गाली सुनकर चर्चा में आये भोजपुरी फिल्मों के पीआरओ और पत्रकार शशिकान्त सिंह का विवादों से पुराना और गहरा नाता रहा है। गाली गलौज और धमकी सुनने के बाद भी अपनी शालीनता का प्रदर्शन करके लोगों की निगाह में मासूम बनने वाले शशिकान्त के साथ पहली बार यह घटना नहीं हुई है, बल्कि इससे पहले भी फिल्म इंड्रस्टी के कुछ लोग इन्हें खरी खोटी सुना चुके हैं। सूत्रों के मानें तो भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में कभी अपना एकछत्र धाक जमा चुके फिल्म अभिनेता और भाजपा के सांसद मनोज तिवारी का वरद हस्त है और उन्हीं के इशारे पर दूसरे कलाकारों को मानसिक प्रताड़ना देने के कृत्य में लगे हुये हैं। आईये आपको ले चलते हैं कुछ पुराने किस्से और तथ्यों पर जिसे ‘हमार पूर्वांचल’ की टीम ने अपनी जांच के दौरान पाया है।
विदित हो कि मृतप्राय हो चुकी भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री को गायक से फिल्म कलाकार बने मनोज तिवारी ने नया जीवन दिया था। शुरूआती दिनों में देवी गीतों को गाने वाले मनोज तिवारी चर्चा में तब आये जब उन्होंने द्विअर्थी गानों को गाना शुरू कर दिया। इसके बाद भोजपुरी फिल्म बनाने लगे। इसके बाद पुर्वांचल के कई गायकों ने भी भोजपुरी दुनिया में प्रवेश किया और पूरी तरह अश्लीलता को परोसकर रातोंरात हाईलाइट हो गये। भारतीय संस्कृति और संस्कार की शिक्षा देने वाले पूर्वांचल का ऐसा विकृत और अश्लील रूप परोसा जाने लगा कि पूर्वांचल का बुद्धिजीवी वर्ग अपनी भाषा की दुर्दशा देखकर ही शर्मशार होने लगा। हालात यह बने कि अब भोजपुरी फिल्म का दर्शक वर्ग सिर्फ निम्न मध्यमवर्गीय और निम्न वर्ग ही रह गया। जो फिल्म में किसी रिक्शेवाले द्वारा उच्च अधिकारी की बेटी या किसी मजदूर द्वारा उच्च वर्ग की बेटी पर लाइन मारने पर तालिया बजाने लगा। कुंठा का शिकार बना यह वर्ग असंभव बातों की कल्पना करके ही खुश होने लगा और इसी का फायदा उठाकर कुछ लोग रातों रात स्टार बनकर जमकर पैसा बटोरने में लग गया।
भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री को अपनी जागीर समझने वाले मनोज तिवारी को शायद यह रास नहीं आया और दूसरे कलाकारों को नीचा दिखाने की घटनायें गाहे बगाहे सामने आने लगी। मनोज तिवारी और रविकिशन का विवाद सर्वविदित है। इसके बाद मनोज तिवारी राजनीति में आ गये और समय की कमी के कारण फिल्मों से दूर होने लगे, लेकिन उनकी महात्वाकांक्षा ने उन्हें चैन लेने नहीं दिया। भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में पिछड़ी जाति के कलाकारों का वर्चस्व शायद कहीं न कहीं श्री तिवारी को कुंठित भी कर रहा था।
सूत्रों का कहना है कि भोजपुरी फिल्मों के नाकाम पीआरओ शशिकान्त सिंह आज भी फिल्म अभिनेता और सांसद मानोज तिवारी के फिल्मी पीआरओ हैं। नाकाम इसलिये कहा कि श्री तिवारी राजनीति में व्यस्त है और फिल्म इंडस्ट्री के दूसरे कलाकारों से पत्रकार महोदय अपना तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं। अंदर कुलांचे मार रहीं ठकुरई से अहम् टकरा जाता है, इसलिये अपनी कुंठा को संरक्षण देने के लिये फेसबुक पर कलाकारों को मानसिक प्रताड़ना देने में लगे रहते हैं।
यदि शशिकान्त सिंह के फेसबुक वाल को देखिये तो वे फिल्म स्टार दिनेशलाल यादव उर्फ निरहुआ और भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में तेजी से चमक रहे खेसारीलाल यादव को लगातार निशान बना रहे हैं। इन दो कलाकारों की फिल्में आयी नहीं कि उन्हें फ्लाप करने की कोशिस में लग जाते हैं। ऐसे कई पोस्ट हैं, जिसे देखने सक साफ जाहिर होता है कि वे अपनी पत्रकारिता नहीं बल्कि पीआरओ होने का धर्म निभा रहे हैं और इसमें कहीं न कहीं उनके आका का हाथ भी लग रहा है।
बता दें कि जब निरहुआ की फिल्म ‘सौगन्ध’ आयी थी तो ऐसे ही अनाप सनाप लिखना शुरू किया था। जिसकी शिकायत निरहुआ ने मनोज तिवारी से किया भी था किन्तु श्री तिवारी ने ‘छोड़ो पागल है’ कहकर मामले को टरका दिया था। सुनने में यह भी आया है कि इससे पहले फिल्म स्टार रविकिशन और पवन सिंह के बारे में अनाप शनाप लिख रहे थे। फिर रविकिशन ने तो कायदे से मां बहन की थी किन्तु पवन सिंह कुछ नहीं बोले बल्कि पवन सिंह के पीआरओ ने कायदे से समझा दिया था जिसके बाद इन कलाकारों के बारे में लिखने से तौबा कर ली। यह भी हो सकता है कि रविकिशन और पवन के संबंध मनोज तिवारी से अच्छे बन गये तो आका के कहने पर ही शान्त हो गये।
हमार पूर्वांचल की टीम ने जो खोज खबर ली तो छुपे तौर पर कुछ लोग यहीं चर्चा करते मिले कि तिवारी जी का ब्राह्मणत्व इतना कुंठित हुआ कि पिछड़े वर्ग के दो कलाकारों निरहुआ और खेसारीलाल के गुट का भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ता प्रभुत्व उन्हें रास नहीं आ रहा है और अपने राजनीतिक प्रभाव में शशिकान्त सिंह को इन दोनों कलाकारों के खिलाफ अभियान छेड़ने के लिये अपना मोहरा बना लिया है, जिसका सबूत उनका फेसबुक वाल ही दे रहा है। बार बार अपने खिलाफ लिखे जाने पर निरहुआ ने जो किया उसे सही तो नहीं कहा जा सकता किन्तु पूरी तरह गलत भी ठहराया जा सकता।
अंत में यहीं कहना चाहूंगा कि जो हुआ वह किसी पत्रकार के साथ नहीं बल्कि फिल्म के एक नाकाम पीआरओ के साथ हुआ है और उसे पत्रकारिता से जोड़कर लाभ लिया जा रहा है। कुछ भी हो एक पत्रकार इस तरह चुपचाप गाली तो नहीं सुन सकता है। खैर पर्दे के पीछे जो भी खेल चल रहा हो किन्तु इस प्रकरण से शशि और निरहू दोनों को लाभ ही हुआ है।
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