मुंबई। ठाणे साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक संस्था काव्यसृजन के तत्वावधान में दिनांक 11 अगस्त 2019 रविवार सायं कृष्ण टिटोरियल्स सभागृह भायंदर (पूर्व) ठाणे में कजरी महोत्सव के साथ आगामी स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य पर गोष्ठी रखी गयी, जहाँ कवियों, गीतकारों ने खूबसूरत राष्ट्रीय गीतों, गजलों व अवधी भाषा से ओतप्रोत कजरी से संमा बांधते हुए सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि सरस पांडे ने की, मुख्य अतिथि के रूप में मीरा-भायंदर की समाजसेविका श्रीमती भावना तिवारी व वी एन मिश्रा जी प्रमुख थे। सभी का सम्मान पवित्र पौधा तुलसी व भारत की पहचान राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा समर्पित करके किया गया।
मंच संचालन का कार्यभार कवि, गीतकार अवधेश विश्वकर्मा ने बेहतरीन तरीके से सुशोभित किया। कवियो में शिवप्रकाश जौनपुरी, अल्हड़ असरदार, एडवोकेट अनिल शर्मा, इंदु भोलान्थ मिश्रा, विनय शर्मा “दीप” श्रीनाथ शर्मा, लाल बहादुर यादव कमल, रितेश गौड़, अवधेश यदुवंशी, सुरेन्द्र दुबे, महेश गुप्ता जौनपुरी, आशीष अनोखा, विजय कुमार अग्रवाल, अमित कुमार दुबे, मूर्धन्य पूर्वांचली, विजय नाथ मिश्रा, वीरेन्द्र कुमार यादव, अमरनाथ द्विवेदी, नताशा गिरी, रामजी पांडे, रिशी चौहान, राजेन्द्र सौदा आदि उपस्थित थे।
उपस्थित सभी साहित्यकारों की रचनाएँ बड़ी सराहनीय रही जिसमें से कुछ की उदाहरणार्थ निम्नवत हैं-
एडवोकेट अनिल शर्मा ने देशहित, देशप्रेम से वीर रस में रचना सुनाकर सभी को तिरंगे से रंग दिया-
आओ भूली बिसरी कुछ यादों को दुहराते है।
राष्ट्र प्रेम के बलिदानियों का इतिहास सुनाते है।।
जो मातु पिता पत्नी बच्चे सबको पीछे छोड़ दिये
अपने जीवन के मुख्य लक्ष्य को देश-प्रेम से जोड़ दिये।।
ऐसे वीर शहीदों की हम गाथा अमर सुनाते हैं
आओ भूली बिसरी कुछ यादों को दुहराते हैं।।
जिस मातृभूमि पर जन्म लिया अन्न जहां का खाया है
जिस जन्मभूमि में रह करके नीर समीर अघाया है
उसको सब कुछ अर्पण करना इतना ही पढ़ पाया है
राष्ट्र काज हित कितनों ने अपना प्राण गवाया है
तन को छूने वाली इस मिट्टी को हम चंदन बतलाते हैं
आओ भूली बिसरी कुछ यादों को दुहराते हैं
आततायी चले गए पर उनके बंदों से बचना होगा
आतंकी पुलाव पकाने वाले बहुरंगों से बचना होगा
वो जाल बिछाए बैठे हैं उनके फंदों से बचना होगा
गंदी नाली के कीड़े हैं उन गंदो से बचना होगा
घाती बैठे हैं राष्ट्रघात में देखो जानो पहचानों
दुश्मन से दोस्ती करने वाले जयचंदों से बचना होगा
ऐ कलम मौन क्यो होती हो तुमको आग उगलना होगा
हे कलमकार हे कलम सिपाहियों नवक्रान्ति अब लिखना होगा
हम दिनकर के वंशज हैं दिनकर बनकर तपना होगा
देश द्रोहियों को अग्नि ज्वाल में एक एककर जलना होगा
कोहराम मचा दो खलकुल में जिंदा एक न बचने पायें
बचे हुए को वंदेमातरम का ऊंचा उदघोष करना होगा
अपने देश के प्रेम में अपना मैं सारा अरमान लिखूंगा ।
बंदेमातरम से अभिसिंचित प्यारा हिंदुस्तान लिखूंगा
तन लिखूँगा मन लिखूँगा अपना सारा धन लिखूंगा
मातु भारती के चरणों में अर्पित यह जीवन लिखूँगा
लाल हूँ प्यारा सबसे न्यारा अपनी भारत माता का
रक्षा खातिर अपने सर पर बांधा हुआ कफ़न लिखूंगा
अपने वीर शहीदों को मैं अनंत बार प्रणाम लिखूंगा
वंदेमातरम से अभिसिंचित प्यारा हिंदुस्तान लिखूंगा।।
जलियावाला बाग का भीषण नरसंहार लिखूंगा
अंग्रेजी हूकूमत का सारा अत्याचार लिखूंगा
भारत माँ की अस्मिता का जयगान लिखूंगा
फांसी वाले वीर शहीदों का गुणगान लिखूंगा।।
काश्मीर के भाल से लेकर कन्याकुमारी के पैर तलक।
वंदेमातरम से अभिसिंचित प्यारा हिंदुस्तान लिखूंगा।।
अहिल्याबाई दुर्गावती को दुर्गा का अवतार लिखूंगा
पति पुत्र को रन में भेजे वो क्षत्राणी संस्कार लिखूंगा
राणा सांगा आग लिखूंगा पन्नाधाय का त्याग लिखूँगा।
रानी पद्मावती के जौहर की गाथा आज लिखूंगा ।।
हसते हँसते लड़ते लड़ते जिन वीरों ने प्राण गवाये ।
उन विधवा बहनो का मुस्काता अमर सुहाग लिखूंगा ।।
घास की रोटी खाकर राणा ने फिर से सैन्य सजाया।
मुट्ठीभर सेना संग प्रताप ने रण कौशल दिखलाया।।
राणा के हरपल का साथी चेतक का योगदान लिखूंगा।
बंदेमातरम से अभिसिंचित प्यारा हिंदुस्तान लिखूंगा।।
लाल लिखूंगा बाल लिखूंगा पाल का भी हाल लिखूंगा।
अब्दुल वीर हमीद जी का रण कौशल काल कमाल लिखूंगा।।
तात्या टोपे वीर सावरकर खुदीराम की अमर कहानी।
मंगल पांडे उधमसिंह की जज्बातों का ज्वाल लिखूँगा।।
सुखदेव भगतसिंह राजगुरु के, दिलों का अरमान लिखूंगा
सुभाषचन्द्र बोस जी का, दिल्ली चलो फरमान लिखूंगा
कम्पनी बाग इलाहाबाद में गोरों ने की गोली बौछार
गोली एक बची गन में तब खुद हीं अपने सिर में मार
उस क्रांतिवीर को बार बार करता हूँ मैं नमस्कार
दुश्मन की गोली से जिसको मरना था मानो धिक्कार।।
उस चंद्रशेखर आज़ाद का स्वाभिमान लिखूंगा।।
वंदेमातरम से अभिसिंचित प्यारा हिंदुस्तान लिखूंगा।।
पृथ्वीराज चौहान जिन्होंने सत्रह बार हराया।
कृतघ्न मुहम्मद गोरी को हर बार क्षमा दे आया।।
राजपूत चौहान का जग जाहिर क्षमादान लिखूंगा।
वंदेमातरम से अभिसिंचित प्यारा हिंदुस्तान लिखूंगा।।
कलम और वानी के जरिये सबको शीश झुकाते हैं।
आओ भूली बिसरी कुछ यादों को दुहराते हैं।।
राष्ट्र प्रेम के बलिदानियों का इतिहास सुनाते हैं।।।
वरिष्ठ कवि श्रीनाथ शर्मा ने तो पाक के नापाक इरादों पर वार करते हुए ललकार लगाई-
समझावत समझावत हारा,
फिर भी लाज न आई।
पाक ऐसी मानी ना,
करे के पड़ी लड़ाई ।।
उभरते हुए साहित्यकार महेश गुप्ता जौनपुरी ने “भारत मां का बेटा” शीर्षक पर रचना पढकर सभी के दिलों में जगह बनाई-
माँ मुझे भी मँगा दे बन्दूक २
मैं भी सीमा पर लडने जाऊँगा
मैं बच्चा अब नहीं रहा
मैं भारत मां का लाज बचाऊँगा
चीन पाकिस्तान को खदेड़ २
दुश्मन का चीता जलाऊँगा
एक सर के बदले मैं
दस सर काट कर लाऊँगा
आँख उठाया कोई तो २
जमकर गोली चलाऊँगा
भारत का झण्डा मैं
दुश्मन के सिने पर फहराऊँगा
जंग छिड़ेगी अब तो २
आर पार की लड़ाई होगी
गोली बन्दूक की बाते
अब मेरे जज्बातो से होगी
देश को अपने सुरक्षित कर २
शान भारत का मैं बढाऊगा
सिने पर गोली खाकर मैं
वीर शहीद कहलाऊँगा
माँ मुझे भी मँगा दे बन्दूक
मैं सीमा पर लडने जाऊँगा ।।
वीर रस के ओजस्वी कवि अल्हड़ असरदार की रचना प्रसंसनीय रही-
बहुत साफ मुझको नज़र आ गया है।
किधर था जमाना किधर आ गया है।।
वो कहता है जंगे नही मसले का हल,
भला इल्म कैसे उधर आ गया है।।
जो कुत्तो से ड़रता था सिंहो पे तनता,
न जाने कहां से जिगर आ गया है।।
भटकता रहा रहगुज़र मे अभी तक,
मगर लग रहा अब कि घर आ गया है।।
मिली दाद तुमसे तो अल्हड़ ने जाना,
कि बातों मे मेरे असर आ गया है।।
पंडित शिवप्रकाश जौनपुरी ने एक मंढली से सभी के तालियों को बटोरा-
जबसे धारा काश्मीर से, हटी तीन सौ सत्तर।
सभी विरोधी बिलख रहे,जो अब भी हैं कट्टर।।
जो अब भी हैं कट्टर, हिंद देश के वासी,
कहें जौनपुरी वो नाचे गायें,खुशी मनायें अच्छी खासी।।
जिनकी खतम हो गई,राजनीति ही जड़ से।
वो ही किये विरोध बिना, सोंचे समझे ही तड़ से।।
अवधी, हिन्दी के रसिक कवि, गीतकार विनय शर्मा “दीप” ने देशहित में पूर्ण स्वतंत्रता पर कजरी विधा से सभी के दिलों में जगह बनाई-
(भारत की सच्ची आजादी नागपंचमी के पावन पर्व पर, स्वतंत्रता दिवस के आगमन पूर्व भारतवासी खुशहाल होकर इजहार करते हैं।)
अब त फहरी तिरंगा,सब प्रदेश में,
भारत देश में ना ।।
बदली नेहरू की धारा,
सोचे पाक विचारा-2
चारा चले नाहीं,विधना बा तेश में।
भारत देश में ना ।।
निष्प्राण तीन सौ सत्तर,
छप्पन इंच भै बहत्तर-2
तर गइलैं कश्मीरी, हिन्द वेश में ।
भारत देश में ना ।।
पैंतीस-अ भइलै गायब,
सीना चीर गइलैं साहब-2
श्यामा प्रसाद भइलैं,खुश स्वर्ग देश में।
भारत देश में ना ।।
आतंकवादी भइलैं पस्त,
देशवासी भइलैं मस्त-2
गस्त धइले बा,डसेन नागवेश में।
भारत देश में ना ।।
नागपंचमी क दिन,
सोमवार गीन-गीन -2
तीन चौकीदार दीप,हऊवैं रेश में ।
भारत देश में ना ।।
अब त फहरी तिरंगा,सब प्रदेश में,
भारत देश में ना ।।
शिक्षक, कवि लालबहादुर यादव “कमल” की देशभक्ति देखने व सुनने को मिली,कहते हैं-
आज विश्व ने देखा है दम,
छप्पन इंची सीनों का।
ख़ैर नहीं अब घाटी के,
सूकर, श्वान कमीनों का।।
ज़हर बीज का वपन किया था
नेहरू ने केशर घाटी में।
शैतानी की फसल उगा दी,
केसर वाली माटी में।।
घाटी तो आज़ाद हो गयी,
नहीं कोई मजबूरी है।
लेकिन वतन के ग़द्दारों की,
अब पहचान जरूरी है।।
काश्मीर की मुक्ति के नायक,
लायक मोदी-शाह बने।
चिर प्रतीक्षित आज़ादी के,
हम भी एक गवाह बने।।
गीता में जो कहा कृष्ण ने
वही धर्म का रण होगा।
कृष्ण दूत शाह मोदी हैं,
युद्ध बड़ा भीषण होगा।।
कवि लालबहा कमल द्वारा प्रस्तुत कजरी भी सराहनीय रही-
रिम झिम बरसेला बदरिया,
चढ़ल सवनवां अँगनवां,
सखिया झूले झुलनवां ना।।
काली सावन की यह रात, नागिन बनि के डसि डसि जात।
बैठा मदन लगाए घात।
नैनन नींद न आवै होइ जाला
बिहनवां अँगनवा,सखिया झूले झुलनवां ना।।
मनवाँ धरे न तनिको धीर,
कासे कही जिया के पीर।
समुझे वही जो खइले तीर।।
अउबा “कमल” तूं कहिया,
होई कब दर्शनवां, अंगनवां,
सखिया झूले झुलनवां ना।।
संचालक कवि अवधेश विश्वकर्मा की श्रावणी कजरी मशहूर हुई-
आज घिर आए बदरा,
चहुँ ओर पिया,
बरसेला घनघोर पिया ।।
पिया काली घटा छाई,
अंग अंग मुसकाई,
आज नाच रहल
देखा मन मोर पिया,
बरसेला घनघोर पिया न।।……
झूला निमिया की डार,
पिया देता तनी डार,
देखा पड़त बाटे,
बरखा फुहार पिया,
बरसेला घनघोर पिया न।।…..
चला बरखा म नहाई,
झूला हमका द झुलाई,
पींग मार के”अवधेश”
द झकझोर पिया,
बरसेला घनघोर पिया न।।……
नवोदित कवि आशीष अनोखा ने भगत सिंह का चित्राकंन करते हुए कहा-
भगत सिंह जिसे कहते हैं,
शेरों जैसा दहाड़ था उनका ।
बंम असेंबली में गिराये,
जब देश पुकारा था नाम उनका ।।
हिष्ट – पुष्ट चौड़ी छाती,
जबरजस्त उनका कद काठी थी ।
उसी देश में मर मिट गए,
जिस देश की खाटी-माटी थी ।।
जज्बातों से ना डरते थे, क्रांतिकारी विचारों से लड़ते थे ।
समान न्याय मिले सबको,
यही एकमात्र वसूल था उनका ।।
नवोदित कवि अमित कुमार दुबे ने मित्रता पर एक मुक्तक से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया-
मित्र एक जो दे जाता है सुकूँ हृदय को।
मित्र एक जो कर जाता है स्वर्ग निलय को।
मित्र वही जो बिना शर्त हर वक्त साथ दे-
मित्र एक जो दे जाता है अर्थ विलय को।
सावन के पावन पवित्र महिने में कजरी का माहौल रहता है वहीं संस्थापक “शिव प्रकाश जौनपुरी” कहते हैं-
सखी नाचि गाइ ल तनी सवनवां में, अपने भवनवां में ना-२
झलुवा झूलइ कहाँ जाबू,सगरउँ होइ गवा बा आबू।-
झूला झूलि नाहीं पइबियू झुलनवां में।
अपने भवनवां में ना।।
सखी नाचि ———–
बंजर होइ गइ बा जमीन,सगरउँ लगि गइ बा मशीन।-२
झूला डारि नाहीं पइबियू चमनवां में।
अपने भवनवां में ना।।
सखी नाचि———–
रिम झिम बरसअता सवनवां,पुरवा चलअता पवनवां।-२
सखी नाचि झूमि गाइलअ अंगनवां में।
अपने भवनवां में ना।।
सखी नाचि———–
जरई बोरबू कौने ताल,ताल सब हयें बदहाल।-२
जरई बोरिलअ तूँ सोंचि अपने मनवाँ में।
अपने भवनवां में ना।।
सखी नाचि————-
झूला डरबू कौने डार,डार होइ गईं पतवार।-२
सोंचअ झूलअतानी झूला खुब झुलनवां में।
अपने भवनवां में ना।।
सखी नाचि———–
नवोदित कवियत्री नताशा गिरी “शिखा” ने खूबसूरत रचना से वाहवाही लूटी-
मैं भारत हूँ ,हाँ मै भारत हूँ
तुम सब की भाग्य विधाता हूँ
देखो…..
पूरे जगत मे अपनी विशालता
की कहानी बतलाया है,
त्याग है देखी , ममता देखी
शौर्य का अद्भुत दृश्य
दुनिया को दिखलाया है ।
दुनिया के दिल को जीता है बस
फिर अपने ही घर मे हार गईं ,
बैठ अंधेरी रातों को
छिप छिप के रोया करती हूँ ,
हर पल अपने दामन को
क्यों भीगोया करती हूँ ।
जब तुम बच्चे थे ………….
मेरी इक कराह पे तुम
अशूअन छलकाते थे,
हो गये हो जो बड़े मेरी चीखो
को भी बिसराते हो ।
अब बस तुमको याद रहा
मैं हिन्दू हूँ हाँ मै हिन्दू हूँ
भारत माँ का बेटा हूँ ,
सीना ठोक बतलाते हो ,
दूजा भी मेरे अंग का टुकड़ा
मुस्लिम को क्यों बिसराते हो ।
कोख से जना नही
यशोदा बन के पाला है ,
हिन्दू मे अपना खून देखती
मुस्लिम को परवरिश से ठाला हैं ,
दोनों को इक ही थाली से
खिलाया इक इक निवाला हैं ।
देखो अब कहानी बदल रही है
जो आँचल मे लिपटे बच्चे थे
वो छाती पर पाँव धरे खड़े हूवे ,
अधिकारियों को ले के लड़े हूवे है
दाँवा दोनो ने ठोका है ,
मुझको अपना बतलाने का।
दोनों ने है आँचल खींचा
भय खो दिया है चीरहरण
हो जाने का ,
मेरे दर्द से उनका अब
दूर दूर तक न नाता है ,
अब तो अपना आधिपत्य
का वर्चस्व ही नजर आता है।
मँमता की हर लोरी को
तुम दोनों ने भूलाया है ,
मेरे भाग्य मे अब आमवश्या
की बस अंधेरी छाया है।
गज़लकार, गीतकार रितेश गौड़ ने माननीय प्रधानमंत्री, देश के चौकीदार से निवेदन करते हुए कहा-
सिलसिला हम जीत का रुकने………. नही देंगें।
लोगों का अटूट-विश्वास भी टुटने नही देंगें।।
जब-तक न दोगे हमें पन्द्रह लाख………..मोदीजी।
कुर्सी से हरगिज तुम्हें हटने ……………..नही देंगें।।
कवियत्री इंदु भोलानाथ मिश्रा ने मां के कृतित्व को उकेरा और माँ की सराहना करते हुए कहती हैं-
हमने तो हुनर अपनी मॉ से सीखी हैं,,,
हंसने कि कला, ममता दुलार, कागज कलम दावात, संग लिखी हैं,,,
हमने तो हुनर,,,
नही रहता अपनो का संग ,
ढलना परायों रंग ढंग,
गिले नयन बहता काजल
भिगें आंचल ,सिंदूरी शाम
दूसरे के नाम,,, जुबान बहुत मीठी हैं,,
हमने हुनर,,,
निगाहे देखती राहें
मन में आश जगायें
छोड़ बाबूल कि नगरी
दिप दुजे घर में जलाये
सुनने कि बान, बहु खट्टी तीखी हैं।
हमने हुनर अपनी, मॉ से सीखी हैं।।
क्रमशः सभी कवियों, गीतकारों, गजलकारों ने अपनी-अपनी विधाओं से लोगों को आनंदित कर दिया और अंत में संस्था के संगठन मंत्री राजेश दुबे अल्हड़ असरदार ने उपस्थित सभी साहित्यकारों का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद दिया और गोष्ठी का समापन किया।