तिरछी नज़र….
एक गाँव में एक बदचलन युवती अपने पति के साथ रहती थी। उसकी हरकतें जब गाँव में फैलीं तो पति के भी कान लग गयीं। पति ने सोचा कि क्यों न पहले सबूतों के साथ निश्चित कर लिया जाए। उसने पत्नी से कहा कि वो अगली सुबह सुदूर दूसरे गाँव जा रहा है और दो दिन बाद ही लौटेगा।
पत्नी ने बड़ा नाटक किया – दो दिन मेरा क्या होगा ? वगैरह-वगैरह … फिर दूसरे दिन खाना बनाकर पति के साथ बाँध दिया और पति चला गया।
अब वो पतिता बड़ी खुश होकर श्रृंगार करके अपने प्रेमी को रात घर आने का निमंत्रण देकर आ गई और अपने स्वप्नों में खो गई । इसी बीच पति मौका देखकर घर में घुस गया और पलंग के नीचे छिप गया।
निश्चित समय पर प्रेमी आ गया और उस पतिता का आलिंगन करने लगा। अचानक पलंग के पास पड़े चमकीले बर्तन में पतिता पत्नी को अपने पति का प्रतिबिम्ब नज़र आ गया। वह समझ गयी, फिर उसने प्रेमी को छिटक दिया और बोली, हे युवक ! मुझसे दूर रहो, मैं परम पतिव्रता धार्मिक नारी हूँ, मुझे छुओगे तो भस्म हो जाओगे । मैंने तुम्हें क्यों निमंत्रित किया है अब उसका कारण सुनो।
आज जब मैं सुबह अपने पति को परदेस विदा करके मंदिर गई तो माता मुझ पर प्रसन्न होकर सम्मुख उपस्थित हो गयीं और बोलीं,
“हे सती श्रेष्ठ! तू धन्य है। मैं तुझसे अत्यंत ही प्रसन्न हूँ लेकिन विधि के विधान से अत्यधिक दुखी हूँ। हे देवी, जिस पति को तू ह्रदय से अधिक चाहती है उससे तू अब नहीं मिल पायेगी, मार्ग में ही वह मारा जायेगा।”
यह सुनकर मैं बदहवास हो गई और मैंने माँ से विनती की कि कैसे भी मेरे पति को बचाओ। तब माँ ने मुझसे कहा कि आज रात्रि के दूसरे प्रहर में यदि तुम किसी अन्य पुरुष के साथ रमण करो तो मृत्यु की छाया तुम्हारे पति से उतरकर तुम्हारे क्षणिक पति (प्रेमी) के सिर आ जाएगी लेकिन तुम्हें ये सच उस पर पुरुष को पहले बताना होगा।
अब वो पतिता अपने प्रेमी को आँख मारकर बोली, “बताइए, हे आर्य, क्या आप अब भी मुझ अबला से समागम करके मेरे पति की मृत्यु अपने सिर लेंगे ?”
प्रेमी बोला, “हे देवी, आप जगत में सतियों में श्रेष्ठ हैं। अपने लिए तो सभी जीते हैं परन्तु जो औरों के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दे, उसी का जीवन सार्थक है। आइये, मेरी बाँहों में आपका स्वागत है।”
और पति के पलंग के नीचे होते हुए भी उस पतिता ने अपने प्रेमी के साथ दुराचार किया।
पति कुछ समय बाद बाहर निकला और उन दोनों को उपकारपूर्ण नम आँखों से साष्टांग नमन करते हुए अपने कंधों पर बिठाकर सारे गाँव मे घुमाया और अपनी पत्नी के जयकारे लगाये।
भारतीय राजनीति इस स्त्री की तरह और मतदाता उस पति की तरह और नेता उस प्रेमी की तरह हो गये हैं।