हम अपने घर में ,परिवार में , समाज में घटित होनेवाली किसी घटना को नजदीक से देखते हैं और देखने के बाद जब अंतर्मन से समझते हैं तो ऐसा लगता है कि हम कितने निर्दयी ,स्वार्थी ,असभ्य और असंवेदनशील हो गए हैं। अक्सर हम अपने ही परिवार के बारे में आत्मकेंद्रित हो जाते हैं और हमें हमेशा अपने ही परिवार, बच्चों के भविष्य को लेकर फिक्र रहती है। जिंदगी की उधेड़बुन में हमें यह याद ही नहीं रहता की समाज के प्रति हम सबकी भी अहम जिम्मेदारियां हैं। हमारे देश में हमेशा कोई न कोई आंदोलन चलता रहता है चाहे वह आरक्षण को लेकर हो या किसी अन्य मुद्दे पर हो। समाज का प्रबुद्ध वर्ग ,राजनितिक या गैरराजनीतिक संगठन ऐसा कोई जनआंदोलन नहीं छेड़ता जिसमें संवेदनहीनता के लिए समाज में जागृति लायी जाये । देश के राजनेताओं व गैरराजनीतिक संघठनों को वोट और नोट से फुर्सत मिले, तब तो समाज में लोगों के जीवन की बुनियादी समस्याओं पर कोई ठोस हल निकल सके।
गत दिनों सोशल मीडिया पर एक तस्वीर बहुत जोर शोर से वायरल हुयी थी जिसमें एक व्यक्ति को हॉस्पिटल के फर्श पर खाना खाते हुए दिखाया गया है। इसे देखकर मेरा ही नहीं वस्तुतः आपका भी सिर शर्म से झुका होगा और आपको भी अपनी उपलब्धियों पर शर्मिंदगी महसूस हुई होगी। एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी के मृत देह को कंधे पर उठाकर १२ किलोमीटर शमशान तक ले गया क्योंकि हॉस्पिटल ने उसके लिए वाहन मुहैया नहीं करवाया ।ऐसी न जाने कितनी घटनांए हमेशा सोशल मीडिया पर अक्सर वायरल होती रहती है आप सब अब सोच रहे होंगे की मैं आप सबको इतनी लम्बी कहानी क्यों बता रहा हूँ क्योंकि गत दिनों भदोही के चेरापुर गांव में एक मुसहर महिला व एक बच्चे की मड़हे में जलकर दर्दनाक मृत्यु हो गयी जैसा की हमें जानकारी मिली हैं रात में वह मृत महिला अपने पति व दो बच्चों के साथ मड़हे में सो रही थी डेबरी के गिरने से अचानक मड़हे में आग लग गयी आग लगने से मृत महिला का पति अपने एक बच्चे को बाहर लेकर भागा किन्तु महिला अपने बच्चे को आँचल में लेकर जैसे ही बाहर निकलने के प्रयास में थी अचानक जलता हुआ मड़हा भर्भराकरउसके ऊपर गिर गया बाहर उसका पति असहाय होकर चिल्ला रहा था मड़हे में वह महिला अपने बच्चे को आँचल में लिए जिंदगी के लिए चिल्ला रही थी धीरे धीरे उसकी चीख आनी बन्द हो गयी, वह महिला अपने बच्चे के साथ जलकर राख हो गयी । अफ़सोस उस महिला की कोई तस्वीर या सन्देश सोशल मीडिया पर अभी तक वायरल नहीं हुयी हैं क्योंकि वह महिला एक मुसहर थी और मुसहर भी भला किसी दल के वोटबैंक होते है। ऐसी न जाने कितनी घटनाये हमारे आसपास घटित होती हैं किन्तु इस घटना ने भी सरकार के महत्वाकांक्षी योजनाओं की पोल खोलकर रख दी हैं आज इक्कीसवी सदी में भी लोग डेबरी के तले मड़हे में रह रहे हैं । न तो इन्हे आवास योजना में लाभ मिला हैं न ही इन्हे बिजली मुहैया कराई गयी है।
जीवन से खिलवाड़ करती एवं मनुष्य के प्रति मनुष्य के संवेदनहीन-जड़ होने की इन शर्मनाक एवं त्रासद घटनाओं के नाम पर आम से लेकर खास तक कोई भी चिंतित नहीं दिखाई दे रहा है, तो यह हमारी इंसानियत पर एक करारा तमाचा है। इस तरह समाज के संवेदनहीन होने के पीछे हमारा संस्कारों से पलायन और नैतिक मूल्यों के प्रति उदासीनता ही दोषी है।
हम आधुनिकता के चक्रव्यूह में फंसकर अपने रिश्तों, मर्यादाओं और नैतिक दायित्वों को भूल रहे हैं। समाज में निर्दयता और हैवानियत बढ़ रही है। ऐसे में समाज को संवेदनशील बनाने की जरूरत है। इस जरूरत को कैसे पूरा किया जाए, इस संबंध में समाजशास्त्रियों को सोचना होगा। अक्सर हम दुनिया में नैतिक एवं सभ्य होने का ढिंढोरा पीटते हैं, जबकि हमारे समाज की स्थितियां इसके विपरीत हैं, भयानक हैं।
आप सबको बता दें की जापान में जब कोई गर्भवती महिला सड़क से गुजर जाती है तो लोग उसे तुरंत रास्ता दे देते हैं, उसके सम्मान में सिर से टोप उतार लेते हैं। वे जानते हैं कि यह स्त्री जापान का भविष्य अपने गर्भ में लेकर चल रही है। इसकी देखभाल करना हम सबकी जिम्मेदारी है। कौन जानता है यही बच्चा कल देश का बहुत बड़ा राजनेता , एक्टर, स्पोर्ट्सपर्सन बने और देश का नाम रोशन करे ।
कभी चार्ली चैपलिन, हिटलर, नेपोलियन, लेनिन, कैनेडी,अब्राहम लिंकन, मार्टिन लूथर किंग, महात्मा गांधी ,अम्बेडकर,स्वामी विवेकानंद अब्दुल कलाम भी ऐसे ही गर्भ के भीतर रहे होंगे। हमें गर्भ और गर्भवती स्त्री का सम्मान करना चाहिए जापानियों की तरह। किन्तु हम यहाँ बात केवल गर्भवती महिलाओं की ही नहीं कर रहे है , बल्कि बात उन लोगों की भी है, जो दिव्यांग है असहाय है ,निरीह एकदम गरीब है किसी अकस्मात् दुर्घटना के बाद बुनियादी मदत के लिए समाज के प्रति कराह रहे होते हैं । किसी आगजनी में फंसे लोग हों या अन्य दुर्घटनाओं के शिकार लोग जब सहयोग एवं सहायता के लिए कराह रहे होते हैं, तब हमारे संवेदनहीन समाज के तथाकथित सभ्य एवं समृद्ध लोग इन पीड़ित एवं परेशान लोगों की मदद करने की बजाय संवेदनहीन हो जाते है ।लोगों की संवेदनशीलता तब जगती हैं जब किसी घटना की तस्वीर या खबर सोशल मीडिया पर वायरल हो गयी हो।हम भले ही तकनीकी तौर पर उन्नति करके विकास कर रहे हैं लेकिन अपने मूल्यों, दायित्वों और संस्कारों को भुलाकर अवनति को गले लगा रहे हैं।
हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अक्सर NEW INDIA बनाने की बात करते रहते हैं जबकि सबसे पहले हम सबको इंसान बनने व इंसान बनाने की पहल करनी होगी, इंसानियत की बुनियाद को मजबूत करना होगा। किसी दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति, किसी गर्भवती महिला, किसी दिव्यांग व्यक्ति की सहायता हम सब की जिम्मेदारी है।
आप सबने भी वास्तविक जीवन में या तस्वीर में ऐसी घटना जरूर देखि होगी जिसमें एक गरीब बच्चा भूख से तड़पता हुआ जूठे पत्तलों में से खाना चुनकर खा रहा हैं यह पेटभरे चकाचौंध वाली जिंदगी और भूखी जिंदगी का अंतर है। यदि आप सक्षम हैं और ऐसा कोई दृश्य आपके सामने से गुजर रहा हो तो उसे एक दिन की मजदूरी निकालकर दे दें, उससे कहें कि तुम आराम करो, आज की रोटी के पैसे हमसे ले लो। यह कोई दया नहीं है, यह कोई समाधान भी नहीं है, फिर भी ऐसे हालात में आपकी संवेदनाओं का जागना जरूरी है। कोई यूँ ही नहीं जूठे पत्तलों या कचड़ों में से खाना चुनकर खाता है , भूख मजबूर करती है साहब ।
किसी गरीब को जूठन में से दो निवाले पेट की भूख को शांत करने के लिए चुनने पड़े, ये स्थितियां हमारे विकास पर, हमारी सभ्य समाज व्यवस्था पर एक गंभीर प्रश्न हैं। कितना दु:खद है कि आजादी के इतने सालों बाद भी हमें ऐसे दृश्य देखने पड़ते हैं। यह दृश्य किसी भी सभ्य समाज के चेहरे की नकाब उतार लेती है। सरकारों के सारे दावों और तामझाम को एक पल में मटियामेट करके रख देती है।
कहीं-न-कहीं समाज की संरचना में कोई त्रुटि है। समाज में बहुत-सी ऐसी घटनाएं सामने आती हैं जिन्हें देखकर तो ऐसा लगता है कि समाज बड़े गहरे संकट में फंस चुका है। समाज की बुनावट में कोई गहरी खोट है। इंसानियत, प्रेम और भाईचारा दम तोड़ रहा है।
समाज में ऐसी घटनाएं भी सामने आती हैं कि लोग मदद कर दूसरों को जीवनदान देते हैं। हालांकि ऐसी घटनाएं बहुत कम ही दिखाई पड़ती हैं। नोएडा के निठारी के सामने एलिवेटेड रोड पर दो कारों में टक्कर हो गई थी जिस कारण 2 महिलाओं सहित 4 लोग घायल हो गए थे लेकिन राहगीरों ने घटना के कुछ ही पलों के अंदर ही घायलों को अस्पताल पहुंचाकर मानवता की मिसाल पेश की।
आज हम ऐसे समाज में जी रहे हैं, जहां हर इंसान फेसबुक और अन्य सोशल साइटों पर अपने दोस्तों की सूची को लंबा करने में व्यस्त है।बड़े बड़े लोगों के साथ सेल्फी की पोस्ट डालकर अपनी अपनी पहुँच बताने की जैसे होड़ लगी हो । घंटों-घंटों का समय फेसबुक और व्हॉट्सअप पर दूरदराज बैठे अनजान मित्रों से बातचीत में बिताया जाता है लेकिन अपने आसपास के प्रति अपने दायित्व को नजरअंदाज करके। अधुनिकता की चकाचौंध में लोग अब नकली जिंदगी जीने लगे हैं ।
समाज के ऐसे ‘धनाढ्य’ भी हैं, जो अपने आपको दानवीर एवं परोपकारी कहते हैं, अपनी फोटो खिंचवाने, किसी धर्मशाला पर अपना नाम बड़े-बड़े अक्षरों में खुदवाने के लिए लाखों-करोड़ों का दान कर देते हैं। लेकिन ऐसे तथाकथित समाज के प्रतिष्ठित लोग, राजनेता, धर्मगुरु कितने भूखों की भूख को शांत करते हैं, कितने गरीब बच्चों को शिक्षा दिलाते हैं, कितनी विधवाओं का सहारा बनते हैं? शायद उत्तर शून्य ही मिलेगा। फिर समाज को सभ्य, संस्कारी एवं नैतिक बनाने की जिम्मेदारी ऐसे लोगों को क्यों दी जाती है? ऐसे लोगों के योगदान से निर्मित होने वाला समाज सभ्य, संवेदनशील, सहयोगी एवं दयावान हो ही नहीं सकता।