Home सम्पादकीय चूल्‍हे के धुएं से आजादी दिलाने में कामयाब रही मोदी सरकार

    चूल्‍हे के धुएं से आजादी दिलाने में कामयाब रही मोदी सरकार

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    दिल्ली से रमेश दूबे की रिपोर्ट

    2019 के लोक सभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व में भारतीय जनता पार्टी को मिली अभूतपूर्व कामयाबी के बाद तरह-तरह के चुनावी विश्‍लेषण किए जा रहे हैं। कोई इसका श्रेय नरेंद्र मोदी-अमित शाह के चुनावी चक्रव्‍यूह को दे रहा है तो कोई इसे कांग्रेस और महागठबंधन की नाकामी से जोड़ रहा है। चुनावी गुणा-भाग से आगे बढ़ कर देखें तो भाजपा की सफलता में सबसे बड़ा योगदान मोदी सरकार के विकास कार्यों का है।

    अब तक की सरकारें चुनावों को ध्‍यान में रखकर योजनाएं बनाती रही हैं। यही कारण है कि इन योजनाओं का स्‍वरूप दान-दक्षिणा वाला ही बना रहता था। मोदी सरकार ने पहली बार समाज के वंचित तबकों को हर तरह से सशक्‍त बनाने का काम किया। गरीबों को बिजली, सड़क, पक्‍के मकान, शौचालय, रसोई गैस जैसी मूलभूत सुविधाएं बिना किसी भेदभाव के मिलीं जिनके लिए सरकारें आम आदमी को दशकों से ख्‍वाब दिखा रही थीं। इससे मोदी सरकार में आम लोगों का विश्‍वास बढ़ा। चूंकि मोदी सरकार की योजनाओं का सबसे ज्‍यादा फायदा विकास से वंचित ग्रामीण इलाकों को मिला इसलजिए भाजपा को ग्रामीण भारत की कुल 342 सीटों में से 197 पर कामयाबी मिली। इतना ही नहीं भाजपा को शहरों से ज्‍यादा वोट गांवों में मिले। शहरी इलाकों में जहां भाजपा को 33.9 प्रतिशत वोट मिले वहीं ग्रामीण इलाकों में यह अनुपात बढ़कर 39.5 प्रतिशत तक पहुंच गया। अब तक जो पार्टी शहरी लोगों की पार्टी मानी जाती थी उसके लिए यह बहुत बड़ी उपलब्‍धि है।

    ग्रामीण इलाकों में और महिलाओं के बीच भाजपा को मिली अभूतपूर्व कामयाबी की एक बड़ी वजह प्रधानमंत्री उज्‍ज्‍वला योजना रही। गौरतलब है कि देश में परंपरागत चूल्‍हों के धुएं से होने वाले प्रदूषण से हर साल पांच लाख महिलाओं की मौत हो जाती है। विशेषज्ञों के मुताबिक रसोई में खुली आग के धुएं में एक घंटे बैठने का मतलब 400 सिगरेट के बराबर धुआं सूंघना है।

    चूल्‍हे का धुआं महिलाओं को बीमार बनाता रहा तो इसकी वजह यह रही कि सरकारों ने आम लोगों को स्‍वच्‍छ ईंधन मुहैया कराने के लिए गंभीर प्रयास किया ही नहीं। आंकड़े इसकी पुष्‍टि करते हैं। देश में एलपीजी वितरण की शुरूआत 1955 में हुई थी और 2014 तक अर्थात साठ वर्षों के दौरान सिर्फ 13 करोड़ लोगों को एलपीजी कनेक्‍शन मुहैया कराया जा सका। दूसरे, एलपीजी का दायरा शहरी व कस्‍बाई इलाकों तथा गांवों के समृद्ध वर्ग तक सिमटा रहा। स्‍पष्‍ट है सरकारी उदासीनता के चलते चूल्‍हे के धुएं से हर साल लाखों लोग बीमार पड़कर गरीब बनते रहे।

    गरीबों को चूल्‍हे के धुएं और बीमारियों से मुक्‍ति दिलाने की पहली ठोस पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। इसके लिए मई 2016 को “प्रधानमंत्री उज्‍ज्‍वला योजना” की शुरूआत की गई जिसके तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले पांच करोड़ परिवारों 2019 तक एलपीजी कनेक्‍शन मुहैया कराने का लक्ष्‍य रखा गया। शुरू में इस योजना का लाभ उन्‍हीं परिवारों को मिल रहा था जो 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति गणना के अनुसार गरीबी की रेखा के नीचे थे। बाद में इस योजना का दायरा बढ़ाते हुए इसमें सभी अनुसूचित जाति-जनजाति परिवार, वनवासी, अत्‍यंत पिछड़ा वर्ग, द्वीपों, चाय बागानों में रहने वालों तथा प्रधानमंत्री आवास योजना एवं अंत्‍योदय योजना के लाभार्थियों को भी शामिल कर लिया गया है।

    जिस देश में योजनाओं की लेट-लतीफी का रिकॉर्ड रहा हो वहां राजनीतिक इच्‍छाशक्‍ति और हर स्‍तर पर जवाबदेही सुनिश्‍चित करने के कारण उज्‍ज्‍वला योजना में लक्ष्‍य की तुलना में अधिक कनेक्‍शन बांटे गए। मोदी सरकार 30 मई 2019 तक 7.19 करोड़ गैस कनेक्‍शन दे चुकी है। आठ करोड़ गैस कनेक्‍शन के लक्ष्‍य को हासिल करने के लिए अगले सौ दिनों तक 81 लाख कनेक्‍शन दिए जाने का लक्ष्‍य है। यदि कुल गैस कनेक्‍शनों को देखें तो यह आंकड़ा निश्‍चित रूप से 10 करोड़ की संख्‍या को पार कर जाएगा। अब तक देश की 93 प्रतिशत आबादी तक रसोई गैस पहुंच चुकी है और हर रोज 69000 नए कनेक्‍शन दिए जा रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि अधिकतर नए गैस कनेक्‍शन पश्‍चिम बंगाल, उत्‍तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, उड़ीसा और पूर्वोत्‍तर जैसे पिछड़े राज्‍यों में जारी हुए जहां स्‍वच्‍छ ईंधन की पहुंच बहुत कम रही। उज्‍ज्‍वला योजना के कुल लाभार्थियों में 48 प्रतिशत अनुसूचित जाति-जनजाति से संबंध रखते हैं। स्‍पष्‍ट है उज्‍ज्‍वला योजना करोड़ों गरीबों के सशक्‍तीकरण का कारगर हथियार साबित हुई है और इस विशाल वर्ग का समर्थन भाजपा को मिला।

    रसोई गैस की देशव्‍यापी पहुंच के बाद एक बड़ी चुनौती यह आ रही है कि जहां सामान्‍य उपभोक्‍ता प्रति वर्ष औसतन 7 सिलिंडर गैस भरवाते हैं वहीं उज्‍ज्‍वला योजना के लाभार्थी औसतन 3 सिलेंडर ही भरवाते हैं। दरअसल 14.2 किलोग्राम के सिलेंडर को भरवाने की कीमत अधिक होने के कारण बीपीएल परिवारों द्वारा कम संख्‍या में सिलेंडरों का उपयोग किया जा रहा है।

    अपनी दूसरी पारी में मोदी सरकार इस मुद्दे पर खास ध्‍यान देते हुए पांच किलो के सिलेंडर आवंटित करने का फैसला लिया है। इसकी कीमत 260 रूपये है जिसमें 80 रूपये की सब्‍सिडी बैंक खाते में जमा की जाएगी। अर्थात पांच किलो का एक सिलेंडर 180 रूपये के आसपास का पड़ेगा। शुरू में इस योजना को देश के 10 जिलों में लागू किया जा रहा है जिसे आगे चलकर अन्‍य जिलों में भी लागू कर दिया जाएगा। स्‍पष्‍ट है जल्‍दी ही पूरे देश को चूल्‍हे के धुएं से आजादी मिलने वाली है।

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