22 जनवरी 1999 की वह काली रात जब ईसाई पादरी ग्राहम स्टेंस और उनके बेटे ओडिसा के मनोहरपुर के छोटे से चर्च में एक कार्यक्रम में भाग लेने के बाद खाना खाया और अपनी जीप में ही मच्छरदानी लगाकर सो रहे थे, तभी कुछ लोगों की भीड़ पहुंची और उन्हें जीप में ही जला दिया। जलाने के पहले उन्हें भीड़ ने काफी मारा पीटा था। भीड़ का आरोप था कि ग्राहम स्टेंस कुष्ठरोगियों की सेवा के आड़ में आदिवासियों का धर्म परिवर्तन करते थे।
भारत में मॉब लिचिंग की यह पहली घटना था। इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। ग्राहम स्टेंस ईसाई थे इसलिये विदेशों में भारत की काफी थू—थू हुई थी। इसके बाद देश में ऐसी कई घटनायें घटी जो लोगों को सोचने पर विवश कर दिया कि आखिर समाज का यह कैसा स्वरूप है जो डिजीटल युग के मानवों को पाषाण युग की तरफ ढकेल रहा है। क्या व्यक्ति इतना कुंठा ग्रस्त हो गया है कि उसके सोचने समझाने की क्षमता क्षीण हो चुकी है। वह खुद को कानून से उपर उठकर जज बैठा है और लोगों को सजा सुना है।
ऐसी ही एक घटना और घटी थी जब दीमापुर सेंट्रल जेल से एक बलात्कार के आरोपी को गुस्से में आई भीड़ ने पहले जेल से निकाला और फिर उसको इतना पीटा की उसकी मौत हो गई। भीड़ का गुस्सा इतने पर भी शांत नहीं हुआ और उसे फांसी पर लटका दिया। यह चिंतनीय बात है कि भीड़तंत्र अब इतना हावी हो रहा है कि उसे किसी कानून की परवाह नहीं है। किसी को घर से, जेल से निकालकर या फिर राह चलते रोककर हत्या की जा सकती है।
देखा जाय तो यह गुस्सा देश की घटिया हो रही राजनीति और लचर हो रही कानून व्यवस्था का परिणाम है। अलीगढ़ के मासूम की हत्या के मामले में पुलिस ने अपनी कार्रवाई की। आरोपियों को तुरंत गिरफ्तार किया और शासन ने चार पुलिसकर्मियों को निलंबित भी कर दिया। हालांकि इस घटना के लिये पुलिस को दोष नहीं दिया जा सकता, लेकिन ऐसी तमाम घटनायें जो घट रही हैं उसके लिये पुलिस प्रशासन और शासन ही दोषी है।
अलीगढ़ की घटना को लेकर एक बार फिर लोगों को आक्रोश चरम पर है। आरोपियों को तुरंत फांसी देने की मांग की जा रही है, लेकिन कानून की प्रक्रियायें इतनी लचर हैं कि बड़ी से बड़ी घटना में भी जल्दी न्याय नहीं मिलता है और फरियादी की हालत एक भिखारी जैसी हो जाती है जो न्याय के लिये अदालत के बाहर हाथ में कटोरा लेकर खड़ा रहता है। यदि ट्विकल के हत्यारों को फांसी की सजा भी हो जाय तो उसे पूरा करने में कई साल बीत जायेगे। मामला लोअर कोर्ट से हाईकोर्ट, फिर सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति तक जायेगा।
कानून की यहीं लचर व्यवस्थायें लोगों में गुस्सा भर रही हैं। तमाम शिकायतों के बाद भी लोगों की सुनवाई नहीं होती। थाने तहसील सहित सभी कार्यालयों में दलालों का बोलबाला है। बिना सोर्स व सुविधाशुल्क लिये किसी का काम नहीं होता। यदि जनता जागरूक होकर किसी की शिकायत भी करे तो उसकी सुनवाई नहीं होती। जिसके कारण लोगों में दिनोंदिन गुस्सा बढ़ता जा रहा है। कानून पर भरोसा करने के बजाय लोगों के मन में बदला लेने की भावना जन्म ले रही है। यदि सरकार अपनी न्यायिक व प्रशासनिक प्रणाली को दुरूस्त कर आम लोगों का भरोसा नहीं जीतती तो यह गुस्सा दिनोंदिन बढ़ता जायेगा और लोकतंत्र पर यदि भीड़तंत्र हावी हुआ तो उसका परिणाम भी भयावह होगा।