

hamara purvanchal

ऐसी मान्यता है कि देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी होता है। देवकार्य से भी ज्यादा पितृकार्य का महत्व होता है। वायु पुराण, मत्स्य पुराण, गरुण पुराण, विष्णु पुराण आदि पुराणों तथा अन्य शास्त्रों जैसे मनुस्मृति इत्यादि में भी श्राद्ध कर्म के महत्व के बारे में बताया गया है। पूर्णिमा से लेकर अमावस्या के मध्य की अवधि अर्थात पूरे 16 दिनों तक पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिये श्राद्ध कर्म किये जाते है। पूरे 16 दिन नियम पूर्वक कार्य करने से पितृ-ऋण से मुक्ति मिलती है। पितृ श्राद्ध पक्ष में ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। भोजन कराने के बाद यथाशक्ति दान -दक्षिणा दी जाती है।

श्राद्ध से पितृ दोष शान्ति:

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में श्राद्ध कर्म द्वारा पूर्वजों की मृत्यु तिथि अनुसार तिल, कुशा, पुष्प, अक्षत, शुद्ध जल या गंगा जल सहित पूजन, पिण्डदान, तर्पण आदि करने के बाद ब्राह्माणों को अपने सामर्थ्य के अनुसार भोजन,फल, वस्त्र, दक्षिणा आदि दान करने से पितृ दोष से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। यदि किसी को अपने पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो तो वह लोग इस समय अमावस्या तिथि के दिन अपने पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं और पितृदोष की शांति करा सकते हैं। श्राद्ध समय सोमवती अमावस्या होने पर दूध की खीर बना कर पितरों को अर्पित करने से पितर दोष से मुक्ति मिल सकती है।

श्राद्ध कर्म करने के भी कई नियम हैं जिनका विशेष ध्यान रखना अति आवश्यक है। शास्त्रों में बताए गए विधि-विधान और नियम का सही से पालन श्राद्ध में करना चाहिए। श्राद्ध पक्ष में पितरों के श्राद्ध के समय कुछ विशेष वस्तुओं और सामग्री का उपयोग निषेध बताया गया है। यह कुछ इस प्रकार हैं।

1- श्राद्ध में सात पदार्थ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं जैसे- गंगाजल, दूध, शहद, ऊनी कपड़ा, दौहित्र, कुश और तिल।

2- शास्त्रों के अनुसार, तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णुलोक को चले जाते हैं। तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं।

3 – सोने, चांदी कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल का भी प्रयोग किया जा सकता है।

4 – रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं।

5 – आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए।

6- केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है।

7 – चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा,कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती, बासी भोजन, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध है।atul shashtri

ज्योतिष सेवा केंद्र, मुंबई

संस्थापक – पंडित अतुल शास्त्री
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