Home अवर्गीकृत अनाथ नही – लघु कथा-अलका पाण्डेय

अनाथ नही – लघु कथा-अलका पाण्डेय

तीजों का त्यौहार आने वाला था हर तरफ उमंगें छाई थी
रीता भी बहुत खुश थी शादी के बाद पहली तीज थी मेहंदी लगाऊँगी, हरी चूड़ीयां पहनूँगी, ये करुगी वह करुगी, यह सब बैठ कर सोच रही थी, तभी सासू माँ ने आकर कहाँ बेटा रीता जरा चार कप चाय व नाश्ता ले आना बैठक में माला के घर से तीज लेकर आये है। जी माँजी कह कर रीता चाय बनाने लगी साथ ही साथ उसे अपने अनाथ होने का दुख होने लगा वह अनाथालय में पली बढ़ी और एक दिन रेस्टोरेंट में अनिल से मुलाक़ात हो गई थी फिर प्यार, फिर शादी उसका कोई नही था इस संसार में अनिल के परिवार को छोड, वह सोचने लगी काश मेरे माता-पिता होते तो आज मेरी तीज भी आती।

चाय के उबाल के साथ-साथ विचारों को विराम देकर चाय नाश्ता लेकर बैठक में ट्रे में सजा ले गई वहाँ नजारा देख चौक गई माला भाभी के घर से बहुत सा सामान आया था सब चहक रहें थे। वह सबको चाय नाश्ता दे कर अपने कमरे में चली गई आज उसे माँ-पिता बहुत याद आ रहे थे। वह पंलग पर लेट गई और आँख लग गई नींद में सपने में उसे जेठानिया चिढ़ा रही थी, हंस रही थी, पता नही क्या-क्या कह रही थी,वह सपना देख ही रही थी की दीदी ने आवाज़ लगाई अरे रीता कमरे से बहार आओ देखो तुम्हारे मायके वाले आये है रीता भाग कर नीचे आई तो देखती है, उसकी ननद और ननदोई खड़े है तीज का सामान लेकर रीता उनके गले लग रोने लगी तो सासु माँ बोली रो मत यही तेरा मायका और यही ससुराल है। तब दीदी बोली रीता यह सब सामान लाने को माँ ने कहाँ था बहू के मायके में कोई नही है तो क्या हम तो है तुम सब समान लेकर आओ भाभी के लिये।

रीता माँ के गले लग गई आज उसे अपनी माँ मिल गई थी वह अनाथ नही है ज़ोर से बोल पड़ी और चाय बनाने किचन में चल दी। मन ही मन वह बार-बार सासू माँ को शुक्रिया कर रही थी आज उन्होने ससुराल को मायका जो बना दिया था। आंखो में उतर आये आँसुओं को पोंछ वह मायका मिलने की खुशी में झूम गई।

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