हिन्दीभाषी सामाजिक दबंगो के मुंह पर लग गया है ताला
कल्याण। वर्षों से अपने अस्तित्व की तलाश कर रहे हिन्दीभाषियों को अभी तक कोई ऐसा नायक नहीं मिला है जो उनके संघर्षों का सारथी बने। हालांकि मुम्बई से पश्चिमी क्षेत्र में उत्तरभारत के कई पुरोधा उत्तरभारतीयों की समस्या का सारथी बनने का दावा करके राजनीतिक लाभ ले चुके हैं किन्तु अभी तक कोई ऐसा कोई नहीं हुआ जो रेहड़ी वालों, टैक्सी व आटो चालकों, फुटपाथ पर दुकान लगाने वालों और गरीब मजदूरों की मुसीबत का सहारा बना हो। आज भी यह वर्ग मराठियों की दुत्कार खाता चला आ रहा है किन्तु इनकी मदद करने की बात सामने आती है तो हिन्दीभाषी सामाजिक दबंगों के मुंह में मजबूत ताला लग जाता है।
गौरतलब हो कि मुम्बई में उत्तरभारतीय सामाजिक और राजनैतिक वर्चस्व कायम रखने में पीछे नहीं रहे हैं। उत्तरभारतीयों के हित की लड़ाई का दावा करके कांग्रेस से भदोही जिले के निवासी रमेश दूबे चुनाव जीतकर मंत्री बने तो सुरियावां के घनश्याम दूबे ने शिवसेना के पिछले दरवाजे यानि विधान परिषद से विधायक बन गये। वहीं जौनपुर के कृपाशंकर सिंह चुनावी नैया पार कर चुके हैं तो वाराणसी के अमरजीत मिश्रा भी महाराष्ट्र सरकार में मलाई खाने का मौका पा लिया। हालांकि ऐसे और भी कई लोग हैं जो उत्तरभारतीयों की लड़ाई लड़ते लड़ते शहीद नहीं हुये बल्कि ताज हासिल किये किन्तु आम उत्तरभारतीयों की समस्यायें ज्यों की त्यों बनी हुई है और उनकी सुनने वाला कोई नहीं है।
वहीं कल्याण डोम्बीवली क्षेत्र की हालत सबसे बुरी है। मुम्बई का यह महानगर भले ही पुराना हो चुका है, लेकिन यहां की सोच अभी संकीर्णता से उपर नहीं उठ पायी है। जिसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि सब एक दूसरे की टांग खींचने में लगे रहते हैं। कल्याण लोकसभा में स्वघोषित समाज रत्नों की भरमार है। खुद ही कार्यक्रम आयोजित कर एक दूसरे को समाज रत्न घोषित करने में कोई पीछे नहीं रहता। इस बारे में यह भी कह सकते हैं कि ”तूं मेरी खुजा, मैं तेरी खुजाउं, खुजली दूर हो जायेगी।”
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हिन्दीभाषियों ने अपनी ताकत दिखाने के लिये कल्याण से देवेन्द्र सिंह को प्रत्याशी बनाकर मैदान में कुदा दिया। पीछे से ललकार दिया कि चल पहलवान सामने वाले से दो दो हाथ कर ले हम तुम्हारे साथ हैं, लेकिन पहलवान जब पीछे मुड़कर देख रहा है तो कोई दिखता नहीं बल्कि सामने खड़े होकर ताल ठोंक रहे दूसरे पहलवान के पीछे भीड़ खड़ी मुस्कुरा रही है। यहीं हालात है कल्याण और डोम्बीवली के समाज रत्नों का।
समाज की जिम्मेदारी लेने वाले समाज रत्न इस समय उत्तरभारतीय व हिन्दीभाषी एकता की बात नहीं कर रहे हैं बल्कि अपने एसी कमरों में दरबार सजाये चाटुकारों से कहानी सुनकर मजा ले रहे हैं। कुछ समाज रत्नों ने बात करने पर यह बताया कि इस समय जो चुनावी माहौल है उसमें चुप रहकर हालात का जायजा लिया जा रहा है। वक्त पड़ने पर सब साथ खड़े होंगे। कुछ की शिकायत यह भी है कि यदि उन्हें समाज का अगुआ बना दिया जाय तो बात कुछ बन सकती है। सोचने वाली बात यह है कि जब सभी समाज रत्न हालात का जायजा ही लेते रहेंगे तो हालात बदलने के लिये सामने कौन आयेगा।
दूसरी तरफ कुछ और हिन्दीभाषियों ने माननीय बनने के लिये मोर्चा खोल दिया है। जिसमें तीन चार लोग चुनाव लड़ने के लिये नामांकन भी कर दिये है, जो यह संकेत दे रहा है कि अभी उत्तरभारतीयों या हिन्दीभाषियों को एक होने में या एक विचार बनाने में वक्त लगेगा। हालांकि कुछ ऐसे चुनाव वीर में कल्याण लोकसभा चुनाव में कूद पड़े हैं जिनके पास वोट के नाम पर कुछ नहीं है किन्तु फर्जी जनबल दिखाकर चंदा लेने और अपनी जेब भरने में माहिर हैं।
नोट: हमार पूर्वांचल किसी भी प्रत्याशी या दल का विरोध नहीं करता। हमार पूर्वांचल भी उत्तरभारतीयों की एकता का समर्थक है।
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